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Updated: 16 अक्टूबर, 2017 12:57 PM
अनुराग तिवारी
अनुराग तिवारी
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शेक्सपियर कह गए हैं, नाम में क्या रखा है, गुलाब को चाहे जिस भी भाषा में बोलिए रहेगा गुलाब ही. ठीक वैसे ही मान लेना चहिये रंग में क्या रखा है? अब आप यूपी रोडवेज की बसों का रंग नीला, लाल के बाद अब भले भगवा कर दें, बेचारे पैसेंजर को इससे क्या? उसे तो बस अपनी जर्नी पूरी करनी है वो इस दुआ के साथ कि सही-सलामत पूरी हो. बीते दिनों यूपी रोडवेज की बसों का रंग भगवा करने पर बवाल शुरू होना था तो हो गया. यूपी की बीजेपी सरकार पर आरोप लगा कि वो बसों के बहाने भगवाकरण के एजेंडे को आगे बढ़ा रही है.

सरकार बदलने पर बसों का रंग बदलना और ऐसे आरोप लगना रस्मी त्योहार हो गया है. इस रंग बदलने पर प्रदेश सरकार के प्रवक्ता श्रीकांत शर्मा की दलील है कि भगवा रंग त्याग और समर्पण का प्रतीक है. रोडवेज बसों में सफर करने वाले अच्छी तरह से जानते हैं कि इस डिपार्टमेंट में कितना और कैसा त्याग-समर्पण है. अब यह तो शर्मा जी ही बेहतर बता सकते हैं कि रंग बदलने से डिपार्टमेंट अब और कितना त्यागी और समर्पित बनेगा.

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एक अनुमान एक मुताबिक़ यूपी रोडवेज में इस समय लगभग 13 हजार बसें हैं. इनमे से कुछ वॉल्वो और जनरथ टाइप एसी बसें छोड़ दी जाएं तो ऊपर वाला ही इनका मालिक है. ये कब रास्ते में खड़ी हो जाएं और इनके कंडक्टर-ड्राईवर दूसरी रोडवेज बस को रोक सवारी ट्रांसफर की कवायद में लग जाएं, कहा नहीं जा सकता. मजाल है कि एक यूपी रोडवेज बस का पैसेंजर दूसरी में बिना हील-हुज्जत के एंट्री पा जाए.

न जाने सुनसान रास्ते पर खड़े मुसाफिरों को कितनी बसों के स्टाफ से दुत्कार के बाद किसी एक बस में जगह मिलती है. किसी रूट पर और गड्ढा युक्त सड़कों पर रोडवेज की बस का कॉकटेल मिल गया तो आप रास्ते भर हनुमान-चालीसा की ये लाइनें 'नासे रोग हरे सब पीरा, जपत निरंतर हनुमत बीरा...' पढ़ते हुए ही जर्नी करेंगे. ताकि मंजिल पर पहुंचने पर आपका शरीर दर्द से कराह न उठे.

यूपी रोडवेज की बस में बैठ कर तो देखिए साहब, ड्राईवर और कंडक्टर मिलकर सामने इतना सामान भर लेते हैं कि उतनी तो पूरी बस में सवारी नहीं होती. सामने बैठने वाली सवारी के पास पांव पसारने की जगह नहीं होती. ड्राईवर साहब को सामान की इतनी चिंता होती है कि अपने आसपास गोदाम बना लेते हैं. सबसे दिलचस्प बात तो यह रही कि हाल ही यूपी के परिवहन मंत्री स्वतंत्र देव सिंह लगतार बसों पर छापे मार रहे हैं. लेकिन, उन्हें किसी भी बस में ड्राईवर के पास रखे माल का अवैध कन्साइनमेंट नजर नहीं आया. हो सकता है क्रिकेट मैचों की तरह छापा भी फिक्स रहा हो.

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कहने को तो लाहौर में भी मेट्रो चल पड़ी है और वहां तो बाकायदा ऑरेंज लाइन बनाई गई है. स्टेशन से लेकर मेट्रो के अंदर बाहर सबका रंग ऑरेंज, केसरिया या कहें तो भगवा है. लेकिन क्या आपको लगता है वहां भी त्याग और समर्पण की भावना बलवती होगी? इन्तजार करिए तालिबानियों की नजर पड़ने का, फिर समझ में आ जाएगा कितना त्याग और बलिदान हुआ.

यूपी रोडवेज के बारे में कुछ बातें और ताकि अगर आप किसी एग्जाम में बैठें तो आंकड़े काम आ जाएं. यूपी रोडवेज आजादी के चार महीने पहले ही शुरू हो गई थी यानि 15 मई, 1947 को. तब पहली बस लखनऊ और इसके पड़ोसी जिले बाराबंकी तक चली थी. यूपी रोडवेज नाम भी तभी का पड़ा हुआ है क्योंकि तब इसे यूपी गवर्नमेंट रोडवेज के नाम से जाना जाता था. इसका नाम 1972 में चौथी पंचवर्षीय योजना के दौरान बदला गया था और नाम मिला था उत्तर प्रदेश स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन (UPSRTC). तब से आजतक इसका हेडक्वार्टर लखनऊ में ही.

वर्तमान में यूपी रोडवेज के पास पैसेवालों के लिए स्लीपर, एसी, प्लेटिनम लाइन, रॉयल क्रूजर जैसी बसें हैं तो आम गरीब के लिए साधारण बस, गोल्ड लाइन, सिटी बस, जनता बस और मिनी बस की सेवाएं शामिल हैं. सर्विस क्वालिटी के मामले में इनका रवैया वैसा ही है, जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है. बेहतर होगा रंग के साथ-साथ सीएम योगी जी यूपी रोडवेज के कर्मचारियों का हृदय परिवर्तन कर दें. यकीन मानिए इससे बड़ी कारसेवा यूपी की जनता के लिए कुछ न होगी. 

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लेखक

अनुराग तिवारी अनुराग तिवारी @vnsanut

लेखक पत्रकार हैं

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