पद्मावती छोड़िए... इन 10 चीजों पर भारतीयों को पहले देना चाहिए ध्यान..
पद्मावती का विरोध इंटरनेशनल हो गया है. करणी सेना ने आखिर इस फिल्म को रिलीज होने नहीं दिया, लेकिन आखिर भारत की बाकी समस्याओं पर इस तरह से विरोध क्यों नहीं होता?
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पद्मावती का विवाद खत्म होता नहीं दिख रहा है. संजयलीला भंसाली की ये फिल्म शायद उनके करियर की सबसे विवादित फिल्म बनकर रह जाए. हो सकता है कि अगर ये रिलीज हो तो सुपर-डुपर हिट साबित हो. पर फिलहाल तो ऐसा लग रहा है जैसे मां पद्मावती नैशनल इशू बन गई हैं. देश की सुरक्षा, फौजियों की आत्महत्या, प्याज की कीमत सबसे ज्यादा बड़ा मुद्दा पद्मावती का है.
क्या किसी ने ये सोचने की कोशिश की कि पद्मवाती के अलावा भी मुद्दे कई सारे हैं जिनपर शायद ध्यान नहीं दिया जा रहा है. जैसे...
1. बिना जंग भी 1600 सैनिकों की मौत हर साल..
ये सैनिक किसी जंग में शहीद नहीं हो रहे बल्कि एक लेटेस्ट रिपोर्ट के अनुसार हर साल 1600 सैनिकों की मौत या तो सुसाइड या फिर किसी तरह के एक्सिडेंट से होती हैं. रोड एक्सिडेंट में लगभग 350 मौतें, 120 से ज्यादा सुसाइड और साथ ही साथ ट्रेनिंग के दौरान होने वाली मौतें, कई स्वास्थ संबंधी समस्याएं आदि भी शामिल हैं. 2014 से 2017 तक इन कारणों से लगभग 6500 सैनिकों की मौत हो चुकी है...
2. प्याज की कीमत...
प्याज में वो ताकत है जो सरकार गिरा दे. ऐसे में 80 रुपए प्रति किलो प्याज का होना बहुत दिक्कत का विषय है. टमाटर तो 80 रुपए किलो... मटर ने तो साहब पहले हफ्ते में 120 रुपए किलो का रिकॉर्ड भी छू लिया था. इस समय सर्दियां सबसे महंगी सर्दियों में से एक हैं. अंडे की कीमत भी आसमान छू रही है. एक अंडा सीधे दो से तीन रुपए महंगा हो गया. अब खुद ही सोचिए पद्मावती फिल्म तो ठीक है, लेकिन महंगाई आम आदमी को ज्यादा असर कर रही है.
3. ऑफिस और घर में घुसकर रेप...
दिल्ली की हालत ये हो गई है कि अब लड़कियों को घर से निकलने की जरूरत नहीं. ऑफिस की छत पर उनके साथ छेड़छाड़ की जाती है. घर में घुसकर रेप किया जाता है और तो और स्कूल में छोटी बच्चियां भी सुरक्षित नहीं. यकीनन पद्मावती से परे इस समस्या को लेकर विरोध होना चाहिए जो यकीनन एक नैशनल इशू है. लेकिन शायद इससे राजरूतानी आन-बान-शान को कोई ठेस नहीं पहुंचती.
4. पैराडाइज पेपर्स...
पनामा पेपर्स की तरह ही पैराडाइज पेपर्स का हाल भी हो गया. 19 देशों में सुपर रिच लोग अपने पैसे कैसे ठिकाने लगाते हैं इसका लेखा-जोखा तो सामने आया, लेकिन इसपर कोई कार्यवाही हुई या सिर्फ बात ही हुई ऐसा नहीं दिखता...
5. सीबीआई जज की मौत...
सीबीआई जज बीएच लोया की आकस्मिक मौत के बारे में शायद लोग भूल गए हैं. सोहराबुद्दीन शेख के फेक एन्काउंटर का केस जज लोया ही देख रहे थे. इस केस में भाजपा चीफ अमित शाह अहम आरोपी थे. 2014 में उनकी मौत अजीबो-गरीब ढंग से हो गई थी.
6. प्रद्युम्न की मौत और पुलिस का बयान...
केस को रफा-दफा करने की कितनी जल्दी होती है पुलिस के पास ये इस बात से ही पता लगाया जा सकता है कि आरुषि तलवार हत्याकांड के बाद भी पुलिस ने माता-पिता को दोषी ठहराया था जो निर्दोष साबित हुए. प्रद्युम्न हत्याकांड में भी पुलिस ने आरोपी कंडक्टर अशोक को दोषी ठहराया और इतना ही नहीं उसे टॉर्चर कर जुर्म भी कबूल करवाया. पुलिस किस हद तक अपना पल्ला झाड़ने की कोशिश कर रही है ये तो देखने वाली बात है.
7. प्रदूषण...
चाहें छठ पूजा के बाद यमुना और गंगा का हाल हो या फिर दिवाली के बाद दिल्ली का हाल, प्रदूषण और गंदगी में जीने की शायद भारतीयों ने आदत डाल ली है. तभी तो सिर्फ सोशल मीडिया पर एक स्टेटस अपडेट होता है और सब शांत बैठ जाते हैं. किसी को कोई परवाह ही नहीं. यहां खेलने आई श्रीलंकन क्रिकेट टीम भी दिल्ली में मास्क पहन कर घूम रही थी. अब खुद ही सोच लीजिए हाल कितने खराब हैं.
8. वर्ल्ड वॉर...
उत्तर कोरिया का लगातार मिसाइल परिक्षण, ट्रंप का जिद्दी व्यवहार सभी देखा जाए तो अब ऐसा लगता है कि तीसरा विश्व युद्ध दूर नहीं है. यकीनन विश्व युद्ध पद्मावती से तो बड़ा ही है.
9. अस्पतालों का खौफ..
एक तरफ एक डेंगू की 7 साल की मरीज की मौत पर दिल्ली का फोर्टिस अस्पताल 18 लाख का बिल देता है. उसमें 2700 ग्लव्ज और सीरिंज के पैसों से लेकर 700 रुपए मुर्दा लड़की के शरीर को ढकने के कपड़े तक अस्पताल ने शायद ये नहीं सोचा कि आखिर उस पिता पर क्या गुजर रही होगी जिसकी बच्ची मरी है. दूसरी जगह दिल्ली के ही मैक्स अस्पताल ने दो नवजात जुड़वा बच्चों को मृत घोषित कर पॉलिथीन में डालकर दे दिया. उसमें से एक जिंदा था. सिर्फ इसलिए क्योंकि लाइफ सपोर्ट के 50 लाख मां-बाप के पास नहीं थे.
सिर्फ महंगे प्राइवेट अस्पतालों में ही नहीं, बल्कि गोरखपुर के सरकारी अस्पता में भी कई मासूमों की मौत हो गई. आखिर ये कारण पद्मावती के विरोध से ज्यादा बड़ा और जायज नहीं लगता?
10. भारतीय रेल...
चाहें पैसेंजर ट्रेन हो या मालगाड़ी, इतने सारे एक्सिडेंट और हर साल रेल हादसों से होने वाली मौतें. चाहें वो पुल पर होने वाली मौत हो या फिर ट्रेन से गिरकर मरने वालों की संख्या. पहले ये सोचिए कि आप कब अगली ट्रेन यात्रा करेंगे फिर सोचिए कि विरोध होना चाहिए या नहीं?
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