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Updated: 30 अक्टूबर, 2019 05:56 PM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
  @parulchandraa
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भारत हो या कोई और देश, इतिहास गवाह है कि अपनी स्वार्थसिद्धी के लिए समाज में कितने ही ऐसे नियम बनाए गए जो पहले प्रथा कहे जाते थे और आज अपराध कहलाए जाते हैं. सती प्रथा, बाल विवाह, या फिर बहुविवाह, ये कुछ उदाहरण हैं, जो समाज ने अपने फायदे के लिए बनाये और उसका खामियाजा सिर्फ महिलाओं को झेलना पड़ा.

इन प्रथाओं को भले ही अपराध की श्रेणी में रखा गया हो लेकिन सामाजिक मान्यताएं हमेशा से कानून पर हावी रही हैं. ऐसी ही एक प्रथा है बहुविवाह, यानी एक आदमी का कई महिलाओं से शादी करना. इस्लाम को छोड़कर किसी भी धर्म के लिए यह भारत में मान्य नहीं है. लेकिन महाराष्ट्र के एक गांव देंगनमल में ऐसा हो रहा है. वजह अजीब है.

जहां बेरोकटोक होते हैं बहुविवाह

महाराष्ट्र के ठाणे के गांव देंगनमल में एक पुरुष की एक नहीं बल्की दो या तीन पत्नियां होती हैं. ये प्रथा है और इसे निभाने की वजह इस प्रथा से भी ज्यादा अजीब है. 'पानी' कहने को तो एक सरल सा शब्द है, लेकिन यही वो वजह है जिसके चलते इस गांव के पुरुष एक के बाद एक शादियां करते हैं.

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 गांव में रहने वाले सखाराम भगत की तीन पत्नियां हैं

दरअसल ये गांव भी महाराष्ट्र के उन 19 हजार गांव में से एक है जहां पानी नहीं है और ज्यादातर सूखे जैसे हालात ही रहते हैं. गांव की आबादी करीब 500 है और घर की जरूरत के लिए पानी का इंतजाम करने की जिम्मेदारी सिर्फ महिलाओं पर ही होती है.

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 पानी लाने की जिम्मेदारी सिर्फ महिलाओं पर होती है

यहां पानी करीब 6 किलोमीटर दूर से भरकर लाना पड़ता है. और पानी भरकर लाने के लिए ही यहां लोग शादियां करते हैं. पानी के लिए लाई गई इन दुल्हनों को 'पानी बाई' कहा जाता है.

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पत्नी के अलावा लाई गई दूसरी पत्नियों को यहां 'पानी बाई' कहते हैं

अगर किसी व्यक्ति की पत्नी पानी लाने में असमर्थ है, तो वो व्यक्ति दूसरी शादी कर लेता है, जिससे पानी लाया जा सके. अगर दूसरी पत्नी भी बीमार पड़ जाए तो वो तीसरी शादी कर सकता है. इस गांव में एक व्यक्ति ने सबसे ज्यादा तीन महिलाओं से शादी की हैं, जबकि बाकी लोगों की दो पत्नियां हैं.

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 ज्यादातर लोगों के दो पत्नियां हैं

ये महिलाएं घर में एक साथ ही रहती हैं. पहली पत्नी घर और बच्चों को संभालती है, खाना बनाती है, जबकि दूसरी का काम सिर्फ पानी लाना होता है.

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 पानी बाई के होने से घर का काम आसान हो जाता है

यहां आसान नहीं है पानी की डगर

पानी लाने का काम चुनौतियों भरा होता है. एक महिला के पास 15-15 लीटर के दो घड़े होते हैं जिन्हें अपने सर पर एक के ऊपर एक रखकर संतुलित करना होता है. तपती गर्मी के दिनों में पथरीले रास्तों पर 6 किलोमीटर दूर का सफर कितनी तकलीफ देता होगा.

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 तपती धूप में मीलों चलकर पानी लाना आसान नहीं है

जाने और आने में ही घंटो बीत जाते हैं. मॉनसून के आने पर गांव के कुएं भर जाते हैं और तभी इनका संघर्ष थोड़ा आसान हो जाता है.

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 कभी कभी बच्चों को भी साथ लाना पड़ता है

महिलाएं पतियों को खुद शादी की अनुमति देती हैं

पानी के लिए घर से इतनी दूर जाने और 30 लीटर पानी अपने सर पर ढोकर लाने में महिलाओं को 8 से 10 घंटे लग जाते हैं.

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 आने जाने में लगता है काफी समय

ऐसे में घर में बच्चों को अकेला छोड़ना कोई मां नहीं चाहती. फिर इतनी मेहनत के बाद घर में खाने का इंतजाम भी महिलाओं को ही करना होता है, लिहाजा महिलाएं खुद अपने पतियों को दूसरी शादी करने की अनुमति दे देती हैं. दूसरी पत्नी आती है तो घर का काम बंट जाता है.

पानी बाई की मजबूरी क्या है?

ये 'पानी बाई' वो महिलाएं हैं जो ज्यादातर विधवा हैं या फिर पति द्वारा छोडी गई हैं. दूसरी शादी करके इन महिलाओं को घर मिल जाता है, और ये अपना जीवन सुधरा हुआ महसूस करती हैं.

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 सारी पत्नियां एक ही घर में एकसाथ रहती हैं

यहां के लोगों की मानें तो ये इन विधवाओं के लिए अच्छी बात है, लेकिन दूसरे नजरिये से देखें तो पुरुष अपने स्वार्थ के लिए ही इनका इस्तेमाल कर रहा है. सिर्फ कई किलोमीटर दूर पानी भरने के लिए ही नहीं, कई घरों में उससे इनके बच्चे भी हैं.

अब इन पानी बाई को आप क्या कहेंगे ? और इन्हें ब्याह कर लाने वाले पुरुषों को...?

पानी बाई के पूरे हालात बयां कर रही है ये डॉक्‍यूमेंट्री-

#सूखा, #पति, #पत्नी, Drought, Husband, Wife

लेखक

पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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