लुधियाना शेल्टर होम केस तो मुजफ्फरपुर वाले से भी ज्यादा खौफनाक निकला
देश भर में सरकारी और गैर सरकारी दोनों तरह के शेल्टर होम्स में गड़बड़ियां सामने आ रही हैं. तो इसे बनाने के लिए क्या कोई नियम है या कोई भी ऐसे ही शेल्टर होम बना लेता है? आखिर क्यों ये शेल्टर होम अपराध के अड्डे बनते जा रहे हैं?
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भारत में आश्रय गृह या शेल्टर होम की हालत क्या है? इसका जवाब शायद अब कोई भी आसानी से न दे पाए. हाल ही में एक के बाद एक सुधार गृह, बालिका गृह, आश्रय गृह के किस्से सुनने को मिले हैं. अब एक और ऐसा ही किस्सा सामने आया है लुधियाना से. झारखंड और बिहार से कथित रूप से तस्करी करके 34 बच्चों को पंजाब के लुधियाना ले जाया गया. वहां बच्चों का कथित तौर पर धर्म परिवर्तन कर ईसाई बना दिया गया. जिन बच्चों को ईसाई बनाया गया है उनमें से अधिकतर आदिवासी हैं. ये शेल्टर होम ईसाई मिशनरी द्वारा संचालित किया जा रहा था.
लुधियाना का वो शेल्टर होम जहां की ये घटना है.
सत्येंद्र प्रकाश मूसा फुलांवर लुधियाना में पाकसिन मैरी क्रॉस आश्रय गृह चला रहा था, जिसके खिलाफ जुविनाइल जस्टिस एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया है. इस आश्रय गृह में कुल 38 बच्चे रह रहे थे और उनमें से 8 ही मिले हैं. इनमें चार झारखंड के हैं और चार बिहार के. 30 बच्चों की खोज अभी जारी है. सभी बच्चों को नए नाम दे दिए गए हैं.
झारखंड में चाइल्ड वेलफेयर कमेटी (CWC) को कुछ बच्चों के माता-पिता से शिकायत मिली थी और उसके आधार पर ही रेड की गई थी. इस कांड से पहले मुजफ्फरपुर, पटना, अहमदाबाद, मुंगेर, गया में ऑडिटिंग के दौरान शोषण, अमानवीय स्थितियों और हत्या तक की घटनाएं उजागर हो चुकी हैं.
पर आखिर कैसे सरकार द्वारा चलाए जा रहे इन शेल्टर होम्स में ऐसे कांड हो पाते हैं? चलिए मान लिया जाए कि लुधियाना वाला कांड सरकार द्वारा चलाए जा रहे शेल्टर होम का नहीं था, लेकिन अगर देखा जाए तो देश भर में सरकारी और गैर सरकारी दोनों तरह के शेल्टर होम्स में गड़बड़ियां सामने आ रही हैं. तो क्या संविधान में कोई नियम है इनके लिए या कोई भी ऐसे ही शेल्टर होम बना लेता है? आखिर क्यों ये शेल्टर होम अपराध के अड्डे बनते जा रहे हैं?
शेल्टर होम के लिए नियम...
भारत के संविधान में बेघर और गरीब लोगों के लिए अलग से नियम बनाए गए हैं जिनके तहत सरकार को ऐसे लोगों को रहने के लिए जगह मुहैया करवाना और उस जगह की व्यवस्था देखना अनिवार्य है.
आर्टिकल 21, आर्टिकल 14 और आर्टिकल 19 के सभी मौलिक आधार गरीबों और बेघरों को भी मिलते हैं और इसके तहत राज्य सरकारों को ऐसे लोगों की प्रतिष्ठा का ध्यान रखना होता है. इन लोगों को रहने के लिए जगह मुहैया करवाना सरकार का काम है.
संविधान में शेल्टर होम्स को लेकर कई नियम हैं.
इसी के साथ, आर्टिकल 39 (1) जिसमें हर पुरुष और महिला को एक समान अधिकार और पर्याप्त कमाई का साधन मिलना चाहिए, आर्टिकल 42 जिसके मुताबिक राज्य को सभी के लिए मानवीय स्थितियां मुहैया करवानी चाहिए और महिलाओं के लिए प्रेग्नेंसी के दौर में सभी सुविधाएं देनी चाहिएं. और आर्टिकल 47 जिसके तहत राज्य को पब्लिक की हालत सही करनी होगी और उन्हें पर्याप्त आहार देना होगा.
जितने भी शेल्टर होम भारत में हैं उन सभी को इन्हीं नियमों के मद्देनजर काम करना होता है.
सबसे ज्यादा किस बात पर ध्यान?
भारत सरकार और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के सर्कुलर SWADHAR GREH: A Scheme that caters to primary needs of women in difficult circumstances (2015) के अनुसार हर सुधार गृह या शेल्टर होम को कानूनी प्रक्रियाएं पूरी करनी होंगी. इसके लिए डिस्ट्रिक्ट लीगल सर्विस अथॉरिटी (DLSA) से संपर्क करना होगा. अगर DLSA से कोई मदद नहीं मिल पा रही है तो इसी तरह की किसी और संस्था की मदद लेनी होगी, लेकिन सभी कानूनी कार्यवाही पूरी करनी होगी. इसके अलावा, कई अन्य नियम भी दिए गए हैं. ये सभी नियम सर्कुलर में पढ़े जा सकते हैं.
न्यूज18 की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस तरह की फॉर्मेलिटी पूरी करने में करीब 15-20 रजिस्टर रखने होते हैं और सभी में नियमों के अनुसार कार्यवाही करनी होती है.
नैशनल कमिशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स (NCPCR) और लखनऊ स्थित एकैडमी ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज को ऑडिट की जिम्मेदारी दी गई तो सामने आया कि बालिका गृह और बाल गृह में बच्चों से बातें नहीं की जाती.
तो क्यों है शेल्टर होम की ये हालत?
इतने सब कानूनों और नियमों को देखकर ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत में शेल्टर होम की ये हालत इसलिए भी हो सकती है क्योंकि ज्यादा ध्यान रजिस्टर बनाने और कानूनी कार्यवाही में दिया जाता है और बच्चों, महिलाओं और पुरुषों से बात कर उनकी समस्याओं को सुनने में ध्यान नहीं दिया जाता है. अगर ऐसा न होता तो ऑडिट के वक्त इस तरह के खुलासे नहीं हुए होते.
NCPCR के डेटा के अनुसार 5850 रजिस्टर्ट बाल गृह हैं और अभी तक 1339 रजिस्टर होने बाकी हैं. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने अंतिम तारीख 31 दिसंबर 2017 की दी थी, लेकिन अभी भी ये काम पूरा नहीं हो सका है. सरकारी और गैर सरकारी ऐसे बहुत से शेल्टर होम हैं जिन्हें न तो ऑडिट किया गया है और न ही इनके
ऐसे और कई संस्थान हो सकते हैं जो NCPCR की लिस्ट में शामिल न हों और इसीलिए ऑडिट होना बहुत जरूरी है. बिहार में 71 और यूपी में 231 ऐसे संस्थान हैं.
ये खबर पहले ही आ चुकी है कि देश में 9 राज्य शेल्टर होम के ऑडिट के लिए तैयार नहीं थे. तो यकीन मानिए ऐसे कई और शेल्टर होम के खुलासे अभी और हो सकते हैं.
घरेलू हिंसा और शेल्टर होम का जीवन बराबर!
Protection of Women from Domestic Violence Act (PWDVA) ये कहता है कि राज्यों को अपनी महिला नागरिकों के लिए शेल्टर होम बनाने चाहिए. यानी वही जो संविधान में लिखा है या महिला एवं बाल विकास मंत्रालय कहता है. ये एक्ट ये भी कहता है कि इन शेल्टर होम में काउंसलिंग, अन्य मूलभूत सुविधाएं और कानूनी सेवा प्रदान करनी चाहिए. भारत देश के 90 प्रतिशत घरेलू हिंसा के मामले रिपोर्ट नहीं किए जाते इसलिए ये जरूरी है कि इन शेल्टर होम में कानूनी सुविधा मिले पर क्या मिलती है?
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो चुकी है भारत के बेघरों की बात-
यूनाइटेड नेशन की खास दूत या यूं कहें रिपोर्टर लीलानी फरहा (Leilani Farha) ने अप्रैल 2016 भारत यात्रा की थी. उन्होंने अपनी रिपोर्ट में ये साफ लिखा था कि भारत सरकार को तत्काल तौर पर ऐसी पॉलिसी बनानी चाहिए जो पूरी तरह से मानव अधिकारों के तहत हो और वो लोग जो गरीब हैं सड़कों पर और झुग्गियों में रह रहे हैं, उनकी ओर ध्यान देना होगा ताकि गरीबी और असमानता कम हो सके.
दिल्ली के रैन बसेरा की एक तस्वीर
अगर शेल्टर होम को लेकर हम दिल्ली की ही बात करें तो रैन बसेरा की हालत किसी से छुपी नहीं हुई है. राजधानी में ही रैन बसेरा में रहने वाले लोगों को मौलिक सुविधाएं नहीं मिल पाती हैं. लोग खुले में ठंड में सो जाते हैं लेकिन रैन बसेरा में नहीं जाते. न जाने कितनी ही बार रैन बसेरा में महिलाओं के साथ छेड़छाड़ और यौन शोषण की कहानियां सुनाई गई हैं. बीबीसी ने दिल्ली के रैन बसेरा पर पूरी पड़ताल की थी और ये बात सामने आई थी कि यहां महिला, पुरुष और बच्चे कोई सुरक्षित नहीं. तो क्या अंदाजा लगाया जा सकता है देश के बाकी हिस्सों का जहां पर सरकार को इन शेल्टर होम्स के बारे में मालूम भी नहीं.
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