दुनिया का पहला, अंतिम, एकमात्र और असली धर्म मानवता!
आतंकवाद कुछ और नहीं, बल्कि कट्टरता का ही बाय-प्रोडक्ट है. मूल ख़तरा धार्मिक कट्टरता से है. कट्टरता बढ़ेगी, तो आतंकवाद बढ़ेगा. कट्टरता ख़त्म हो जाए, तो आतंकवाद ख़त्म हो जाएगा.
-
Total Shares
आतंकवाद के मुद्दे पर इस्लामिक कट्टरता का खुलकर विरोध करता हूं, लेकिन हिन्दू राष्ट्र के विचार को भी अपना समर्थन क्यों नहीं देता? इसे आप बलात्कारी बाबा राम रहीम के रंगबाज़ों के उत्पात के उदाहरण से समझ सकते हैं. अगर भारत हिन्दू राष्ट्र बन जाए, तो राम रहीम, रामपाल, आसाराम और रामवृक्ष जैसे रामनामी क्रिमिनल ही एक दिन हिन्दुओं के बगदादी, लादेन, हाफिज़ सईद और मसूद अजहर बनकर गली-गली आतंकवाद का धंधा करेंगे.
आज भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है. तब तो धर्म के नाम पर इन पापियों ने इतने गुंडे पाल लिए हैं, फिर भी इन्हें रोकने-टोकने वाला कोई नहीं. फिर अगर भारत सचमुच में हिन्दू राष्ट्र बन जाए, तो भला इन्हें कौन रोकेगा-टोकेगा? फिर तो धर्म की रक्षा का संवैधानिक ठेका प्राप्त करके ये सरकार, कोर्ट और सिस्टम सबसे ऊपर हो जाएंगे. आज तो ये ऑकेजनल हिंसा करते हैं, लेकिन तब ये प्रतिदिन हिंसा करेंगे. इनके डर से कोई कुछ बोल नहीं पाएगा. हिंसा को ही ये अपना मूल कारोबार बना लेंगे.
मानवता को धर्म बना लो चैन मिलेगा
दरअसल, आतंकवाद कुछ और नहीं, बल्कि कट्टरता का ही बाय-प्रोडक्ट है. मूल ख़तरा धार्मिक कट्टरता से है. कट्टरता बढ़ेगी, तो आतंकवाद बढ़ेगा. कट्टरता ख़त्म हो जाए, तो आतंकवाद ख़त्म हो जाएगा. इसीलिए, जब मैं मुसलमानों की कट्टरता का विरोध करता हूं, तो मेरे हिन्दूवादी मोगैम्बो मित्र ख़ुश हो जाते हैं. लेकिन जब इन मोगैम्बो मित्रों द्वारा किये जा रहे धर्म के धंधे और बोई जा रही कट्टरता का विरोध करता हूं, तो इनकी भृकुटि टेढ़ी हो जाती है.
धर्म जब सत्य, अहिंसा, दया, करुणा इत्यादि मानवोचित गुणों से दूर हो जाए, तो वह अधर्म बन जाता है. हम सारे लोग सिर्फ़ इस डर से धर्म के नाम पर प्रचलित इन तमाम अधर्मों का समर्थन करते रहते हैं, ताकि इनके कट्टरपंथी अनुयायियों को बुरा न लग जाए. हम तमाम लोग झूठ बोलते हैं कि अमुक धर्म महान है. "मजहब नहीं सिखाता आपस में वैर रखना" जैसी कविताएं भी झूठी हैं और धर्म के अधर्म को संरक्षण देने के मकसद से लिखी गई हैं. मजहब हमें जो सिखाता है, वह तो पूरी दुनिया में हम देख ही रहे हैं. दरअसल, ऐसी बातों का निहितार्थ बस इतना होता है कि "तुम अपना अधर्म चलाओ. मैं अपना अधर्म चलाऊंगा. मेरी टेरिटरी में तुम मत घुसो. तुम्हारी टेरिटरी में मैं नहीं घुसूंगा." ये कविताएं दरअसल मुझे विभिन्न गिरोहों के बीच सीज़फायर की सलाह जैसी लगती हैं.
इसीलिए, अपना धर्म तय करने के लिए मैं किसी कविता, किताब, संस्था या धर्मगुरु पर निर्भर नहीं हूं. जो विचार मानवता की कसौटी पर खरा उतरता है, उसे ही अपना धर्म बना लेता हूं. इसीलिए, मैं कभी गर्व से नहीं कहता कि मैं हिन्दू हैं. मुस्लिम मित्रों को भी सुझाव देता हूं कि आप भी अपने मुस्लिम होने पर गर्व मत कीजिए. जब हम अपने हिन्दू-मुस्लिम होने पर गर्व करने लगते हैं, तभी से हमारे अधर्मी और आतंकवादी बनने की शुरुआत होने लगती है.
कब अक्ल आएगी हमें?
ईश्वर ने हमें मानव बनाया है. मानव ने अलग-अलग झुंड बनाया और इन अलग-अलग झुंडों ने अपना-अपना धर्म बना लिया. इसलिए आज दुनिया के जितने भी प्रचलित धर्म हैं, वे नकली हैं, जिसकी रचना ईश्वर ने नहीं, बल्कि मनुष्यों के अलग-अलग झुंडों ने अपने-अपने स्वार्थ के लिए की हैं. इसीलिए उनमें मनुष्यों की स्वभावगत विकृति, अहंकार, श्रेष्ठता-बोध, विस्तारवाद, लालच, हवस और हिंसा इत्यादि दुर्गुण समाहित हो गए हैं.
अगर हम समझ सकें तो दुनिया का पहला, अंतिम, एकमात्र और असली धर्म "मानवता" ही है, जिसकी रचना स्वयं ईश्वर ने मानव की रचना के साथ ही कर दी. इसमें कोई मिलावट नहीं है. इसमें हर मनुष्य का हित शामिल है. इसमें कोई भेद-भाव और हिंसा नहीं है. इसमें सृष्टि के समस्त प्राणियों के लिए दया, करुणा, सहयोग और समर्थन का विचार है. मानवतावादी विचारों को आगे ले जाने के लिए धर्म नाम के अधर्म को दुनिया से ख़त्म करना होगा!
ये भी पढ़ें-
क्या हिन्दू टेरर सियासी साजिश थी !
25 कड़वे सवाल, जिनपर चिंतन करना मुसलमानों के हित में!
फेसबुक VS धर्म : खतरा लोगों से नहीं बल्कि उनके बेबुनियाद तथ्यों से है
आपकी राय