4 कानून जो पास हो भी गए तो हाथी के दांत बनकर ही रह जाएंगे
आपको उन चार अपराधों के बारे में बताते हैं जिनके लागू होने से शायद ही हमारी सेहत पर शायद ही कोई फर्क पड़े.
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पिछले साल मोदी सरकार ने सत्ता में अपनी दूसरी वर्षगांठ पूरी करने के बाद बड़े जोर-शोर से घोषणा की गई कि 1,159 कानूनों ऐसे कानूनों को सरकार ने रद्द कर दिया जो अब किसी काम के नहीं थे. ये कानून ब्रिटिश सत्ता के जमाने से ही चले आ रहे थे. हालांकि सरकार ने भारतीय दंड संहिता की धारा 377 जैसे कुछ कानूनों को बनाए भी रखा.
उसके बाद से कई और कानूनों को चलता किया गया लेकिन जैसे हर चमकती चीज सोना नहीं होती. वैसे ही हाल ही में कार्यकारी और न्यायपालिका ने कई नए कानूनों का प्रस्ताव रखा है. इन कानूनों से देश में अपराध और उसकी सजा को लेकर क्या बदलाव आएंगे इस पर संदेह है.
हम आपको उन चार अपराधों के बारे में बताते हैं जिनके लागू होने से शायद ही हमारी सेहत पर शायद ही कोई फर्क पड़े.
1- गौ हत्या
गाय हमारी माता है
आज के समय में हमारे यहां जितनी वैल्यू और फुटेज गाय को मिल रही है उतनी शायद ही कभी किसी और को मिली हो. गाय को तो राष्ट्रीय पशु बनाने की सलाह आ चुकी है. गोबर में चमत्कारी शक्तियां होती हैं जो रेडियोएक्टिविटी से लेकर लोगों को जवान भी रखती है.
गुजरात में एक कानून के तहत गौ हत्या करने वाले को उम्रकैद की सजा का प्रावधान किया गया है. लेकिन हाल ही में केंद्र सरकार ने जानवरों के खिलाफ क्रूरता को रोकने के लिए मौजूदा नियम को संशोधित करने के लिए अधिसूचना जारी करके इसे दो कदम और आगे बढ़ा दिया. भारत सरकार ने देश भर में वध करने के लिए मवेशियों की बिक्री और खरीद पर रोक लगा दिया. इस बैन के जरिए सरकार ने एक तीर से दो शिकार किया और गौ मांस के खाने पर भी बैन लगा दिया.
इन घटनाओं से प्रेरित होकर हैदराबाद हाई कोर्ट के जज ने आंध्र प्रदेश और तेलंगाना को अब गौ हत्या को एक गैर जमानती अपराध घोषित करने का आदेश दिया है. जज का कहना था कि- 'गाय हमारी मां के समान है और मां भगवान का रूप होती है.' अब इसको आखिर हम कैसे मना कर सकते हैं ना!
2- गंगा मैया को गंदा करना
गंगा को मैला करना भारी पड़ेगा
हमारे हिंदू धर्म के मुताबिक पूजनीय जानवरों और नदियों को नुकसान पहुंचाना अक्षम्य अपराध की श्रेणी में आता है. इसके लिए 7 साल जेल की सजा और 100 करोड़ रूपए का जुर्माना तक लगाया जा सकता है.
केंद्र द्वारा तैयार किए गए राष्ट्रीय नदी गंगा (कायाकल्प, संरक्षण और प्रबंधन) विधेयक 2017 का मिशन ही है लोगों द्वारा फैलाए जा रहे कचरे से मां गंगा को बचाना. गंगा सबसे पुरानी नदियों में से एक है और इसका अपना महत्व है. लेकिन नदी के आस-पास रहने वालों के लिए किसी विकल्प की कोई व्यवस्था करने की बात नहीं की गई.
3- चुनाव आयोग की अवमानना
कठिन है डगह
कानून मंत्रालय को भेजे गए एक पत्र के मुताबिक, चुनाव आयोग ने कंटेम्ट ऑफ कोर्ट एक्ट 1971 में संशोधन कर उसे भी शामिल करने की मांग की है. अपने मामले को मजबूत बनाने के लिए चुनाव आयोग ने पड़ोसी देश और कट्टर दुश्मन पाकिस्तान का उदाहरण दिया है. आम आदमी पार्टी द्वारा विधानसभा चुनाव में इस्तेमाल होने वाली इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों से कथित छेड़छाड़ के आरोपों के बाद इसका फैसला लिया गया.
4- हर बात में राजद्रोह
नारे से परेशान
भारत में देशद्रोही कानून दशकों पहले पारित कर दिया गया था, लेकिन ये चर्चा में इन दिनों आया है. कॉलेज में पढ़ने वाले छात्रों से लेकर आम जनता तक जिसे देखो राजद्रोह के नाम पर किसी को भी पीट सकता है.
पिछले साल नोटबंदी के पहले पीलीभीत के एक जिला मजिस्ट्रेट ने कहा था कि दस रुपए के सिक्कों को स्वीकार नहीं करना राजद्रोह की श्रेणी में आ सकता है. इसी तरह कुछ दिनों पहले कर्नाटक पुलिस ने 12 लोगों को सिर्फ इस बात के लिए गिरफ्तार कर लिया कि बेलगांव जाने वाली बस पर जय महाराष्ट्र लिखा हुआ था.
हालांकि इन कानूनों का औचित्य हमारे देश में कहां तक सही है ये समय ही बताएगा लेकिन फिर भी इनसे कोई फायदा पहुंचेगा इसमें संदेह है.
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