New

होम -> समाज

 |  6-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 26 अप्रिल, 2018 02:46 PM
श्रुति दीक्षित
श्रुति दीक्षित
  @shruti.dixit.31
  • Total Shares

गुरुवार सुबह फिर हादसे की खबर लेकर आई. कुशीनगर के दुदही रेलवे क्रासिंग पर स्कूल वैन (टाटा मैजिक) सिवान-गोरखपुर पैसेंजर ट्रेन से टकरा गई. हादसे में 13 बच्चों और वैन ड्राइवर की मौत हो गई. अधिकतर बच्चे 10 साल से कम उम्र के थे.

ये हादसा एक बार फिर कई सवाल खड़े करता है. यह विचार करने पर मजबूर करता है कि इसे सामान्‍य दुर्घटना की तरह न देखा जाए, जिस पर हमारा कोई बस नहीं चलता.

1. 5000 रेलवे क्रॉसिंग 'कुशीनगर' बनने को तैयार हैं..

आजादी के 70 साल बाद भी देश में 5000 हजार मानवरहित रेलवे क्रॉसिंग हैं. कुशीनगर में जहां हादसा हुआ है, वो भी इन्‍हीं में से एक है. सितंबर 2017 में रेल मंत्री पीयूष गोयल ने कहा था कि वह एक साल में ऐसे सभी फाटक पर निगरानी सुनिश्चित कर देंगे. उम्‍मीद जताई थी कि इससे हादसों में 30-35 फीसदी की कमी आएगी. लेकिन, कुशीनगर हादसा बता रहा है कि रेलवे क्रॉसिंग पर फाटक का न होना ही खतरनाक है. गेट मित्र नियुक्त करके सरकार हादसों को रोक नहीं पाएगी.

2. 'गेट मित्र' क्‍या गेट का काम कर सकता है सरकार ?

जिन्हें गेट मित्र के बारे में नहीं मालूम उन्हें बता दूं कि ये वो लोग होते हैं जो मानवरहित क्रॉसिंग पर आने-जाने वाले वाहनों को और लोगों को आने वाली ट्रेन के बारे में आगाह करते हैं, उन्हें इस काम के लिए खास ट्रेनिंग दी जाती है. गेट मित्र की चेतावनी को ड्राइवर ने अनसुना कर दिया था और ट्रेन आती देख भी उसने जल्दी में गाड़ी निकालने की कोशिश की. यहां भी गलती ड्राइवर की समझ आती है, लेकिन क्या गेट मित्र के पास ऐसे साधन भी नहीं कि वो गाड़ी को रोक सके? सिर्फ चेतावनी देने के लिए तो नहीं होना चाहिए उसे. गाड़ी रोकने का प्रयत्न करना भी बहुत जरूरी है.

3. खानापूर्ति भरा रेलवे कानून

रेलवे एक्‍ट का सेक्‍शन 161 बड़ा अजीब है. ये कहता है कि 'यदि मानवरहित रेलवे क्रॉसिंग से किसी ने लापरवाहीपूर्वक अपना वाहन निकाला तो उसे सख्‍त सजा होगी. जो एक साल कैद भी हो सकती है.' अब सवाल यह है यदि रेलवे क्रॉसिंग मानवरहित ही है, तो इस लापरवाही को देखेगा कौन ? यदि हादसा हो जाए तो यह जुर्म सिर्फ उस ड्राइवर का ही है, या उस क्रॉसिंग को मानवरहित रखने वाले महकमे का भी है. उस महकमे ने क्‍या अपने लिए भी कोई सजा मुकर्रर की है. कुशीनगर में मारे गए उन 13 बच्‍चों के माता-पिता ये जानना चाहते होंगे.

3. ड्राइविंग के दौरान 'इयरफोन' लगाने पर तो यमराज की आवाज ही सुनाई पड़नी चाहिए..

सिर्फ रेल विभाग को अपराधी मान लेना ही काफी नहीं है. न जाने कितनी ही बार यातायात नियमों की बात कही गई है, लेकिन हर बार उनका उल्‍लंघन किया जाता है. भारत एक ऐसा देश है जहां एक्सिडेंट अपनी गलती से कम और दूसरों की गलती से ज्यादा होते हैं. अगर कोई एक यातायात नियम का पालन करे भी तो भी दूसरा ये होने नहीं देता. यहां भी ड्राइवर पास आती हुई ट्रेन को देखकर भी इयरफोन में गाने सुनने में व्यस्त था. अब क्या कहेंगे इस लापरवाही के बारे में?

4. मुआवजा देना बेहतर है या क्रॉसिंग पर फाटक लगाना?

अब एक सीधा सा सवाल, रेल मंत्री पीयूष गोयल ने इस हादसे में मारे गए बच्‍चों और ड्राइवर के परिवार वालों को 2-2 लाख रु. का मुआवजा देने की बात कही है. पर क्या हमेशा राहत कोश और मुआवजे से ही मामला रफा दफा किया जाएगा? जान जाने पर मुआवजा देने से तो बेहतर है कि ऐसी क्रॉसिंग पर फाटक लगाने की कोशिश की जाए.

दुर्घटना, कुशीनगर, ट्रेन, स्कूल वैन

5. लापरवाही की जांच होगी, लेकिन इन 14 जानों का क्या?

लापरवाही तो की गई है, अब ये स्कूल ड्राइवर की वजह से की गई है, या गेट मित्र की वजह से की गई है या फिर इसमें किसी अन्य बाहरी कारण को दोष दिया जाएगा ये तो देखने वाली बात होगी, लेकिन दोष तो हमेशा से दिया जाता है. दोषारोपण का कार्य खत्म हो जाने पर क्या? इसके लिए कोई व्यवस्था बनाई जाएगी या नहीं. 13 बच्चे और 1 ड्राइवर इस हादसे में मारे गए. उनकी जिंदगी यकीनन बहुत सस्ती लग रही है अब. अभी तो ऐसी भी शंका जताई जा रही है कि ये आंकड़ा बढ़ जाएगा.

6. हर दूसरी घटना में इस तरह की दलीलें...

हर दूसरी घटना में इसी तरह की लापरवाही सामने आती है. किसी को दोष देने का सिलसिला शुरू हो जाता है. घटना की जांच होती है और लापरवाही की मटकी किसी के सिर फोड़ दी जाती है. अब सवाल तो यही उठता है कि हर दूसरी घटना में दलीलें क्यों पेश की जाती हैं.

7. नेताओं की सहानुभूति सिर्फ दिखावा क्यों लगती है...

पीएम मोदी हों, योगी आदित्यनाथ हों, या कोई और मंत्री हादसों को लेकर उनकी सहानुभूति सिर्फ दिखावा ही लगने लगी है. ये सिर्फ वो रस्में हैं जो हर हादसे के बाद नेताओं को निभानी होती है. क्योंकि हादसे इतने ज्यादा हो गए हैं कि लगता है जैसे न तो सरकार को और न ही लोगों को कोई फर्क पड़ता है.

कहते हैं 'सबसे छोटे ताबूत सबसे भारी होते हैं' क्योंकि उनमें बच्चों की लाशें होती हैं. ऐसे न जाने कितने हादसे भारत में हर रोज़ सुनने को मिलते हैं. अगर अपने भविष्य की सुरक्षा ही नहीं कर पा रहा है भारत तो क्या मतलब है इन दकियानूसी वादों का इन चुनावी जुमलों का और नेताओं की नौटंकी का. गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में जब ऑक्सीजन सप्लाई की वजह से बच्चों की जानें गईं थी तब भी बहुत वादे किए गए, लेकिन हुआ क्या? अगले ही महीने फिर वैसे ही हादसे, इंदौर में जब स्कूल बस के एक्सिडेंट में बच्चों की जानें गईं थीं तब भी ड्राइवर की गलती बताई गई थी, लेकिन हुआ क्या कुछ नहीं.. ऐसे ही न जाने कितने ही हादसे गिनवाए जा सकते हैं.

तो क्या माना जाए? नेता और भारत के लोग सभी अपने-अपने काम को वैसे ही करते रहेंगे जैसे कर रहे हैं और उसके आगे कुछ नहीं? तो क्यों नहीं इस हादसे को कत्ल कहा जाता क्योंकि प्रयास तो अभी भी पूरे नहीं किए जा रहे.

ये भी पढ़ें-

ड्राइवरलेस ट्रेन तो देखी होंगी, अब इंजन-लेस ट्रेन भी देखिए !

जितने लोग सड़क पर कुचलकर नहीं मारे जाते, उससे अधिक बौद्धिक हिंसा का शिकार हो रहे हैं

#कुशीनगर, #दुर्घटना, #रेलवे, Kushinagar Accident, Train Accident, Unmanned Railway Crossing

लेखक

श्रुति दीक्षित श्रुति दीक्षित @shruti.dixit.31

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय