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Updated: 27 अप्रिल, 2020 08:54 PM
अनु रॉय
अनु रॉय
  @anu.roy.31
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क्या देश से कोरोना महामारी (Coronavirus) का संकट ख़त्म हो चुका है? क्या हम ग़रीबी-बेरोज़गारी और भुखमरी जैसी समस्याओं से निजात पा चुके हैं? अभी तो पालघर वाली घटना की आग भी ठंडी नहीं हुई है कि बुद्धिजीवियों ने नया ड्रामा शुरू कर लिया है. मुफ़्त का इंटरनेट और लॉकडाउन (Lockdown) में फ़्री का समय, एंटरटेनमेंट के लिए कुछ तो करेंगे ही न. अब जैसे भगवा झंडा (Saffron Flag) लहराने से उनकी धार्मिक भावना को ठेस पहुंचने लगी है. किसी ने अपनी दुकान पर हिंदू फल की दुकान (Hindu Fruit Shop) लिख दिया तो ये नफ़रत फैलाने का सामान उनको दिख रहा. मुझे सच में समझ नहीं आ रहा कि क्या हुआ अगर किसी हिंदू ने अपनी दुकान पर भगवा/केसरिया झंडा लहरा लिया. इससे कैसे धार्मिक भावना को ठेस पहुंच गयी?

मैं जहां रहती हूं इस एरीआ से थोड़ी दूरी पर मुस्लिम लोगों का आशियाना है. उनकी दुकानें हैं और उन पर हरा झंडा लगा हुआ है. अभी लॉक डाउन है वरना जा कर फ़ोटो क्लिक करके दिखा देती. आप में से भी कई लोगों ने अपने आस-पास के एरिया में देखा होगा हरा झंडा. क्या इससे हिंदू होने के नाते आपकी धार्मिक भावना को कभी ठेस पहुंची? क्या आपने उनके ऊपर कभी नफरत फैलाने के नाम पर केस दर्ज करवाया?

सच में, इस देश में जो नहीं होने वाला होगा वो भी लीब्रल्स अपने आप को ज्ञानी दिखाने के लिए करवा कर ही दम लेंगे. इनके बाबू जी का कुछ भी नहीं जाएगा, पिसेंगे दोनों तरफ़ के ग़रीब लोग. ऐसे झंडा फहराने पर केस दर्ज करने लगेंगे तो लोग पोलराइज़ होंगे ही. ग़ुस्से में या सपोर्ट में आ कर बाक़ी के लोग भी अपनी-अपनी दुकानों और घरों पर भी भगवा झंडा फहराने लगेंगे. नफ़रत की दीवार और ऊंची होगी.

Lockdown, Fruits, Shops, Hindu, Muslims, Hateजमशेदपुर की वो फलों की दुकान जिसने गर्म कर दिया है चर्चा का बाजार

इतनी सी बात ये मूर्ख, देश के दुश्मन क्यों नहीं समझ रहे. एक आम हिंदू या मुस्लिम को झंडे से कोई मतलब नहीं है. उसे जो जहां से ख़रीदना होगा ख़रीद लेगा. जैसे मेरे गांव में तरबूज़ वाले चाचा, अलता और झुमके वाली दफ़ालीन, चूड़ी और लहठी पहनाने वाले चूड़ीहार सब के सब मुसलमान हैं और सब हमारे लिए हमारे अपने.

बेटी का ब्याह हो या दुलहिन का गौना इन्हीं के यहां श्रृंगार का सामान, संदेश में जाने की मिठाई ख़रीद कर आती है. लाह की लहठी शुभ तभी मानी जाती थी जब नईज़ मामा ख़ुद आ कर वो लहठी पहनाते हैं लेकिन इस नाटक के बढ़ने के बाद लोग नहीं जाएंगे अपने धर्म से बाहर वालों की दुकान पर. क्या ये महान ढोंगी बुद्धिजीवी यही चाहते हैं? देश ग़रीबी से लड़े, कोरोना से लड़े या देश के दुश्मन जो ट्वीटर पर बैठ नफ़रत की फसल बो रहे उनसे लड़े.

वो लोग जो अपने एजेंडे के तहत किसी छोटी सी बात को मुद्दा बनाकर ट्वीट कर देते हैं कि किसी चीज से नफ़रत फैल रही है क्या वो कभी ग्राउंड पर गए? क्या इन लोगों ने कभी दुकान वालों से बात की ? वहीं अगर बात पुलिस की हो तो चोरी डकैती या फिर हाल में ही साधुओं की हत्या पर हाथ पर हाथ धरकर बैठने वाली पुलिस ने तब इतनी तत्परता क्यों नहीं दिखाई ? आज जब हिंदू और भगवा आया तो फ़ौरन ही इन्होने भी FIR लिख ली.

चलते चलते बता दूं कि बीते दिन केवल उस फल वाले पर FIR दर्ज हुई थी अभी पता चला कि वो तमाम दुकानदार जिन्होंने अपनी अपनी दुकानों पर भगवा झंडे लगाए थे उनपर भी केस दर्ज हुआ है. पालघर वाला मामला अभी शांत नहीं हुआ है उसपर ये नौटंकी सच में हद हो गयी है.

खैर मैं बस एक बात कहते हुए अपनी बात को विराम दूंगी कि प्लीज़ इन गिद्ध बनें लोगों की बातों में मत आइएगा. ये आपके सगे बिलकुल नहीं है. आप जहां रह रहें आपके अपने वो लोग हैं. उनके साथ प्यार से रहिएगा. ये ट्वीट करके सिर्फ़ आपके ख़िलाफ़ लोगों को  एक कर रहें हैं.  याद रहे आपके बुरे वक़्त में आपके पड़ोसीही काम आएंगे न कि ट्वीट करने वाले ये फ़ेक गिद्धजीवी. 

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लेखक

अनु रॉय अनु रॉय @anu.roy.31

लेखक स्वतंत्र टिप्‍पणीकार हैं, और महिला-बाल अधिकारों के लिए काम करती हैं.

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