जापानी सोमवार: ये काम से राहत मिली है या कर्फ्यू में ढील!
जापान की सरकार ने अपने इस कैंपेन के तहत सभी कंपनियों को निर्देश दिया है कि वे कर्मचारियों को सोमवार की सुबह छुट्टी दें और दोपहर से काम शुरू करें. सरकार ने इसे शुरू करने से पहले मंत्रालय में ही इसका प्रयोग भी कर लिया है.
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जब कभी बात तकनीक की होती है तो जापान की जिक्र होना लाजमी है, लेकिन इसी जापान का जिक्र ओवरटाइम को लेकर भी होता है. जापान में करीब एक चौथाई कंपनियों के कर्मचारी हर महीने 70-80 घंटे ओवरटाइम करते हैं. इसी के चलते अधिक काम करने की वजह से जापान में बहुत से लोगों को दिल के दौरे पड़ जाते हैं और कई तो मौत को गले लगाने से भी नहीं चूकते. लोगों की जिंदगी में वर्क-लाइफ-बैलेंस के लिए जापान की सरकार भी समय-समय पर कई तरह के कैंपेन चलाती रहती है. इसी के तहत अब जापान की सरकार ने शाइनिंग मंडे की शुरुआत की है. चलिए जानते हैं इसके बारे में.
इसलिए की गई शाइनिंग मंडे की शुरुआत
जापान की सरकार ने अपने इस कैंपेन के तहत सभी कंपनियों को निर्देश दिया है कि वे कर्मचारियों को सोमवार की सुबह छुट्टी दें और दोपहर से काम शुरू करें. सरकार ने इसे शुरू करने से पहले मंत्रालय में ही इसका प्रयोग भी कर लिया है. इसके तहत सरकार ने मंत्रालय के करीब एक तिहाई कर्मचारियों को छुट्टी दे दी और पाया कि दोपहर से काम शुरू होने के बावजूद काम प्रभावित नहीं हुआ. जापान सरकार ने कर्मचारियों को वर्कलोड से बचाने के लिए कदम तो सराहनीय उठाया है, लेकिन देखने वाली बात होगी कि इससे लोगों की जिंदगी में कितना बदलाव आता है.
कैसे ज्यादा काम करते हैं जापान के लोग?
जापान में एक पुरुष प्रति सप्ताह औसतन 80 घंटे काम करता है. यानी अगर हफ्ते में 5 दिन के वर्क कल्चर के हिसाब से देखा जाए तो 12 घंटे रोज. ऐसा नहीं है कि हर कंपनी में ओवरटाइम कराया जाता है. कुछ में 8 या 9 घंटे काम होता है, यानी कई ऐसी भी कंपनियां होंगी जो अपने कर्मचारियों से रोजाना 12 घंटे से भी अधिक काम करवाती होंगी. वहीं अगर भारत की बात की जाए तो यहां कंपनी किसी कर्मचारी से सप्ताह में 48 घंटे से अधिक काम नहीं करवा सकती है. अब जरा सोच कर देखिए, जहां भारत में 48 घंटे का नियम है वहीं दूसरी ओर जापान में लोग औसतन 80 घंटे काम कर रहे हैं, जो लगभग दोगुना है.
इस शख्स की मौत के बाद सरकार ने कसी कमर
ऐसा नहीं है कि जापान की सरकार वहां के लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए कुछ नहीं कर रही थी, लेकिन 2015 में एक विज्ञापन कंपनी के कर्मचारी मतसुरी तक्काशी की आत्महत्या के बाद सरकार ने कमर कस ली. मतसुरी ने अपनी मौत से पहले महीने भर में 100 घंटे तक ओवरटाइम किया था. मतसुरी की मौत को कारोशी कहा गया. कारोशी का मतलब है कि अत्यधिक काम की वजह से मौत होना. इस घटना ने पूरे जापान को झकझोर दिया था, जिसके बाद से सरकार लगातार कई तरह के कैंपेन चला रही है.
प्रीमियम फ्राइडे भी किया था शुरू
जापान की सरकार ने इससे पहले प्रीमियम फ्राइडे नाम का एक कैंपेन भी शुरू किया था. इसके तहत कंपनियों से कहा गया था कि वह हर महीने के आखिरी शुक्रवार को अपने कर्मचारियों को 3.00 बजे छोड़ दें, ताकि वह अपने परिवार के साथ कुछ समय बिता सकें. दरअसल, जापान की सरकार ने पाया कि वहां के युवा काम में इतना अधिक व्यस्त हो गए हैं कि वह शादी भी नहीं कर रहे और परिवार तक नहीं बढ़ा रहे हैं. अत्यधिक काम करके युवा इतना थक जाते हैं कि उनके अंदर सेक्स करने की इच्छा ही नहीं रहती. बहुत सी महिलाएं करियर और गृहस्थी में से करियर को चुनती हैं और इसी वजह से वह शादी नहीं करतीं. अगर जापान की मौजूदा हालत के हिसाब से ही सब कुछ चलता रहा तो एक रिसर्च के मुताबिक 16 अगस्त 3766 तक जापान में सिर्फ एक इंसान बचेगा. इससे जापान की आबादी भी गिरने लगी. वहीं दूसरी ओर, काम के अत्यधिक तनाव की वजह से आत्महत्या और लोगों की मौत के मामलों ने भी सरकार को इस बारे में सोचने पर मजबूर किया.
जापान की सरकार ने अपने देश के लोगों के लिए इतने शानदार कैंपेन तो चलाए हैं, लेकिन सोचने वाली बात ये है कि क्या वाकई इन कैंपेन का कोई फायदा हो रहा है? एक अध्ययन से पता चला है कि प्रीमियम फ्राइडे के बारे में करीब 89 फीसदी कर्मचारियों को पता था, लेकिन इसका लाभ सिर्फ 11.2 फीसदी लोगों ने उठाया. सवाल ये है कि बाकी लोगों को कंपनी ने घर नहीं जाने दिया या वे खुद नहीं गए? दोनों ही सूरतों में सरकार का कैंपेन नाकाम ही समझिए. यहां जापान की सरकार को कंपनियों पर सख्ती दिखानी होगी, ताकि वे कर्मचारियों से ओवरटाइम ना करवाएं, तभी हालात सुधर सकते हैं. अब सरकार का शाइनिंग मंडे कैंपेन कुछ काम आता है या नहीं, ये देखना दिलचस्प होगा.
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