Valentines Day: कभी ख़ुद से इश्क करके देखिये बहुत अच्छा लगेगा!
प्यार (Love) एक बहुत ही खूबसूरत एहसास है जो वैलेंटाइन डे (Valentine Day) पर और ज्यादा गहरा हो जाता है. हम अपने चारों ओर प्यार में डूबे चेहरे और एक दूसरे को गिफ्ट देते लोग देखते हैं. मगर सवाल ये है कि क्या इंसान खुद से प्यार नहीं कर सकता ? जवाब है हां. इंसान को खुद से प्यार करना चाहिए और उस पल को एन्जॉय करना चाहिए
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अपनी ख़ुशियों को किसी और में ढूंढना. किसी का होना, आपके होने को होना महसूस करवाए, कितना कॉम्प्लिकेटेड साउंड करता है न. कोई ऐसा हो जिसके साथ घूमने जायें, कोई हो जो हमारे लिए फूल लाए, कोई हो जो हमें इस वेलेंटाइन डे (Valentines Day) पर स्पेशल फ़ील करवाए. मगर कोई क्यों हो? ये कोई आप ख़ुद क्यों नहीं हो सकते ख़ुद के लिए? ख़ुद के लिए ख़ुद का होना मुश्किल है पर मुमकिन है. अब सोचिए ज़रा, आज का दिन उनके लिए स्पेशल है जो प्रेम (Love) में हैं. जिनका कोई महबूब (Lover) है. कोई है जो उनके लिए केक और कैंडल साथ में रोज़ और अंगूठी लाएगा. उस पल में वो दोनों दुनिया के सबसे खुशनसीब इंसान होंगे. ये है एक ख़ूबसूरत बात आज के दिन की या प्रेम में होने पर हर दिन की.
प्यार एक खूबसूरत एहसास है जिसे इंसान खुद से भी कर सकता है
लेकिन उनका क्या जो सिंगल हैं या जिनका ब्रेक-अप हो चुका? जिनके दिल अभी कुछ दिन पहले टूटे हैं. यार उन्हें भी हक़ है ख़ुश होने का. हां ये और बात है कि जिस तरह से सोशल मीडिया पर वैलेंटाइन डे को ले कर ग़दर मचा हुआ है, वो उनके ज़ख्मों को कुरेदने का काम कर रहा है. पर ये कोई इतनी बड़ी बात नहीं कि आज का दिन या ज़िंदगी का कोई भी दिन यूं बेमक़सद उदासी से गुज़ार दिया जाए. हम चुन सकते हैं अपने लिए अपनी खुशियां. वो जो नहीं है हमारे हिस्से में, उसके लिए सोच कर या रो कर दिन बिता देने से अच्छा है कि दिन को अपने हिसाब से जिया जाए.
आधा दिन तो उदास हो कर गुज़ार दिया गया है. अब बचे आधे दिन को अपने हिसाब से जीने की कोशिश कीजिए. ख़ुद को पैम्पर करना बुरा नहीं होता. जिस कपड़े में आप ख़ुद को सबसे ख़ूबसूरत महसूस करते हैं निकालिए उस सेट को और तैयार हो कर निकल जाइए घर से. आज रिलीज़ हुई है इम्तियाज़ अली की फ़िल्म लव आजकल सबसे पहले तो उसे देख आइए.
उनकी बाक़ी की फ़िल्मों से अलग एकदम फ़्रेश फ़िल्म है ये. इस फ़िल्म की कहानी आपको इंट्रोसपेक्ट करने का मौक़ा देगी. आप फ़िल्म देखते हुए सोच पाएंगे कि ज़िंदगी से आपको चाहिए क्या? क्या सच में आप जिस चीज़ के पीछे भाग रहें आपको वही चाहिए. जो मिल गया तो क्या सच में आपकी तलाश पूरी हो गयी?
इम्तियाज़ की ये फ़िल्म, फ़िल्म नहीं ज़िंदगी की पाठशाला है. ये सिर्फ़ जोई-वीर और लीना-रघु की कहानी नहीं हम सब की कहानी है. फ़िल्म का एक डायलॉग है, 'जो मैं हूं और जो मैं होना चाहता था वो अलग-अलग लोग हैं.' हम सबके अंदर थोड़ी जोई, थोड़ा वीर और थोड़ा रघु है. हम सब ज़िंदगी से बहुत कुछ चाहते हैं. जब चाहा हुआ मिल जाता है तो हम उसमें भी पर्फ़ेक्शन तलाशने लगते है. लेकिन ज़िंदगी कहां पर्फ़ेक्ट है.
लव-आजकल उसी इम्पर्फ़ेक्शन को सेलब्रेट करती है. फ़िल्म में एक साथ दो स्टोरी चल रही. एक रघु और लीना की दूसरी जोई और वीर की. यंग रघु कार्तिक ही प्ले कर रहें और मच्योर रघु रणदीप हुडा. और जो रणदीप हुडा जी रहें हक़ीक़त में लोग वैसी ही ज़िंदगी जीते हैं. जो ज़िंदगी जोई और वीर जी रहें उसे हम जीने की सोचते हैं मगर सोचा हुआ सच हो ये ज़रूरी नहीं.
ख़ैर, मैं मुद्दे से भटक गयी थी. मैं फ़िल्म रिव्यू नहीं कर रही बस आपको बताना चाह रही थी कि सिंगल हैं, तो इस बात दुःख न मना कर जश्न मनाइए. अकेले ही इस फ़िल्म को देख आइए. बाद में बैठिए इत्मिनान से किसी कॉफ़ी हाउस में. बुनिए सपने फिर से. इस बार कुछ अलग सपने. जैसे दुनिया घूमने के. पेंटिंग सीखने के. किसी अंडर-प्रिवलेज बच्चों के स्कूल में जा वॉलेंटियर करने के. ये भी तो इश्क़ ही है. बहुत ज़रूरी ख़ुद से इश्क़ करना. ज़िंदगी को हर हाल में गले लगा कर जीना.
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