कंडोम बेचने से पहले नवरात्रि क्या है ये समझ लो...
कंडोम के प्रचार प्रसार में हमेशा ही द्वीअर्थी संवादों का इस्तेमाल किया जाता है और ज़ाहिर सी बात है इसलिए पहले अर्थ को तो कोई सीरियसली नहीं लेगा.
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जहाँ एक ओर स्त्री के देवी/माँ स्वरूप के आगमन की तैयारी चल रही है वहीं दूसरी ओर बाज़ार में एक स्त्री को शरीर के रूप में प्रचारित किया जा रहा है.
जी हाँ, सनी लियोन की बात हो रही है जो एक बार फिर से चर्चा में है. गुजरात में जगह-जगह मैनफोर्स कंडोम के होर्डिंग लगे हैं. साइड में सनी की क्लीवेज दिखाती हुई तस्वीर है और दो जोड़ी डांडिया स्टिक के बीच में कॉमा के इस्तेमाल के साथ लिखा है 'इस नवरात्रि खेलो, मगर प्यार से' जिसका सीधा सरल अर्थ है. 'इस नवरात्रि प्यार से खेलो' हालाँकि यह अर्थ भी द्वीअर्थी है. पहले अर्थ में प्यार का इस्तेमाल भाव के रूप में लिया जा सकता है तो दूसरे अर्थ में प्यार का अर्थ क्रिया के रूप में लिया जा सकता है. पहले अर्थ में 'खेलना' का तात्पर्य डांडिया खेलने से है जबकि दूसरे अर्थ में सेक्स की प्रक्रिया से है.
कंडोम के प्रचार प्रसार में हमेशा ही द्वीअर्थी संवादों का इस्तेमाल किया जाता है और ज़ाहिर सी बात है पहले अर्थ को कोई इसलिये नही लेगा क्योंकि एक तो ये कंडोम का प्रचार है दूसरा बैनर में सनी की क्लीवेज दिखाती हुई तस्वीर लगी है इस प्रकार दूसरे अर्थ का पर्याय यह है कि 'इस नवरात्रि डांडिया मत खेलो प्यार से खेलो (ध्यान रहे प्यार यहाँ क्रिया है)'.
असल में बाज़ारवाद अपने अति पर है, बाज़ार में कॉम्पटिशन बहुत ज़्यादा है और इस प्रतिस्पर्धा भरे माहौल में हर ब्राण्ड अपने उत्पादन के प्रचार के लिये नये-नये तरीकों का इस्तेमाल करता है. इसी बहाव में मैनफोर्स कंडोम का नया ऐड नवरात्रि पर प्यार से खेलने कह रहा है इस ऐड को करने वाली सनी को ना तो हिंदू धर्म के बारे में ठीक से पता है ना ही दुर्गा पूजा की महत्ता के बारे में, जान पड़ता है मैनफोर्स ने एक तरह से सनी की अनभिज्ञता का फ़ायदा उठाया है. मान्यता के अनुसार क्योंकि दुर्गा माँ कुँवारी थीं तो नवरात्रा के दौरान शारीरिक सम्बंध बनाना वर्जित है ऐसे में ये कहना कि 'इस नवरात्रा खेलो, मगर प्यार से' एक ओर धार्मिक आस्था का मज़ाक़ बनाना है तो दूसरी ओर युवा पीढ़ी को उकसाना माना जायेगा.
नवरात्रि हिंदुओं का सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है. बंगाल और आसपास के प्रभावित क्षेत्रों में दुर्गा पूजा कही जाती है लेकिन ज़्यादातर जगहों पर नवरात्रि के नाम से ही जाना जाता है. नवरात्रि में यथा शक्ति उपवास या फलाहार इत्यादि से नौ दिन देवी की पूजा की जाती है और दसवें दिन दशहरा का उत्सव मनाया जाता है इस दिन उपवास करने वाले अपना व्रत खोलते है और ग्यारहवें दिन देवी की विदाई का उत्सव मनाया जाता है.
दुर्गा पूजा यानि स्त्री की पूजा जिसका आविर्भाव सभी देवता की विशिष्ट शक्तियों के मिलने से हुआ हो, अगर आप दुर्गा सप्तसती के पन्नो से होकर गुज़रते हैं तो दूसरे अध्याय में देवी के आविर्भाव का वर्णन इस प्रकार है “श्री विष्णु के मुख से एक महान तेज प्रकट हुआ. इसी प्रकार ब्रह्मा शंकर तथा इन्द्र आदि अन्यान्य देवताओं के शरीर से भी एक भारी तेज़ निकला. एकत्रित होने पर वह एक नारी के रूप में परिणत हो गया. भगवान शंकर के तेज से उस देवी का मुख प्रकट हुआ. यमराज के तेज़ से बाल. श्री विष्णु के तेज से उसकी भुजाएँ उत्पन्न हुईं. चंद्रमा के तेज से दोनों स्तनों का और इन्द्र के तेज से कटिभाग का प्रादुर्भाव हुआ. वरुण के तेज से जंघा और पिंडली तथा पृथ्वी के तेज से नितम्बभाग प्रकट हुआ. ब्रह्मा के तेज से दोनों चरण और सूर्य के तेज से उनकी ऊँगलियाँ हुई. वसुओं के तेज से हाथों की ऊँगलियाँ और कुबेर के तेज से नासिका प्रकट हुई. देवी के दाँत प्रजापति के तेज से और तीनों नेत्र अग्नि के तेज से प्रकट हुए थे. उनकी भौंहें संध्या के और कान वायु के तेज से उत्पन्न हुए थे “ और ग्यारहवें अध्याय में स्वयं देवता कहते है 'जगत की समस्त स्त्रियाँ तुम्हारा ही स्वरूप हैं'.
लेकिन ये कहते हुए देवता भी कहाँ सोच पाये थे कि जिस शक्ति की उपासना स्वयं देवता भी करते है उस शक्ति को मात्र शरीर समझा जायेगा और कामुकता के रूप में इस्तेमाल किया जायेगा. जिन स्तनों को चंद्रमा ने अपने ओज से बनाया उस स्तन को देखकर पुरुष की कामुकता जागृत होती है हालाँकि उसी स्तनों से दूध पीकर वो बड़ा हुआ होता है.
अंत में यही कहूँगी एक ओर तो हम स्त्री की उपासना देवी स्वरूप करते हैं. नवरात्रि में गरबा या डांडिया भी उसी उपासना का हिस्सा है. ऐसे में 'प्यार से खेला...' के बहाने जो कहा जा रहा है, वह निकृष्ट है. आख़िर समाज में ये दोहरापन क्यों व्याप्त है?
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