Nirbhaya Case के दोषी मुकेश ने किस मुंह से दया की बात की है!
दोषी मुकेश (Nirbhaya case convict Mukesh Singh) ने भी दया याचिका (Mukesh Singh Mercy Petition) की गुहार लगा दी है, जो अब तक पूरे घमंड में रहता था. वैसे तो राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (President Ramnath Kovind) इसकी याचिका खारिज ही करेंगे, लेकिन मुकेश ने आखिर किस मुंह से ये याचिका दायर कर दी?
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निर्भया (Nirbhaya Case) के दोषियों की फांसी (Capital Punishment ) की तारीख 22 जनवरी जैसे-जैसे नजदीक आ रही है, उनकी छटपटाहट बढ़ती जा रही है. इस बात का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि दोषी मुकेश ने भी दया याचिका (Nirbhaya case convict Mukesh Singh Mercy Petition) की गुहार लगा दी है, जो अब तक पूरे घमंड में रहता था. वह कभी नहीं मानता था कि उसने गलत किया है, उल्टा निर्भया को ही बलात्कार (Rape) के लिए दोषी ठहराता रहता था. बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में तो उसने अपने मन की सारी भड़ास निकाली भी थी, लेकिन अब आंखों के सामने फांसी का फंदा झूलना देख उसके भी पैरों तले जमीन खिसक गई है और वह राष्ट्रपति की शरण में जा पहुंचा है. वैसे तो राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (President Ramnath Kovind) इसकी याचिका खारिज ही करेंगे, लेकिन मुकेश ने आखिर किस मुंह से ये याचिका दायर कर दी? उसे तो अपने किए पर शर्मिंदगी भी नहीं होती है उल्टा घमंडी की तरह खुद के किए पर फख्र करता रहा.
मुकेश सिंह अब तक दया याचिका दायर करने की बात नहीं करता था, लेकिन अब उसे भी डर लग रहा है.
क्या-क्या कहा था मुकेश ने?
मुकेश ने बीबीसी से की बातचीत में ऐसी बातें कही थीं, जिन्हें सुनकर एक अहिंसावादी इंसान का भी खून खौल जाए. उसकी बातों से ये साफ हो रहा था कि न तो उसे निर्भया का रेप करने पर कोई शर्मिंदगी नहीं है, उल्टा वह निर्भया के मत्थे ही रेप की जिम्मेदारी मढ़ता नजर आया था. देखिए उसने क्या-क्या कहा था-
- बलात्कार के लिए लड़की लड़के से ज्यादा जिम्मेदार है. सिर्फ 20% लड़कियां अच्छी होती हैं.
- ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती. इसके लिए 2 हाथ चाहिए होते हैं.
- लड़का और लड़की बराबर नहीं होते. शालीन महिलाओं को रात 9 बजे के बाद घर से बाहर नहीं घूमना चाहिए. लड़की को घर का काम करना चाहिए, न कि रात को डिस्को या बार में जाकर गलत काम करने और खराब कपड़े पहनने चाहिए.
- बलात्कार के वक्त उसे विरोध नहीं करना चाहिए, सहना चाहिए था. ऐसा होता तो बलात्कार कर के उसे छोड़ देते, बस उसके दोस्त की पिटाई करते.
- किसी भी रेपिस्ट को मौत की सज़ा देना लड़कियों के लिए और खतरनाक हो जाएगा. पहले रेप करके कहते थे, ‘इसे छोड़ दो, ये किसी से नहीं कहेगी.’ लेकिन अब जो रेप करेंगे, वो लड़की को सीधे मार देंगे, छोड़ेंगे नहीं.
किस मुंह से मांग रहा है दया?
मुकेश उन अपराधियों में से है जो अगर पकड़े ना जाएं तो न जाने कितनी लड़कियों की जिंदगी बर्बाद कर के उन्हें मौत के घाट उतार दें. निर्भया मामले के बाद तो वह पकड़ में आ गया, वर्ना ना जाने कितनों की हत्या करता. उसकी बातें भी ये बात साफ करती हैं. निर्भया के दोषियों में एक खुद को नाबालिग बताकर बच निकला, पवन गुप्ता अब खुद को अब नाबालिग बताने की कोशिश कर रहा था, अक्षय ठाकुर ने तो खुद के गरीब होने को फांसी से बचने के बहाने की तरह इस्तेमाल करना चाहा, लेकिन मुकेश किस मुंह से दया की अपील कर रहा है. मुकेश तो वो शख्स है, जिसमें अपने किए पर शर्मिंदगी तक नहीं. उसने तो यहां तक कह दिया कि फांसी की सजा का मतलब है कि अब हर रेपिस्ट रेप के बार लड़कियों की हत्या कर देगा. उसने तो ये भी कह दिया कि निर्भया ने चुपचाप रेप करने दिया होता तो वह बच जाती. ऐसे शख्स पर दया दिखाना तो दूर की बात है, उल्टा उस पर गुस्सा और बढ़ जाएगा.
फांसी से भी भयावह सजा मिलनी चाहिए
वैसे तो मानवाधिकार आयोग इस बात से बिल्कुल सहमत नहीं होगा, लेकिन मुकेश जैसे अपराधियों को सिर्फ फांसी देना काफी नहीं है. उसकी सजा तो इतनी भयावह होनी चाहिए कि क्रूरता की सारी हदें ही पार हो जाएं. मुकेश जैसी मानसिकता रखने वालों को ये समझ आए कि रेप करना और हत्या कर देने को भले ही वह बाएं हाथ का खेल समझते हों, लेकिन इसकी सजा इतना भयावह होग कि अच्छे अच्छों की रूह कंपा देगी. कानून में इसका भी प्रावधान किया जाना चाहिए.
मुकेश की वजह से फांसी पर फंसा पेंच
निर्भया के दोषी मुकेश सिंह ने इस मामले में दया याचिका की गुहार क्या लगाई, फांसी को लेकर एक पेंच फंस गया है. पेंच ये कि जब तक मुकेश की दया याचिका पर राष्ट्रपति फैसला नहीं दे देते, तब तक फांसी नहीं हो सकती है. उसके भी बाद भी 14 दिन देने जरूरी हैं. इतना ही नहीं, तिहाड़ जेल मैनुअल पर भी बहस हो रही है, जिसके अनुसार अगर किसी केस में चार लोगों को फांसी हुई है तो सबको फांसी एक साथ ही दी जाएगी. हालांकि, दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार को इस केस में जमकर लताड़ा है कि इस मामले में इतनी देरी क्यों की है. देखा जाए तो कोर्ट भी मान रहा है कि इस केस को लेकर लेत-लतीफी की गई है. खैर, दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार ये कह चुके हैं कि फांसी 22 जनवरी को होना मुश्किल है. अब ये देखना दिलचस्प होगा कि 7 साल से भी अधिक बीत जाने के बावजूद अब जब फांसी की तारीख तय हो गई है तो क्या ये फिर से टलती है या 22 तारीख को ही फांसी होती है.
निर्भया के दोषियों को 22 जनवरी को सुबह 7 बजे फांसी के फंदे पर लटकाया जाएगा. कई संगठनों की तरफ से ये मांग की जा रही है कि निर्भया के दोषियों की फांसी का लाइव प्रसारण किया जाए. देश की जनता से अगर इस मुद्दे पर वोटिंग करा ली जाए तो शायद फांसी को लाइव दिखाने पर अधिकतर लोग मुहर भी लगा दें. वैसे ऐसा मुमकिन नहीं लगता कि फांसी का लाइव प्रसारण दिखाया जाएगा.
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