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Updated: 13 जुलाई, 2019 05:41 PM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
  @parulchandraa
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स्वच्छ भारत अभियान के बारे में तो अब बच्चा-बच्चा जानता है. लेकिन अब ये अभियान एक महत्वपूर्ण पड़ाव पर आ गया है. ये वर्ष महात्मा गांधी की 150वीं जयंती वर्ष है और इसे केंद्र सरकार बड़े स्तर पर तैयारियां कर रही है. इसी क्रम में लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला की अगुवाई में संसद में स्वच्छता अभियान चलाया गया जिससे लोगों को जागरुक किया जा सके.

संसद भवन मे मौजूद सांसद, मंत्री और स्पीकर ने खुद हाथों में झाड़ू लेकर सड़क का कचरा साफ करके लोगों को स्वच्छता का संदेश देने की कोशिश की. इनमें स्पीकर ओम बिरला, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, राजीव प्रताप रूडी, अनुराग ठाकुर और हेमा मालिनी समेत कई सांसद शामिल थे.

लेकिन उन्हें नहीं पता था कि जिन्हें वो जागरुक करने की कोशिश कर रहे हैं इनमें से कुछ लोग वो हैं जो सिर्फ इसी ताक में बैठे रहते हैं कि किस तरह सरकार या सरकारी नुमाइंदे की खिंचाई की जाए. कारण राजनीतिक भी हो सकता है.

हेमा मालिनी ने भी हाथों में झाड़ू थाम रखी थी. और वो सभी लोगों के साथ सफाई करती दिख रही थीं. लेकिन लोगों ने उन्हें ट्रोल करना शुरू कर दिया. लोगों का कहना था कि हेमा मालिनी यहां भी 'एक्टिंग' कर रही हैं. उनपर भद्दे भद्दे कमेंट्स किए जा रहे हैं. कि साफ सड़कों को साफ करने से क्या होगा.

hema malini tweets

जबकि हेमा मालिनी का कहना था कि- ‘यह अत्यंत सराहनीय है कि महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर संसद परिसर में 'स्वच्छ भारत अभियान' को पूरा करने के लिए लोकसभा अध्यक्ष ने पहल की. मैं अगले सप्ताह मथुरा वापस जाऊंगी और वहां इस अभियान को आगे बढ़ाऊंगीं.’ यानी सिर्फ भारत के आम लोग सफाई के लिए प्रेरित नहीं हो रहे बल्कि सांसद भी इस अभियान को आगे बढ़ाने के लिए भी प्रेरित थे.

अब समझदारों की समझ का नमूना देखिए. वो संसद है. देश का सबसे महत्वपूर्ण स्थान. क्या वहां गंदगी हो सकती है? नहीं. क्या वहां सफाई करने के लिए सफाईकर्मी नहीं हैं? बिल्कुल हैं. फिर क्या जरूरत पड़ गई इन VVIP लोगों को हाथों में झाड़ू लेने की. जाहिर है ये इतने बड़े लोग हैं कि अपने घरों में भी कभी झाड़ू हाथ में नहीं लेते होंगे. ये वो लोग हैं जिनका काम झाडू लगाना नहीं है. लेकिन जागरुकता फैलाना इनकी जिम्मेदारी जरूर है. जाहिर है जिम्मेदारी निभाते हुए देश के महत्वपूर्ण पदों पर आसीन ये लोग हाथों में झाड़ू पकड़े दिखाई दिए. आशय सिर्फ लोगों को सफाई का महत्व समझाना था.

लेकिन ट्विटर पर हेमा मालिनी की खिल्ली उड़ाने वालों ने अपने दिमाग का कचरा सबके सामने फैला दिया. ये वही लोग हैं जिन्होंने 2014 में इसी तरह प्रधानमंत्री मोदी का भी मजाक उड़ाया था जब वो अभियान के तहत हाथ में झाड़ू लेकर सड़की की सफाई कर रहे थे.

उस वक्त भी लोग कह रहे थे कि देश के प्रधानमंत्री सफाई करने की एक्टिंग कर रहे हैं. आप देश के प्रधानमंत्री और संसद में मौजूद लोगों से क्या ये उम्मीद करते हैं कि वो स्वच्छता अभियान के तहत आपके घरों के बाहर पड़ी गंदगी साफ करें. या फिर ये कि वो देश को जागरुकता के साथ साथ आर्थिक स्तर पर भी मदद करें जिससे कि देश को उस शर्मिंदगी से बचाया जा सके जो उसने अब तक झेली है. इस बात से तो सभी इत्तेफाक रखते होंगे कि विदेशी पर्यटक हमेशा भारत को लकर यही कहते थे कि 'भारत में बहुत गंदगी है.'

दरअसल ये 'स्वच्छ भारत' का सपना गांधी जी ने ही देखा था, लेकिन वो उसे पूरा नहीं कर सके थे. मोदी सरकार ने गांधी जी के उस स्वप्न को पूरा करने के लिए 2014 में गांधी जयंती पर इस देश व्यापी आंदोलन की शुरुआत की थी. जिसका उद्देश्य लोगों को स्वच्छता के प्रति जागरुक करना था जिससे लोग आसपास को स्वच्छ रखेंगे तो देश स्वच्छ रहेगा. देश की छवि सुधरेगी. और ये हुआ भी. भारत में स्वच्छता अभियान आज जन आंदोलन की शक्ल ले चुका है. बच्चा बच्चा भी स्वच्छता को लेकर अपनी जिम्मेदारी समझता है.

pm modi sweepingकोई शक नहीं है कि स्वच्छता का अलख प्रधानमंत्री मोदी ने ही जगाया है

उधर जो कुछ सरकार ने इसके लिए किया लोगों ने उसमें हाथ बंटाकर उसे एक चमत्कार बना दिया जो शायद भारत जैसे देश के लिए असंभव था. इस अभियान का मुख्य उद्देश्य 2 अक्टूबर 2019 यानी महात्मा गांधी के जन्म की 150वीं वर्षगांठ तकतक देश को ओडीएफ घोषित करना यानी खुले में शौच से मुक्त करना है. इसके लिए 1.96 लाख करोड़ रुपये की लागत से ग्रामीण क्षेत्र में नौ करोड़ शौचालयों का निर्माण का लक्ष्य तय था. 90 प्रतिशत लक्ष्य दो अक्टूबर 2018 तक हासिल किए जा चुके हैं, जिसके तहत 5.6 लाख गांव ओडीएफ घोषित हो चुके हैं. खुशी इस बात की है कि इतने सालों में जो न हो सका वो 5 सालों में हो गया. भारत में 'स्वच्छ भारत अभियान' लगभग समाप्ति की ओर है और इसलिए इस बार इसके बजट में भी कटौती की गई. अब सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट और पेयजल आपूर्ति जैसी योजनाओं पर ध्यान दिया जाएगा.

आज साफ सुथरी सड़कें, जगह-जगह टॉयलेट्स सुंदर दिखने वाले पार्क और जागरुक शहरी, ये बताने के लिए काफी हैं कि हाथ में झाड़ू पकड़ने का असर क्या होता है. इसलिए जो गलत है उसे गलत बोलना चाहिए लेकिन सही को सही कहा जाए तो बेहतर है. लोकसभा चुनाव में प्रचार के दौरान वोट के लिए ट्रैक्टर पर बैठने वाली हेमा मालिनी गलत थीं, लेकिन आज हाथ में झाड़ू पकड़ने वाली हेमा मालिनी बिलकुल गलत नहीं हैं.

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लेखक

पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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