3-5 सेकेंड का गले लगाना ग़लत तो कंडोम के अश्लील विज्ञापन सही कैसे?
अगर टीवी पर कंडोम के अश्लील विज्ञापन सही हैं, तो फिर 3-5 सेकेंड का गले लगाना ग़लत कैसे हो सकता है? यह दोहरा मापदंड क्यों?
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केरल में लगभग 5 महीने पहले, 21 जुलाई को सेंट थॉमस सेंट्रल स्कूल, तिरुवनंतपुरम के स्कूली कार्यक्रम में बारहवीं कक्षा के एक छात्र ने दूसरे विद्यार्थियों के सामने स्कूल की ही एक छात्रा को 3-5 सेकेंड के लिए गले लगा लिया. उस छात्रा ने कोई आपत्ति नहीं जताई. लेकिन वहां खड़ी स्कूल की एक आध्यापिका को छात्र का यह व्यवहार ठीक नहीं लगा. वह उन दोनों को वाइस प्रिंसिपल के पास ले गई.
वाइस प्रिंसिपल को छात्र ने बताया कि उस छात्रा ने प्रोग्राम में बहुत अच्छा गाना गया था. इसी कारण उसे बधाई देने की सोच से ही गले लगाया था. छात्र का कहना था कि उसने किसकी बुरी भावना से छात्रा को गले नहीं लगाया. वाइस प्रिंसिपल के कहने पर दोनों छात्रों ने इस घटना के लिए लिखित में माफ़ी भी मांग ली.
वाइस प्रिंसिपल ने तो उनकी माफ़ी को मान लिया पर छात्र की क्लास टीचर अब भी उनके खिलाफ थी और छात्रों को सज़ा देने के पक्ष में थी. आखिरकार माफ़ी मांगने के बावजूद सेंट थॉमस सेंट्रल स्कूल ने उस छात्र और छात्रा को स्कूल से निलंबित कर दिया. हैरानी तो इस बात की है कि केरल उच्च न्यायालय ने भी स्कूल के इस फ़ैसले का समर्थन किया.
स्कूल प्रशासन पर जनता को दबाव बूनाना चाहिए
पिछले पांच महीनों से वह छात्र स्कूल नहीं जा पा रहा है. बारहवीं कक्षा के इस छात्र का भविष्य ख़तरे में है. यह बड़े ही अफ़सोस की बात है कि इतनी छोटी सी घटना को इस तरह बड़ा बना दिया गया. एक बार मान भी लें कि उस छात्र ने ग़लत कदम उठाया, लेकिन फिर भी इतनी बड़ी सज़ा सरासर ग़लत है.
अगर 3-5 सेकेंड का गले लगाना ग़लत है तो क्या कंडोम के अश्लील विज्ञापन सही हैं?
11 दिसंबर को सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने टीवी चैनलों को सुबह 6 से रात 10 बजे तक कंडोम के विज्ञापन न दिखाने की सलाह दी थी. मंत्रालय का तर्क था की उनके पास लोगों की शिकायतें आ रही है कि टीवी पर दिखाए जाने वाले कुछ विज्ञापन अश्लील होते हैं. और इनका बच्चों पर बुरा असर पड़ सकता है. बच्चे ऐसे विज्ञापन न देखें, इसलिए रोक लगाई गई थी.
अगर टीवी पर कंडोम के अश्लील विज्ञापन सही हैं, तो फिर 3-5 सेकेंड का गले लगाना ग़लत कैसे हो सकता है? यह दोहरा मापदंड क्यों? एक बात तो तय है, भारत में अश्लीलता, असभ्यता के दोहरे मानक नहीं हो सकते.
सूचना और प्रसारण मंत्रालय के फैसले की कई लोगों ने आलोचना की. लेकिन सेंट थॉमस सेंट्रल स्कूल के निर्णय की आलोचना या विरोध किसी ने नहीं किया. अगर स्कूल पर जनता का दबाव होता तो 5 महीनों तक बारहवीं कक्षा के छात्र को अपने भविष्य के लिए इस प्रकार धक्के नहीं खाने पड़ते. अब भी अगर तिरुवनंतपुरम के लोग स्कूल प्रशासन पर दबाव डालें तो उस छात्र की स्कूल में वापसी हो सकती है.
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