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Updated: 14 अप्रिल, 2017 11:14 PM
श्रीधर राव
श्रीधर राव
  @shridharrao.a
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संविधान निर्माण के काम को सम्पन्न करने के बाद डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर ने कहा था 'मैं कह सकता हूं कि अगर कभी कुछ गलत हुआ तो इसका कारण यह नहीं होगा कि हमारा संविधान खराब था, बल्कि इसका उपयोग करने वाला मनुष्य अधम था.'

अम्बेडकर जयंती के मौके पर जब हम उनकी इस बात पर गौर करते हैं तो पाते हैं कि मनुष्य के अधम होने की उनकी आशंका कितनी सही साबित हुई. संविधान बनने के साढ़े छह दशक के बाद भी आज भारत में मनुष्य को हम वो गरिमा नहीं दे सके हैं जिसका वो हकदार है.

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गांधी जी का वो अंतिम छोर में खड़ा इंसान आज भी व्यवस्था से परेशान है. सवाल ये है कि क्यों इतनी सारी सवैंधानिक संस्थाओं के मौजूद रहते भारत का नागरिक परेशान है? क्यों एक से बढ़कर एक इंजीनियर पैदा करने के बाद भी हम तकनीक के मामले में दुनिया के कई देशों से पीछे हैं ? आज भारत में इतने मेडिकल कॉलेज हैं कि ज्यादा से ज्यादा लोगों के डॉक्टर बनने का सपना सच हो सकता है, लेकिन हमारी चिकित्सा व्यवस्था में हमें ही भरोसा क्यों नहीं रहा ? देश का बेस्ट टैलेंट आईएएस बनता है लेकिन क्यों सरकारी संस्थाओं ने नाम पर लोग मुंह बना लेते हैं, देश के लिए कुछ कर गुजरने का इरादा रखने वाले लोग आईपीएस बनते हैं, लेकिन जनता को बदमाशों से ज्यादा पुलिस से डर लगता है.

कुल मिलाकर तमाम भौतिक विकास के बावजूद हम भारत के नागरिकों में विश्वास का विकास नहीं कर सके. लोकतंत्र की सच्चाई आप सब जानते हैं. राजनीतिक पार्टियों ने इंसान को वोट बैंक समझ लिया जिसके चलते इस देश में वर्ग, जाति, संप्रदाय का भेद खड़ा हो गया है. जिस देश को एक दिखना था वो अंदर से टूटा-टूटा और खोखला लगता है.

pm-650_041417051749.jpgनागपुर में दीक्षा भूमि पर डॉ.अंबेडकर को नमन करते प्रधानमंत्री

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अंबेडकर जंयती के मौके पर नागपुर की उस दीक्षा भूमि पर पहुंचे जहां उन्होंने बौद्ध धर्म अपनाया था. उस बौद्ध धर्म को जिसने दुनिया शांति, अहिंसा, न्याय और प्रेम का संदेश दिया. लेकिन सोचने की जरूरत है कि हमने क्या किया ? हमने बुद्ध की मूर्ती को याद रखा, हमने अंबेडकर के नाम पर चौराहे बना दिये लेकिन इतने सालों में हम किसी को बुद्ध नहीं बना सके, किसी को अम्बेडकर जैसा नहीं बना सके. अरे बुद्ध और अम्बेडकर को भी भूल जाइये हम चंद अच्छे इंसान भी तैयार नहीं कर सके, जिससे हमारे बच्चे कुछ सीख सकें. और नतीजा आपके सामने है कि भारत के संविधान में तमाम अच्छी बातें होने के बावजूद बहुत सारी संस्थाएं नाकाम और नाकार ही साबित हो रही हैं जिसको लेकर प्रधानमंत्री भी चिंतित हैं.

अंबेडकर हो या फिर कोई भी महापुरूष, उनके प्रति अर्पित होनेवाली तमाम श्रद्दांजलियां, उनके नाम से बने तमाम चौराहे पाखंड ही कहलाएंगे क्योंकि हमारी शिक्षा व्यवस्था में वो बात नहीं जिसमें कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी निकलते हों, मानवता के भाव से भरा चिकित्सक निकलता हो, सेवा भाव से भरे नेता और समाजसेवी निकलते हों. हर वर्ग में धन कमाने की ऐसी होड़ मची है कि जरूरत पड़ने पर लोग देश के सम्मान को भी दांव पर रखने से नहीं चूक रहे.

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देश में चुनाव के साथ सरकारें बदल जाती लेकिन अभी तक ऐसी सरकार नहीं दिखी जिसने देश का नजरिया बदला हो, स्वस्थ सोच दी हो. जरूरत है अंबेडकर की उस आशंका को झुठलाने की जिसमें उन्होंने मानव के अधम होने की बात की थी. कोई भी सरकार और उसके सुशासन का प्रयास तब तक सफल नहीं होगा जब तक वो इस देश में अच्छे आदमी तैयार करने का आंदोलन ना चलाये. भारत माता को  इंतजार है अंबेडकर का अनुसरण कर सके ऐसे नागरिकों का, नेताओं का, अधिकारियों का.

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