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Updated: 21 अगस्त, 2018 10:35 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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बाजार का एक छोटा सा सिद्धांत है. बाजार हमेशा डिमांड और सप्लाई के नियम से चलता है. मगर तब क्या जब किसी प्रोडक्ट की अत्यधिक डिमांड हो लेकिन सप्लाई या तो मुहैया नहीं कराई जा रही हो या फिर नाममात्र हो? इस परिस्थिति का सबसे बेहतर जवाब यही होगा कि तब या तो कालाबाजरी होगी या फिर दाम बढ़ेंगे. 'बकरों' के बाजार में भी. बकरीद पर तो कम से कम 35 से 30 हजार चुकाने पड़ते हैं. हो सकता है कि बकरीद के चलते बकरों का महंगा होना एक बेहद आम सी बात लगे.  मगर जब इसे बाजार और उसके स्वाभाव के अनुरूप देखा जाए तो मिल रहा है कि न सिर्फ स्थिति गंभीर है बल्कि ये भी बता रही है कि यदि ऐसा ही रहा तो आने वाले वक़्त में त्योहार के मद्देनजर बकरे गूलर का फूल बन जाएंगे जो शायद ही किसी को मिल सकें.

बकरीद, बकरे, बाजार, दाम, निर्यात बकरीद के मद्देनजर बकरे के दामों में तेजी से उछाल देखने को मिल रहा है

बात बकरों की चल रही है तो यहां ये बताना बेहद जरूरी है कि खपत के कारण आज भले ही बकरे के व्यवसाय से 50 लाख लोगों के घर चल रहे हों मगर जो देश के हालात हैं वो कहीं से भी उन लोगों के अनुकूल नहीं हैं जो बकरे के व्यापार से अपना भरण पोषण कर रहे हैं. जिस तरह आज लोगों में मांसाहार की प्रवृत्ति बढ़ी है और लोग बकरे के मांस का सेवन कर रहे हैं  भारत को आने वाले 10 सालों में बकरों की जनसंख्या को दोगुना करना पड़ेगा. आज सरकार भी इस बात के लिए किसानों को प्रोत्साहित कर रही है कि वो इस व्यवसाय का चयन करें.

इतनी बातें सुनकर कोई भी कह देगा कि बकरे का कारोबार एक प्रॉफिट भरा कारोबार है. मगर हकीकत इसके ठीक विपरीत है. सवाल ये खड़ा हो रहा है कि भारी डिमांड के कारण जिन बकरियों की आबादी हमें आने वाले 10 सालों में दोगुनी करनी हैं आखिर वो बकरियां चरेंगी कहां? ये एक वाजिब सवाल इसलिए भी है क्योंकि गुज़रे 50 सालों में ऐसी जमीनें जो चरने योग्य थीं लगातार सिकुड़ कर आधी हो गई हैं. जंगल शहरों में परिवर्तित हो रहे हैं ऐसे में सबके पसंदीदा बकरों क दाम बढ़ने लाजमी है. कारोबार से जुड़े लोग इनके लिए बाजार से चारा खरीद रहे हैं, जो वाकई बहुत महंगा है. जब तक एक बकरा बिकने योग्य होता हैउसपर इतनी लागत लग जाती है कि कारोबारी की मज़बूरी ही जाता है कि वो उसे महंगा करे.

बकरीद, बकरे, बाजार, दाम, निर्यात बकरे की कीमतों के बढ़ने का सबसे बड़ा कारण उसकी कम सप्लाई है

कही गई इस पूरी बात को समझने के लिए हम राजस्थान का रुख कर सकते हैं. राजस्थान को यहां बतौर उदाहरण इसलिए भी लिया जा रहा है क्योंकि राजस्थान का शुमार भारत के उन चुनिन्दा राज्यों में है जो बकरी पालन के मामले में नंबर 1 पर है. राष्ट्रीय पशुधन जनगणना को यदि हम आधार बनाएं तो आज राजस्थान में तकरीबन 2 करोड़ 15 लाख बकरियां हैं जो कि पूरे देस का 14 प्रतिशत है. आज जहां पूरे देश में बकरियों का प्रतिशत मात्र 15 % प्रतिशत है तो वहीं राजस्थान में ये नंबर 27 प्रतिशत पर आकर रुक जाता है. इस के बाद एक सवाल और खड़ा होता है कि एक ऐसा राज्य जहां मांस का भक्षण सबसे कम है वो इतनी मात्रा में मांस के लिए बकरों की संख्या को क्यों कर रहा है?

जवाब बहुत आसान है. चूंकि राजस्थान एक मरुस्थल है अतः जैसे जैसे यहां का रेगिस्तान बढेगा बकरियों की संख्या में इजाफा होगा. अब जब बकरियां ज्यादा होंगी तो उनका बाजार जाना और बिकना दोनों स्वाभाविक है. इसके अलावा कुछ और भी कारण हैं जो बताते हैं कि क्यों बकरियां फायदे का सौदा हैं.

बकरीद, बकरे, बाजार, दाम, निर्यातEmbed Imageबकरों को लेकर क्या कहते हैं आंकड़े

लोगों को इसमें फायदा दिखता है

चीन के बाद भारत का शुमार उस देश में है जहां सबसे ज्यादा बकरियां हैं. National Livestock Census के अनुसार पिछले 30 सालों में भारत में बकरियों की आबादी में इजाफा हुआ है. जहां एक तरफ 1977 में भारत में बकरियों की आबादी 76 मिलियन थी जो 2007 में 140.5 मिलियन हुई. चूंकि खेती की अपेक्षा बकरी पालने में रिस्क कम है और खपत के चलते फायदा ज्यादा है तो आज लोगों की एक बड़ी संख्या ऐसी है जो इस व्यापार में आ गयी है. आज देश में तकरीबन 50 लाख लोग बकरी पालने का काम करते हैं और इनमें भी उन लोगों कि बड़ी संख्या है जो खेती किसानी छोड़ कर इस पेशे में आए हैं.

तो ऊपर दी गई जानकारी मतलब ये नहीं है कि इस कारोबार में सब उजला ही उजला है. जानवरों की सबसे ताजा गणना तो 2017 में हुई है, जिसके आंकड़े अभी नहीं है. लेकिन 2012 के आंकड़े इशारा करते हैं कि पहली बार भारत में बकरियों की आबादी में कमी आई है. 2007 से 2012 के बीच बकरियों की आबादी में 50 लाख की गिरावट हुई. इसकी बड़ी वजह बकरी चराने की जमीन में हुई कमी है. अब बकरी पालना झंझट का काम समझा जा रहा है.

बकरीद, बकरे, बाजार, दाम, निर्यातबकरों और उसकी डिमांड को लेकर क्या कहता है बाजार

मांस की डिमांड

बकरी-पालन को आकर्षक बनाने के पीछे मी‍ट की डिमांड में आया उछाल एक बड़ा रोल निभा रहा है. चाहे वो राष्ट्रीय हो या अंतर्राष्ट्रीय. बात अगर शहरों और गांवों की हो तो आज शहरों में हर साल 2.5 परसेंट की दर से इसमें उछाल देखने को मिल रहा है. अब लग लोग इस मात्रा में मांस खा रहे हैं तो स्वाभाविक है कि कीमत अधिक होगी.

जैसा कि हम बता चुके हैं कि चीन के बाद भारत सबसे ज्यादा बकरे का मांस पैदा करता है अतः देखने को मिला है कि 1997-2007 के बीच बकरे के मांस के उत्पादन में तेजी आई है. सप्लाई कम होने क्वे बावजूद आज जिस तरह लगातार मटन के दाम आसमान छू रहे हैं वो अपने आप में सारी कहानी बता दे रहा है. थोक मूल्य सूचकांक के अनुसार पिछले 1 दशक में बकरे के मांस में 75 प्रतिशत का उछाल देखने को मिला है जो किसी भी खाद्य प्रदार्थ में सबसे ज्यादा है. बात अगर सिर्फ राजधानी दिल्ली की हो तो आज राजधानी में कई ऐसी दुकानें हैं जहां बकरे का मांस 450 से 520 रुपए प्रति किलो की दर से मिलता है.

बकरीद, बकरे, बाजार, दाम, निर्यातजिस तरह से बकरे के मांस का निर्यात हो रहा है आने वाले दिनों में इसके दाम और बढ़ेंगे

निर्यात है एक बड़ी वजह

बकरियों की इतनी संख्या होने के बावजूद हमें मांस महंगा मिल रहा है. इसके कारण पर गौर करें तो मिल रहा है कि इसकी एक बड़ी वजह निर्यात है. वेस्ट एशिया समेत सऊदी अरब, कुवैत, अंगोला, मिस्र , अमेरिका वो देश हैं जो बकरे के मांस का मोटा पैसा देते हैं अतः इन स्थानों पर सारा उत्पादन निर्यात कर दिया जाता है. इस पूरी बात के बाद ये अपने आप साफ हो जाता है कि आखिर क्यों हमारे देश में बकरे का मांस महंगा मिलता है और हमें उसके लिए मोटी कीमत चुकानी पड़ती है. आपको बताते चलें कि विदेश में भारतीय मटन की खासी डिमांड है. बात अगर वेस्ट एशिया की हो तो आज वहां लोगों का एक बड़ा वर्ग ऐसा है जिन्होंने भेड़ों का मांस त्याग कर भारतीय बकरियों का मांस खाना शुरू कर दिया है.

बकरीद, बकरे, बाजार, दाम, निर्यातमाना जा रहा है कि 2020 तक मटन उद्योग और तेजी से बढ़ेगा

2020 तक मटन उद्योग बनेगा एक बड़ा उद्योग

आज भले ही बढ़े हुए दामों के चलते बाजार में मंडी छाई हो मगर जिस तरह से आज लोगों द्वारा मांस विशेषकर बकरे के मांस का भक्षण किया जा रहा है कहना गलत नहीं है कि 2020 तक मटन उद्योग एक बड़ा उद्योग बनकर उभरेगा. आंकड़ों की मानें तो 2020 तक बकरे के मांस की सालाना डिमांड 12.72 मिलियन टन रहेगा जो फिल्हाल 4.5 मिलियन के आस पास है. नेशनल सेंटर फॉर एग्रीकल्चर इकोनॉमिक्स एंड पालिसी रिसर्च के अनुसार यदि ऐसा होता है तो भारत को इस डिमांड को पूरा करने के लिए 248 मिलियन बकरियों की आवश्यकता होगी.

क्यों महंगा है बकरे का मांस

खपत और निर्यात के अलावा बकरे के मांस के महंगा होने का एक अन्य कारण ये भी है कि राजस्थान के अलावा भारत के अन्य हिस्सों में बकरियों की संख्या कम है. अब जब संख्या कम है और डिमांड उससे कहीं ज्यादा है तो स्स्वभाविक है कि उत्पाद महंगा बिकेगा.

अतः इन कारणों के बाद हमारे सामने पूरी स्थिति खुल कर सामने आ गयी है और काफी हद तक हमें ये समझ में आ गया है कि आखिर ऐसी क्या वजह है जिसके चलते बकरे का मांस या फिर मटन इतना महंगा है. बहरहाल जिस तरह के आंकड़े हैं और मांस खाने वालों का रुख हैं कहना गलत नहीं है कि भविष्य में इसके दामों में और भी उछाल देखने को मिलेगा. ये आज भी आम आदमी की पहुंच से दूर है और अगर स्थिति ऐसी ही रही तो भविष्य में भी ऐसा ही कुछ देखने को मिलेगा.

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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