JNU Protest का विरोध कीजिए मगर छात्रों का चरित्रहनन मत कीजिए!
JNU में छात्रों के Fee Hike को लेकर प्रदर्शन के बाद एक बड़ा वर्ग है जो सामने आ गया है और जिसने ऐसे तमाम आरोप लगाने शुरू कर दिए हैं जो साफ़ तौर से JNU के छात्रों का चरित्रहनन करते नजर आ रहे हैं.
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JNUमें हो रहे Student Protest का विरोध कीजिए मगर वहां पढ़ रहें छात्रों का चरित्रहनन मत कीजिए.चरित्रहनन कैसे? सवाल तो आपने भी सुने होंगे. आइये कुछ और कहने बताने से पहले सवालों पर नजर डाल लें.
तुम कैंपस में सेक्स करते हो तुम्हें प्रोटेस्ट करने का क्या हक़ है?
तुम शराब पीती हो तुम्हें प्रोटेस्ट करने का क्या हक़ है?
कैंपस में कंडोमवाली मशीन है. हर रात सैकड़ों कंडोम यूज़ होते हैं. तुम्हें प्रोटेस्ट करने का क्या हक़ है?
तुम्हारे मेस में लड़कियां बुलाईं जाती है सेक्स के लिए, तुम किस मुंह से प्रोटेस्ट कर रहे हो?
तुम ‘किस्स ऑफ़ लव’ फ़ेस्टिवल मानते हो तुम्हें पढ़ाई से क्या लेना-देना?
तुम गे-लेज़्बीयन राइट्स के लिए बोलते हो, सनातन धर्म का अपमान करते हो तुम्हें प्रोटेस्ट का क्या हक़ है?
तुम बूढ़े हो गए हो. तुम्हारे बाल उड़ चुके हैं और कितने साल तक ख़ुद को युवा या छात्र कहवाना पसंद करोगे?
तुम लड़कियां सिगरेट-वीड पीती हो. नशे में धूत होती को. कई लड़कों से सेक्स करती हो. तुम लड़की नहीं वेश्या हो.
तुम 5 साल से बैठ कर सरकार के पैसे पर अय्याशी कर रहे हो.
और तुम अंधे हो तो प्रोटेस्ट में क्यों आए?
अपने प्रदर्शन के चलते जेएनयू के छात्र पुलिस और देश की जनता दोनों से दोतरफा मार झेल रहे हैं
वाह इतने लॉजिकल सवाल. मन प्रसन्न हो गया. मिज़ाज बन गया. जितने दिनों से फ़ी बढ़ाने को ले कर JNU वाला विवाद चल रहा उतने दिनों से विरोधी पक्ष के मुंह से यही सारे सवाल सुनती आ रही हूं. मतलब JNU वाले फ़ी हाइक को लेकर विरोध कर रहें और आप विरोध उनकी निजी ज़िंदगी को उछाल कर, कर रहें.
एक बात बताइए JNU में पढ़ने वाला छात्र 18 साल से ज़्यादा का है या नहीं? उसे अपनी ज़िंदगी को अपनी तरह से जीने का हक़ है या नहीं? ये तो मानते हैं न भारत एक लोकतांत्रिक देश है. अपनी हद में रहते हुए अपनी मर्ज़ी से जीने की आज़ादी उनको है. पर्सनल स्पेस जैसी कोई चीज उनके लिए भी है. तो अगर वो अपनी मर्ज़ी से शराब-सिगरेट-सेक्स करते हैं तो क्या ग़लत कर रहें? आपको मिलेगा चांस तो आप भी करोगे. दूध के धुले आप हैं नहीं.
अब ये लॉजिक मत दीजिएगा कि ग़रीब हैं और फ़ीस हाइक का विरोध कर रहें तो ये अय्याशी के लिए पैसे कहां से आते? फिर तो सच में आप भोले नहीं तो अक़्ल से अंधे हैं. वो जो स्कूल में पढ़ने वाल किसान का बेटा सिगरेट पी लेता, इंजीनियरिंग की तैयारी के लिए पटना या कोटा गया शराब पी लेता उसके पास पैसे कहां से आते हैं? वो बच्चे भी तो अम्बानी के बच्चे नहीं है न. और वो भी छोड़िए अपने देश में तो रिक्शा खींचने वाला भी नशा कर लेता है तो क्या वो बिरला की औलाद है इसलिए नशा अफ़ोर्ड कर रहा.
मतलब विरोध करना है इसलिए कुछ भी बोलिएगा. चरित्रहनन कीजिएगा. शर्म कीजिए. JNU में पढ़ने वाली लड़कियां जिन्हें आप वेश्या कह रहें वो भी किसी की बेटी या बहन है. बताइए कल उस छात्र को पीटना कितना जायज़ था जो देख नहीं सकता. उसे ये कहना कि अंधे हो तो यहां क्या कर रहे हो? पुलिसकर्मी अपना जो रौद्र रूप यहां दिखा रहें काश वकीलों के सामने दिखा पाते.
और हां, बिहार यूनिवर्सिटी जब 5 साल में आपको ग्रेजुएशननहीं करवा रहा तब आप यूनिवर्सिटी प्रशासन और बिहार सरकार को दोष देते हैं लेकिन जैसे ही बात JNU की आती आप वहां के छात्रों को कोसना शुरू कर देते हैं. देखिए, जब कोई भी मुद्दा उठता है तो पक्ष और विपक्ष दोनों बनता ही है. आप JNU में हो रहे प्रदर्शनों का विरोध कर रहें कीजिए मगर यूं व्यक्तिगत आक्षेपों के साथ नहीं. अपने तर्क रखिए. सवाल कीजिए. यूं ख़ुद को ज़लील मत कीजिए ऐसे दूसरों के चरित्र पर कीचर उछाल कर.
बाक़ी अपनी भी पढ़ाई पर ध्यान दीजिए. वो JNU वाले हैं. उनके नाम के साथ ब्रांड जुड़ा है. वहां से निकलेंगे उन्हें नौकरियां मिल जाएंगी. आप अपना भी सोचिएगा. सरकार का तो देख रहें न बेरोज़गारी को किस हद तक दूर करने में कामयाब रही है. ठीक न! चलिए दिन शुभ हो आज का आपका और उनका भी. जय हो.
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