कैसा होता है भारत में लेस्बियन होना...
भारत में लेस्बियन होना कैसा होता है? इसका जवाब बखूबी दिया एक लड़की ने जो समाज के दायरों के बीच फंसा हुआ सा महसूस करती है...
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एक विवादित भारतीय फिल्म Unfreedom... फिल्म में दो लेस्बियन लड़कियों की कहानी दिखाई है. फिल्म के सीन काफी बोल्ड हैं और फिल्म भारत में रिलीज नहीं की गई है. फिल्म का प्लॉट काफी बोल्ड था, लेकिन इस फिल्म से एक सवाल उठ खड़ा हुआ. लेस्बियन होना भारत में कैसा होता है? ये सिर्फ एक शब्द नहीं है... लेस्बियनिज्म भारत में एक ऐसा श्राप माना जाता है जिससे लड़कियों को बचाया जाए. Quora पर एक लड़की अपूर्वा मल्होत्रा ने इस बारे में बताया. अपने साथ हुए व्यवहार के साथ-साथ इस थ्रेड में उसने फोटो भी पोस्ट की. इस थ्रेड में कई उत्तर हैं और लोग अपनी सेक्शुएलिटी के बारे में बात कर रहे हैं...
शादी के लिए लड़के... कहते हैं समाज की गंदगी...
अपूर्वा मल्होत्रा ने अपनी कहानी बताते हुए लिखा है कि उन्हें और उनकी पार्टनर को शादी के लिए कई रिश्ते आए हैं और लड़के सिर्फ इसलिए शादी करना चाहते हैं उनसे क्योंकि वो कभी किसी और लड़के के साथ नहीं रहीं और कुछ लड़के कहते हैं कि वो उन्हें लेस्बियनिज्म से बचाना चाहते हैं.
इस तरह लड़के देते हैं जवाब
लड़के सिर्फ ये नहीं चाहते कि वो लेस्बियन होने से बच जाएं बल्कि ये भी कहते हैं कि वो किसी असली मर्द से अभी तक मिली नहीं हैं. वो 90 के दशक में पैदा हुई हैं जहां लोगों को सिर्फ चिढ़ाने के लिए गे या लेस्बियन कहा जाता था और ऐसे लोगों को सोसाइटी में अच्छी निगाह से नहीं देखा जाता था. सोसाइटी में इसे लेकर कितनी जागरुकता और समझ थी वो इस जवाब से जाहिर होता है.
ऐसे मिलते हैं जवाब.. समाज को लगता है ये अप्राकृतिक
अपनी डेटिंग के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि 15 साल की उम्र तक वो छिपकर डेट करती थीं. उनके शहर में काफी कम लोग ऐसे थे जो अपनी सेक्शुएलिटी को लेकर खुले विचार रखते थे. एक और लड़की थी जो अपनी बाइसेक्शुएलिटी के बारे में सिर्फ इसलिए बताती थी ताकि वो मर्दों के लिए ज्यादा आकर्षक बन सके. ऐसी भी लड़कियां थीं जो अपूर्वा को अपने अंतररंग पल ब्वॉयफ्रेंड के साथ देखने को कहती थीं या हिस्सा लेने को कहती थीं. साथ ही, जब डेटिंग साइट की बात आई तो सिर्फ लड़कियों वाली डेटिंग साइट पर भी कई लड़के होते हैं.
व्यंग्यात्मक तौर पर अपूर्वा कहती हैं कि अगर हर बार कोई उन्हें ये कहते हुए 1 रुपया देता कि 'ये सिर्फ एक दौर है और गुजर जाएगा..' तो अभी तक उनके पास इतना पैसा होता कि वो किसी दूसरे देश में शिफ्ट होने लायक पैसे होते. जो लड़का उन्हें पसंद करता था उसे भी जब इस बारे में बताया गया तो उसने सिर्फ मखौल ही उड़ाया और कहा कि एक लड़की को क्यों डेट कर रही हो.. तुममे कोई कमी तो नहीं है.
उनके स्कूल में एक ऐसा लड़का था जो थोड़ा कम (सोसाइटी के अनुसार) मर्दाना था. उसे स्कूल के बाकी बच्चे परेशान करते थे और चिढ़ाते थे. किसी ने इस बात पर भी कभी विरोध नहीं दर्ज करवाया. आखिर ये तो आम था न. आज भी समाज में कई लोग हैं जो हिजड़ों से डरते हैं.
एक लेस्बियन को घर परिवार में भी सुरक्षित माहौल नहीं मिलता. अपूर्वा के माता-पिता ने भी उनकी इस सच्चाई को नहीं अपनाया है. धारा 377 के विवाद के समय उनकी मां ने इस तरह का कमेंट एक फेसबुक पोस्ट पर किया था.
फेसबुक पोस्ट पर किया गया कमेंट
माता-पिता चाहते हैं कि वो एक लड़के से शादी करें और बच्चे पैदा करें. अपूर्वा अपने रिश्ते को छुपाकर नहीं रखना चाहती हैं वो चाहती हैं कि अपने पार्टनर के बारे में बताएं और सामने लेकर आएं.
कानून भी है खिलाफ...
हिंदुस्तान में धारा 377 लागू है जो ये कहती है कि कोई भी अपनी मर्जी से होमोसेक्शुअल हरकतें करेगा या किसी जानवर के साथ ऐसा करेगा उसे सजा मिलेगी और उम्रकैद तक की सजा हो सकती है और जुर्माना भी लगाया जा सकता है.
सेरोगेसी बिल भी भारत में लागू है जिसके हिसाब से सेरोगेसी सिर्फ इनफर्टाइल जोड़े के लिए है. ये सिंगल मां या पिता के लिए भी नहीं है, होमो सेक्शुअल कपल तो किसी भी तरह से ऐसा नहीं कर सकते हैं.
जहां तक शादी की बात है वहां भी होमोसेक्शुअल कपल भारत में शादी नहीं कर सकता. न ही वो किसी भी तरह की पार्टनरशिप का दावा कर सकता है.
अधिकतर लोगों की मान्यता है कि अगर होमोसेक्शुअल कपल बच्चे गोद लेंगे तो बच्चा विषम परिवार के बीच बड़ा होगा. समाज इसे नहीं स्वीकारेगा. अगर बाकी देशों में देखें जो होमोसेक्शुअल शादी को मान्यता देते हैं वहां लोगों में मानसिक तनाव रहता है. ऐसा कहना था जामिअत उलेमा-ए-हिंद के मौलाना मदनी का. ये उस समय कहा गया था जब सुप्रीम कोर्ट धारा 377 को हटाने की बात कर रहा था.
धर्म को लेकर अपूर्वा का कहना है कि भारत एक धर्म निरपेक्ष देश है और इसमें कई सारे धर्म हैं. हिंदू धर्म में 33 करोड़ देवी-देवता हैं और फिर भी अगर वो अपनी पार्टनर के साथ शादी करती हैं तो उनमें से एक भी देवी-देवता शायद उन्हें आशीर्वाद न दे क्योंकि किसी भी धर्म में भारत में होमोसेक्शुएलिटी सही नहीं मानी जाती है.
समाज...
भारतीय समाज का होमोसेक्शुएलिटी को लेकर व्यवहार काफी दुखद है. समाज इसे बहुत मुश्किल बना देता है जैसे ये पहले से ही मुश्किल नहीं हो. जो इसका विरोध करते हैं होमोसेक्शुअल को गैरकानूनी, देशद्रोही, अस्वाभाविक और भी तरह-तरह की बातें कहते हैं.
लोग कहते हैं कि अपूर्वा को ये नहीं पता कि प्यार क्या है, लेकिन अपूर्वा का ये कहना है कि आखिर कैसे कोई ये समझ सकता है कि प्यार क्या है जब वो खुद इतनी नफरत के बीच घिरा हुआ है.
अपूर्वा कहती हैं कि वो 12 साल की उम्र में ये पता चला कि वो स्ट्रेट नहीं हैं. उन्होंने स्ट्रेट होने की कोशिश की. समाज के हिसाब से चलने की कोशिश की. वो बनने की कोशिश की जो लड़के चाहते हैं, लेकिन लड़के कभी भी वो नहीं थे जो अपूर्वा को चाहिए था. वो एक लड़की के साथ ओपन रिलेशनशिप में थीं, वो सालों तक चली. वो डरती थीं कि अगर वो लड़की अपूर्वा को छोड़कर चली गई तो क्या होगा और आखिर क्या करेंगी वो अकेले. उन्हें बताया गया कि उन्हें मान्यता नहीं मिलेगी और जिस लड़की को वो अपनाना चाहती हैं उसके साथ कोई भविष्य नहीं है.
उन्हें कहा गया कि ये सिर्फ एक दौर है और ये गुजर जाएगा. उनका प्यार समाज के लिए बस एक दौर था. कुछ समय पहले कॉमेडियन सुनील पाल ने उन्हें समाज की गंदगी कहा था. किसी ने भी उनके खिलाफ एफआईआर नहीं दर्ज करवाई, न ही कुछ बुरा कहा.
अपूर्वा के अनुसार समाज में होमोसेक्शुअल किसी गंदगी की तरह ही माने जाते हैं जो सिर्फ 4% हैं. उन्हें पहले ही मुजरिम घोषित कर दिया जाता है सिर्फ इसलिए क्योंकि उन्हें कौन पसंद है और वो किसे प्यार करते हैं. ये समाज के हिसाब से गंदगी है....
ये थी बात अपूर्वा की जिन्होंने अपने बारे में खुलकर बताया और वो जो हैं उसे अपनाया... अपूर्वा जैसी न जाने कितनी लड़कियों ने इस थ्रेड पर अपनी बातें लिखी हैं. भले ही लोगों का उत्तर अलग हो भले ही कोई किसी भी शहर में रहता हो, लेकिन परिस्थितियां एक जैसी ही होती हैं... भारत में जिस तरह की कट्टरता चलती है वहां कुछ धर्म के ठेकेदार जो कह दें वही सत्य होता है और सत्य को समझाने और समझने वाला आम इंसान उसके विरुद्ध कुछ नहीं कर सकता है. ये सोचना भी बहुत बुरा है कि आखिर कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है इन लोगों को. लोग अभी भी ये नहीं समझते और समझना चाहते नहीं हैं कि ये सब नैचुरल है और सिर्फ एक दौर नहीं.. काश की हम ऐसे समाज में रहते जहां इस बारे में समझ होती...
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