देशभर के युवाओं को मिलना चाहिए 'साथिया' का साथ
मोदी सरकार के एक मंत्रालय ने देश के किशोरों को समाज की सबसे भयानक परिस्थिति को समझने के लिए एक बेहद क्रांतिकारी प्रयास किया है.
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कहते हैं किशोरावस्था बदलाव की उम्र होती है, तन और मन दोनों बदलते हैं. ढेर सारे सवाल बच्चों के मन में घर करते हैं जिनके जवाब ढूंढने के लिए या तो वो इंटरनेट का सहारा लेते हैं या फिर अपने दोस्तों के अधपके ज्ञान का. पर हकीकत ये है कि इस उम्र में बच्चों की जिज्ञासाएं कोई शांत नहीं कर पाता, न तो इउनके शिक्षक और न माता-पिता. क्योंकि सेक्स, समलैंगिकता, प्यार, आकर्षण जैसे विषयों पर कोई भी बच्चों से बात करना नहीं चाहता. और नतीजा, ये बच्चे यहीं से राह भटक जाते हैं.
पर अब ऐसा नहीं हैं क्योंकि अब स्वास्थ एवं परिवार कल्याण विभाग ने देश के 26 करोड़ किशोरों के लिए कुछ नया सोचा है. एक संवेदनशील पहल जो शायद बच्चों के मन में उथल पुथल मचा रहे विचारों को शांत कर पाए, और उन्हें एक दिशा दे पाए. इस पहल का नाम है 'साथिया' जिसके तहत 1.65 लाख सहकर्मी शिक्षक यानि 'साथिया' नियुक्त किए हैं, साथ ही ‘साथिया’ रिसोर्स किट और ‘साथिया सलाह’ मोबाइल ऐप लांच किया है.
'साथिया' किट कहती है कि -
- विपरीत लिंग और समान लिंग के प्रति आकर्षण स्वाभाविक है. ऐसे सभी संबंधों की जो सबसे महत्वपूर्ण बात है वो है सहमति और सम्मान.
- किशोरों को बहुत जल्दी प्यार हो जाता है. वो दोस्तों के प्रति आकर्षित होते हैं, वो किसी भी व्यक्ति के प्रति आकर्षित हो सकते हैं चाहे वो समान लिंग का हो या दूसरे लिंग का.
- किशोंरो के लिए ये समझना बहुत जरूरी है कि ये संबंध आपसी सहमति, विश्वास, पारदर्शिता और सम्मान पर आधारित होते हैं.
- जिस व्यक्ति के प्रति आकर्षण है उनसे इसके बारे में बात करना ठीक है, लेकिन हमेशा सम्मान की दृष्टि से. लड़कों को समझना चाहिए कि अगर एक लड़की 'न' कहती है तो इसका मतलब 'न' ही होता है.
- लड़कों के रोने में कुछ भी गलत नहीं है. वो अपनी भावनाएं व्यक्त करने के लिए रो सकते हैं. वो मधुभाषी भी हो सकते हैं और शर्मीले भी. अशिष्ट होना या असंवेदनशील होना पौरुश की निशानी नहीं. खाना बनाना या डिजाइन बनाना जो सामान्यतः लड़कियों से जुड़े होते हैं, वो लड़कों की पसंद भी हो सकते हैं. दूसरे लिंग के कार्यों को करने का मतलब ये जरा भी नहीं है कि वो पुरुष नहीं है.
- लड़कियों के साथ भी यही बात लागू होती है. जो लड़किया बहुत बोलती हैं, या लड़कों की तरह कपड़े पहनना पसंद करती हैं, या लड़कों की तरह खेल खेलती हैं, उसमें कुछ भी गलत नहीं है. उन लड़कियों को 'टॉमबॉय' या 'बहनजी' कहना गलत है.
- इसमें समान लिंग के प्रति आकर्षण ही नहीं बल्कि व्यवहारिक बदलाव, सोच, असामान्य परिपक्वता, गर्भनिरोधक और लिंग आधारित हिंसा पर भी बहुत विस्तार से बताया गया है.
- लत, धूम्रपान और शराब और उनके नाकारात्मक प्रभावों पर भी विस्तार से बताया गया है.
- प्रजनन भी अछूता नहीं है, न सिर्फ HIV बल्कि दूसरी यौन रोगों, लड़कों और लड़कियों के लिए गर्भनिरोधक(पिल्स, कंडोम, आईयूसीडी), मास्टर्बेशन, सेफ सेक्स के बारे में भी बताया गया है. गर्भपात और उसके लिए माता-पिता या अभिभावक की सहमति जैसे मामलों पर चर्चा की जा सकती है.
ये रिसोर्स मेटीरियल किशोर पीयर एजुकेशन प्लान के तहत सभी राज्यों में वितरित किया जाएगा और शिक्षा देने वाले शिक्षक यानि 'साथिया' को दिया जाएगा. इन शिक्षकों को राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत ट्रेनिंग दी जाएगी.
कुल मिलाकर देखा जाए, तो इस रिसोर्स मैटीरियल में किशोरों से जुड़े सभी सवालों को उठाया गया है और इसपर बात करने के लिए शिक्षक भी नियुक्त किए गए हैं. अब बच्चों के मन में आने वाले तमाम सवालों को जवाब मिलेंगे और उनकी भ्रांतियां भी दूर होंगी.
स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे अक्सर इस उम्र में वो सब कुछ कर डालते हैं जो उनके जीवन में गहरा प्रभाव छोड़ता है. माता-पिता से दोस्ती, आकर्षण और सेक्स पर चर्चा नहीं कर सकते, शिक्षक भी किताबी ज्ञान ही देते हैं. बच्चे खुद से सब कुछ जान लेना चाहते हैं, एक अध्ययन में पाया गया है कि बहुत बड़ी संख्या में बच्चे, किशोरावस्था के शुरुआती दिनों में ही पोर्न देखने लगते हैं. नतीजा, कई बार बहुत भयानक होता है, रेप, असुरक्षित यौन संबंध, समलैंगिक संबंध अब बहुत सामान्य हैं. पर अगर बच्चों को इस उम्र में दिशा दिखाई जाए तो इस तरह के असंख्य मामलों में कमी आएगी.
एक तरफ मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने एडोलेसेंट एजुकेशन प्रोग्राम से 'सेक्स' और 'सेक्शुअल' शब्द हटाने के निर्देश दिए थे. मिनिस्ट्री का कहना था कि'सेक्स या सेक्सुअल जैसे शब्दों का इस्तेमाल न किया जाए और इस पूरे सेक्शन को एक ही वाक्य में समझा देना ही ठीक है'. ऐसे में स्वास्थ एवं परिवार कल्याण विभाग ने बच्चों से जुड़े इन मामलों की गंभीरता समझते हुए बहुत ही मजबूती के साथ इस अभियान की शुरुआत की है. निश्चित रूप से ये 'साथिया' प्रयास बच्चों के हित में एक अहम और सार्थक प्रयास साबित होगा, जिसकी जितनी भी तारीफ की जाए कम है.
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