जब अटल जी के कारण पुलिस वाले के लिए अखबार में छपा "और हीरो रहे सीओ शिकारपुर"
यह पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की खासियत ही कि उनकी नजर बारीक से बारीक चीजों पर होती थी और वो मौके के हिसाब से उसका जिक्र कर ही देते थे.
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अटल बिहारी वाजपेयी को पहली बार मैंने चारबाग रेलवे स्टेशन पर लखनऊ मेल से उतर कर कार में बैठते देखा था. शायद 1992 के गर्मियों के दिन थे. माताजी मेरे साथ थी अटल जी को देखने मात्र से हम दोनों खुश थे. बहुत साल बीते वर्ष 2004 में मैं बुलंदशहर में क्षेत्राधिकारी शिकारपुर के पद पर नियुक्त था. उस समय लोक सभा का चुनाव चल रहा था. तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल जी ने 7 मई 2004 को बुलंदशहर लोकसभा प्रत्याशी श्री कल्याण सिंह और खुर्जा लोकसभा प्रत्याशी श्री अशोक प्रधान के समर्थन में बुलंदशहर के मशहूर नुमाइश ग्राउंड में चुनावी सभा की थी. सभा जनता के लिए 11 बजे, मझले नेताओं के लिए 12 बजे, प्रत्याशियों के लिए 1.00 बजे और माननीय प्रधानमंत्री जी के लिए 2.00 बजे निर्धारित थी. एसपीजी के डीआईजी श्री गोपाल जी एक दिन पहले ही पूर्वाभ्यास करा चुके थे. कोई पचास हजार की भारी भीड़ थी. मेरी ड्यूटी मंच के दाहिने फ्लेंक में लगी थी.
अटल बिहारी वाजपेयी का शुमार उन नेताओं में था जो बारीक से बारीक चीजों पर नजर रखते थे
बड़े सख्त आदेश थे कि कोई भी अधिकारी अपनी जगह से एक इंच भी इधर उधर नही जाएगा. डी घेरे के आसपास कोई भी फटकना नही चाहिए. पत्रकारों को भी केवल नियत मंच से ही कवरेज करना था. नियत समय पर प्रधानमंत्री जी सभा मे उपस्थित हुए. तब लखनऊ में समाजवादी पार्टी की सरकार थी. प्रधानमंत्री जी ने अपने भाषण में राज्य सरकार पर तीखे प्रहार किए.
जैसे ही उनका भाषण आगे बढ़ने लगा वैसे ही महिला दीर्घा में बैठी महिलाएं तेज़ गर्मी और पानी की कमी से बेहोश होने लगीं. मैं अपने दीर्घा से यह देखकर परेशान हो उठा. मैंने तत्काल ही क्षेत्राधिकारी सयाना रामसेवक गौतम और सेक्टर मजिस्ट्रेट को संदेश भिजवाया कि मामला गंभीर हो सकता है. अटल जी मेरे लिए बड़े सम्मानित राष्ट्रनेता थे. मैं नही चाहता था कि उनकी सभा मे कोई हादसा हो और मीडिया की सुर्खी बने.
संयोग से तत्कालीन प्रधानमंत्री जी ठीक उसी समय अपने भाषण में उत्तर प्रदेश में बिगड़ती कानून व्यवस्था और पुलिस के नाकारापन पर बोल रहे थे. पर कैमरों की निगाहें बेहोश होती महिलाओं की ओर मुड़ चुकी थीं. मैंने एक पल सोचा कि अगर मैं अपना ड्यूटी पॉइंट छोड़ता हूं तो निलंबित हो सकता हूं लेकिन किसी की जान बचाना सबसे महत्वपूर्ण ड्यूटी है. मैं दौड़ कर महिला दीर्घा मे पहुंचा और महिलाओं को खींच-खींच कर डी घेरे में पहुंचाने लगा. सभा मे थोड़ी हलचल हुई. लेकिन पानी और हवा मिलते ही महिलाएं बेहतर महसूस करने लगीं.
अटल जी धारा में बोलने वाले वक्ता और जीने वाले व्यक्ति थे. मंच से पुलिस की बुराई करते हुए आखिर में उन्होंने कहा कि कुछ अच्छे पुलिस वाले भी होते है जैसे कि आपके सामने एक पुलिस अधिकारी अच्छा काम कर रहा है. मैं अटल जी के मुख से अपने विषय में कुछ सुन कर सन्न रह गया. अगले ही पल महिलाओं को फिर पानी पिलाने में जुट गया.
अगले दिन के प्रेस कवरेज में बॉक्स में छपा "और हीरो रहे सीओ शिकारपुर". मेरे लिए यह आज तक के जीवन मे मिला सबसे बड़ा पुरस्कार है. अटलजी को मेरा नमन, अभिनंदन और यह वचन कि जिस अधिकारी को आपने 2004 में जहां खड़ा देखा था वह हमेशा वहीं अटल खड़ा रहेगा.
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