एक हाउसवाइफ को कितनी सैलरी मिलनी चाहिए?
घर की महिलाओं का क्या है, वे तो इतना काम करने के बाद भी खर्च के पैसे बड़े संकोच के साथ मांगती है. उनसे तो पूछ भी लिया जाता है कि तुम दिन भर करती क्या हो? आप बताइए कि हाउसवाइफ की सैलरी कितनी होनी चाहिए?
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क्या कभी आपने सोचा है कि एक हाउसवाइफ (Housewife) को कितनी सैलरी मिलनी चाहिए? शायद इस बात का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है, क्योंकि घर की महिला दिन रात काम करती है. वह कभी भी छुट्टी भी नहीं लेती है. उसका इंक्रीमेंट नहीं होता. उसे कोई बोनस नहीं मिलता. उसकी ड्यूटी सबसे पहले शुरु हो जाती है और देर रात तक चलती रहती है.
वह सबसे पहले जग जाती है औऱ सबसे आखिरी में सोती है. वह सबके लिए चाय नाश्ता बनाती है. टिफिन पैक करती है. वह पति, बच्चे, सास-ससुर सभी की देखभाल करती है. घर की साफ सफाई करती है. घर में क्या है और क्या खत्म होने वाला है सबका ध्यान रखती है. किसका बर्थ डे आ रहा है, किसकी एनिवर्सरी है, किसके घर में शादी है...इन सारी बातों का ध्यान रखती है. वह घर को मैनैज करती है. रिश्तेदारों की खातिरदारी करती है.
रविवार के दिन सबकी छुट्टी होती है तो उसका काम डबल हो जाता है. उसे कभी आराम नहीं मिलता है. त्योहार वाले समय में वह और अधिक मेहनत करती है. उसकी कभी छुट्टी नहीं होती है. वह दिन रात सिर्फ काम में लगी रहती है. तो आप बताइए उसकी सैलरी कितनी होनी चाहिए? शायद इसका कोई पैमाना नहीं है. वह ही केयर टेकर है. वह ही कुक है. घर का मैनेजमेंट वही देखती है.
कई महिलाओं के ऊपर तो इतना काम होता है कि वे अपने खाने-पीने का भी ख्याल नहीं रख पाती हैं
आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) की साल 2011 की एक रिपोर्ट कहती है कि एक औसत भारतीय महिला दिन में करीब छह घंटे ऐसे काम करती है, जिसके लिए उन्हें कोई मेहनताना नहीं मिलता. यही काम अगर किसी बाहरी से करवाया जाता तो उसे सैलरी देनी पड़ती.
घऱ की महिलाओं का क्या है वे तो इतना काम करने के बाद भी खर्च के पैसे बड़े संकोच के साथ मांगती है. उनसे तो पूछ भी लिया जाता है कि तुम दिन भर करती क्या हो? वे घर खर्च के पैसे में से भी बचत ही करती हैं. उन्हें ऐसा महसूस करवाया जाता है कि तुम मुफ्त की रोटियां तोड़ रही हो. हाउसवाइफ के ऊपर खर्च करने के बाद से ऐसे जताया जाता है कि जैसे कोई फिजूलखर्ची हो गई.
वे सबको अपना समझकर अपना सबकुछ न्योछावर कर देती है. कई महिलाएं तो घर को संभालने के लिए अपनी अच्छी-खासी नौकरी तक छोड़ देती हैं. वे बच्चे पालने में लग जाती हैं. उनकी सीवी में सालों को गैप हो जाता है, जिससे दोबारा नौकरी मिलने में भी परेशानी आती है. ऐसा लगता है कि महिलाओं की जिंदगी घरवालों के लिए ही बनी है. वह उनको संभालने के लिए ही जन्म ली है. तभी तो उसे सबकी सेवा में 24 घंटे हाजिर होना पड़ता है.
हाउसवाइफ की वजह से सभी घरवालों को बना बनाया खाना मिल जाता है. पति को समय पर नाश्ता-खाना और धुले-स्त्री किए हुए कपड़े मिल जाते हैं. जिससे वे सही समय पर ऑफिस पहुंच पाते हैं. हाउस वाइफ बच्चों के होमवर्क से लेकर स्कूल प्रोजेक्ट की तैयारी कराती हैं. वह बूढ़े माता-पिता की दवाइय़ों और सेतह का ध्यान रखती है जैसे कि वह कोई नर्स हो.
इस पर ईटी का कहना है कि एक मध्यम वर्गीय परिवार की हाउसवाइफ को कम से कम 45,000 रुपये की सैलरी मिलनी चाहिए. महिलाएं घर के छोटे-मोटे काम खुद ही कर लेती हैं. वे सबकी सेहत का ख्याल रखती हैं. घर का हिसाब किताब भी वही देखती हैं. वे ही बच्चों को ट्यूशन औऱ स्कूल छोड़ऩे जाने का काम करती हैं.
महिलाएं शादी करके इन जिम्मेदारियों को अपने सिर ले लेती हैं. कई महिलाओं के ऊपर तो इतना काम होता है कि वे अपने खाने-पीने का भी ख्याल नहीं रख पाती हैं. हालांकि हमें कई ऐसे लोग मिल जाएंगे जो यह एहसास कराते हैं कि महिलाओं को तो यह सब करना ही पड़ता है. यह उनका ही काम है. आखिर यह कहां लिखा है कि यह सब करना सिर्फ महिलाओं का काम है?
इतना कुछ करने के बाद अगर महिलाएं थोड़ी देर टीवी देख लें या लेट जाएं तो भी उन्हें टोक दिया जाता है. यह नहीं कि घर का कोई सदस्य कभी उनके लिए एक कप चाय बनाकर पिला दे और यह कह दे कि कितना काम करती हो, थोड़ा आराम कर लो. घऱ के सभी लोग अपना काम उस औऱत पर डाल देते हैं कोई यह नहीं सोचता कि वह अपना काम किस पर डालेगी?
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