आम फलों का राजा हो न हो, आमों का राजा तो मालदह है!
गर्मियां शुरू होते होते फलों का राजा आम बाजार में दस्तक देने लगता है. यूं तो तरह तरह के नाम हैं मगर जब बात मिठास की आती है तो मालदह की किसी से कोई टक्कर नहीं है. कह सकते हैं जो मालदह का नहीं हुआ वो किसी का नहीं हो सकता. इसकी खासियत ये है कि मालदह चमकीला लाल-पीला रंग धारण कर भ्रम भी नहीं फैलाता.
-
Total Shares
जिसने आम खाया हो पर मालदह न खाया हो, तो उसे यह मान लेना चाहिए कि दरअसल उसने अभी आम खाया ही नहीं है. उसे अभी आम का स्वाद चखना बाकी है. उसे अभी आम का स्वाद सीखना बाकी है. उसे अभी आम के साथ बरतने का हुनर आना बाकी है. उसे अभी प्रेम करना आना बाकी है. जो मालदह का नहीं हुआ वो किसी का नहीं हो सकता. ऐसे लोगों के चयन पर सदैव संदेह करना चाहिए. जो आम से प्रेम करे और उसकी पसंद मालदह न हो ऐसे लोग प्रेम के पात्र ही नहीं. नासमझ हैं.
मालदह संपूर्णता का प्रतीक है. रंग रूप, आकार व्यवहार सब में. मालदह धातुओं में सोना है. सोना यानी आभूषण में ढाल लो तो सौंदर्य में चार चांद और मुद्रा में ढाल लो अर्थव्यवस्था में वृद्धि. एक भरोसेमंद साथी. मालदह भी ऐसा ही है. एकदम अनूठा. मालदह चमकीला लाल-पीला रंग धारण कर भ्रम नहीं फैलाता. गुलाबखास की तरह लालिमा धारण कर लुभाने का अतिरेक नहीं करता.
जैसा स्वाद है मालदह की तुलना किसी दूसरे आम से हो ही नहीं सकती
एक गति के साथ हरे से पीले की ओर बढ़ता है पर हरा छोड़कर पीला धारण नहीं कर लेता. अपना मौलिक रंग बनाए रखता है. एक सच्चापन है उसमें. इसके स्वाद में भी मौलिकता है. न तो कृत्रिम मीठापन और न ही पनछोर. न इतने रेशे कि जीभ ही उलझ जाए और न इतना रस कि जूस ही बन जाए. मालदह आम है. आम ऐसा ही होता है जैसा मालदह.
आप धरती कहें, पृथ्वी कहें. एक ही बात है. मालदह अपनी समस्त काया को आम के रूप में एकाकार कर लेता है. ज्यों-ज्यों मालदह अपनी पूर्णता की ओर बढ़ता जाता है उसका आकार सुघड़ होता जाता है, छिलका बस उतना भर ही अपना अस्तित्व बचाए रखता है कि अंतस पर आवरण चढ़ा रहे, केंद्र में गुठली सिकुड़ कर पुनः बीज रूप धारण करने लग जाती है.
संपूर्णता की ऐसी सघन यात्रा है मालदह की. कोई और क्या टिकेगा इसके सामने. पेड़ पर दूर कहीं टिका मालदह यह रूप धरकर जब धरती पर टपकता है तो प्रेम से पूरित पीयूष का आगमन होता है. इस अमृत को छोड़कर किसी और के पीछे कौन भागे भला.
ये भी पढ़ें -
कितना दुर्भाग्यपूर्ण है आम के मीठेपन को भी कोरोना लील गया है!
हां शुचि! तमाम श्रीकांत हैं, जो प्यार तो करते हैं मगर जता नहीं पाते...
Baba Ka Dhaba वाले बाबा फिर से धड़ाम गिरे हैं, क्या अब कोई यू्ट्यूबर मदद करेगा?
आपकी राय