JNU के नजीब का मामला एसीपी प्रद्युम्न को सौंपना ही बाकी है
नजीब मामले में जिस तरह की दलीलें सीबीआई दे रही है उसने हमारी व्यवस्था की सच्चाई उजागर कर दी है और बता दिया है कि आखिर हम अपराध को नियंत्रित करने में क्यों नाकाम हैं.
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अक्सर ही अख़बारों के पन्ने पलटते या फिर टीवी चैनल बदलते हुए हमारी नजरों के सामने 'नजीब' का नाम आता है. जिन्हें नजीब के बारे में पता है अच्छी बात है. जो नहीं जानते उन्हें बता दें कि नजीब जेएनयू का छात्र था जो 15 अक्टूबर 2016 को रहस्यमय परिस्थितियों में कैम्पस से गायब हो गया था. कैम्पस से नजीब क्यों गायब हुआ ये सवाल आज भी जांच का विषय है. हां मगर नजीब के गायब होने के पीछे की एक बड़ी वजह छात्र राजनीति को माना जा रहा है. नजीब के यार दोस्तों की मानें तो नजीब बहुत ही मुखर ढंग से केंद्र सरकार विशेषकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना करता था और उसका कुछ एक बार एबीवीपी के कार्यकर्ताओं से इन बातों को लेकर झगड़ा भी हुआ था.
नजीब का गायब होना एक बड़ा मुद्दा बना और इसे लेकर जगह-जगह विरोध प्रदर्शन हुए. बात जब ज्यादा बढ़ गयी तो पिछले साल 2016 में ये मामला सीबीआई ने अपने हाथों में ले लिया. अभी बीते दिनों ही इस मामले की सुनवाई हुई है और सीबीआई ने दिल्ली हाई कोर्ट को बताया कि यह महज किसी व्यक्ति की 'गुमशुदगी' का मामला है क्योंकि अब तक ऐसे कोई साक्ष्य नहीं मिले हैं जिससे पता चले कि कोई अपराध हुआ है. जिस तरह की दलीलें सीबीआई दे रही है उससे तो लगता है कि नजीब का मामला टीवी धारावाहिक सीआईडी को ही सौंप देना चाहिए था.
नजीब को गायब हुए एक लम्बा वक़्त गुजर चुका है मगर अब भी पुलिस उसे ढूंढने में नाकाम है
सुनवाई के दौरान कई ऐसी बातें आई हैं जो हैरत में डालने वाली हैं. जांच एजेंसी ने न्यायमूर्ति एस मुरलीधर और न्यायमूर्ति आई एस मेहता की पीठ को अवगत कराया कि सीएफएसएल चंडीगढ़ से संदिग्ध छात्रों के 9 में से 6 मोबाइल फोन से जो डेटा मिले, उससे संदिग्ध छात्रों के खिलाफ लगे आरोपों का दूर-दूर तक किसी संबेध का कोई पता नहीं चलता. सीबीआई के वकील ने अदालत को ये भी बताया कि अभी वे इस स्थिति में नहीं हैं कि इस बात की पुष्टि कर सकें कि अपराध हुआ भी है या नहीं. सीबीआई और उनके वकील यहां भी रुक जाते तो ठीक था मगर इसके बाद जो उन्होंने कहा उसने पुलिस और भारतीय जांच एजेंसी की सम्पूर्ण कार्यप्रणाली पर कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं.
सुनवाई के दौरान आगे जांच एजेंसी ने कोर्ट को बताया कि सीएफएसएल चंडीगढ़ तीन मोबाइल फोन की जांच नहीं कर सका क्योंकि दो फोन क्षतिग्रस्त हालत में हैं और तीसरे में पैटर्न लॉक लगा हुआ है, जिसे अनलॉक नहीं किया जा सका. सीबीआई के अनुसार इन तीनों फोन को हैदराबाद स्थित इसके सीएफएसएल में भेजा जायेगा, जहां उम्मीद है कि इनकी जांच हो सकेगी. इतनी बातें पढ़कर और ये जानकार कि चूंकि 'फोन में पैटर्न लॉक' लगा था इसलिए जांच एजेंसी आगे कुछ नहीं कर सकी विचलित करने वाला है. मतलब टेक्नोलॉजी और डिजिटल इंडिया वाले युग में ये एक ऐसी बात है जो किसी भी आम भारतीय को शर्मिंदा कर सकती है.
सीबीआई द्वारा प्रस्तुत किये गए इस तर्क का यदि अवलोकन किया जाए तो मिलता है कि ये एक वाहियात और बेबुनियाद तर्क है. इसे एक ऐसा तर्क माना जा सकता है जिसे देखकर साफ हो जाता है कि जांच एजेंसी अपनी नाकामी छुपाने के लिए एक ऐसी बात को अदालत के सामने रख रही है, जिसने ये साफ कर दिया है कि क्यों हमारा भारतीय सिस्टम लगातार करप्शन की भेंट चड़ता जा रहा है. सीबीआई के कथन की आप खुद कल्पना कर के देखिये.
सीबीआई के इस कथन ने उसकी पूरी कार्यप्रणाली पर सवालियां निशान लगा दिए हैं
यदि किसी थाने का हवालदार ये बात रखता कि तमाम कोशिशों के बावजूद उससे मोबाइल फोन का पैटर्न लॉक नहीं खुला तो इस पर आसानी से यकीन किया जा सकता था. ऐसा इसलिए क्योंकि जो और जैसा हमारा सिस्टम है. हम ये मान सकते थे कि जरूर उस हवालदार को टेक्निकल मदद नहीं मुहैया कराई गयी होगी परिणाम स्वरूप वो जो भी कह रहा है हमें उसे मान लेना चाहिए मगर जब ये बात सीबीआई की टीम कहे तो दुःख, आक्रोश, व्यंग्य, प्रतिक्रिया सारे भावों का आना लाजमी है.
सीबीआई ने अपने इस कथन से सारे देश के सामने उसकी खुद की छवि को संदेह के घेरों में डाल दिया है. कहना गलत नहीं है इससे बेहतर तो टीवी धारावाहिक सीआईडी के एसीपी प्रद्युमन और दया केस को हल कर लेते. कम से कम उस सीरियल की टीम सख्त जांच करती दिखती हैं और इन्हें देखकर दर्शक ये तो सोचते हैं कि पुलिस या जांच एजेंसी की पड़ताल में कमी नहीं हो सकती. एक भ्रम ही सही कम से कम सीआईडी के सभी केस हल तो हो जाते हैं. इसे एक मजाक ही समझा जा सकता है कि इतने समय बाद भी नजीब का केस महज गुमशुदगी का केस बना हुआ है.
अंत में हम बस ये कहते हुए अपनी बात खत्म करेंगे कि इस बेतुके बयान से न सिर्फ सीबीआई ने हमारे भरोसे को तोड़ा बल्कि उसे चकनाचूर कर ये बता दिया है कि जो पड़ताल हम टीवी धारावाहिक CID में देखते हैं वो फसाना है और हकीकत बस इतनी ही है कि हमारी असल पुलिस / जांच एजेंसी एक पुराने मोबाइल का पैटर्न लॉक नहीं खुलवा सकती.
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