...तो कश्मीरियों ने अपने हिस्से का नर्क खुद बसाया है
एक आम कश्मीरी को ये समझ लेना चाहिए कि उसे इंसाफ अलगाववाद और चरमपंथ से नहीं बल्कि साथ रहने से मिलेगा. यदि वो साथ रहता है तो ये देश के लिए एक अच्छी पहल है वरना वो जिस तरह आज परेशान है आगे भी रहेगा.
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जम्मू-कश्मीर ये एक ऐसा शब्द है जिसकी कल्पना मात्र से ही व्यक्ति मंत्र मुग्ध हो जाता है. मगर जब हम मौजूदा जम्मू-कश्मीर के विषय में सोचते हैं तो ऐसी कई बातें निकल के सामने आती हैं, जो किसी को भी आहत कर सकती हैं. कहा जा सकता है कि प्राकृतिक रूप से सबसे संपन्न राज्यों में शुमार कश्मीर अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है. एक ऐसा दौर, जो न सिर्फ इस खूबसूरत राज्य के विकास में बाधा डाल रहा है बल्कि उसे दशकों पीछे ढकेल रहा है.
कश्मीर के बारे में सबसे दिलचस्प बात ये है कि, राज्य की खस्ताहाली में जितनी भूमिका वहां की सरकार और अलगाववादी नेताओं की है इसके लिए उतनी ही जिम्मेदार वहां की आवाम है. एक ऐसी आवाम जिसे अलगाववादी नेताओं और चरमपंथियों ने, ये बात घोंट के पिला दी है कि, जब तक वो अलग नहीं होते, जब तक उन्हें 'आजाद' नहीं किया जाता तब तक उनका व्यक्तिगत विकास असंभव है.
शायद आम कश्मीरी ये मान चुका है कि वो हर उस चीज के साथ है तो गलत है
उपरोक्त बात समझने के लिए आपको एक खबर को समझना होगा. खबर है कि आतंकियों को दी जाने वाकले फंडिंग के तहत राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा घाटी के प्रमुख अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी के दामाद सहित सात लोगों की गिरफ्तारी के विरोध में अलगाववादियों ने कश्मीर बंद का आह्वान किया है. पाकिस्तान से फंडिंग के आरोप में गिरफ्तार किए गए 7 हुर्रियत नेताओं की पटियाला हाऊस में पेशी होगी होनी है जिसके बाद उन पर आरोप तय होंगे.
आपको बताते चलें कि इन सात आरोपियों में अल्ताफ फंटूस, बिट्टा कराटे, नईम खान, शहीद उल इस्लाम, गाजी जावेद बाबा सहित अन्य हुर्रियत नेता शामिल हैं. अल्ताफ, हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के प्रमुख सैयद अली शाह गिलानी का दामाद है.
वर्तमान परिपेक्ष के अंतर्गत, यदि हम कश्मीर के सियासी घमासान पर एक नजर डालें, तो मिलता है कि, जहां एक ओर हुर्रियत के इन अलगाववादी नेतओं की गिरफ्तारी से राज्य की जनता में रोष है तो वहीं दूसरी तरफ अलगाववादियों द्वारा कश्मीर बंद के आह्वान का समर्थन देकर उन्होंने ये साबित कर दिया है कि वो अलगाववादियों के साथ हैं. अतः हमारी कही ये बात अपने आप पुख्ता हो जाति है कि, राज्य की खस्ताहाली की जितनी जिम्मेदार वहां की सरकार है, उतनी ही जिम्मेदारी वहां के लोगों की भी है.
भारतीय सरकार की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान, भारतीय सेना पर पत्थरबाजी, आतंकियों के जनाजे में शिरकत, पाकिस्तान जिंदाबाद और भारत तेरे टुकड़े होंगे जैसे देश विरोधी नारे, पाकिस्तान परस्ती, अलगाववाद के प्रति समर्पण ये वो चंद बातें हैं. जो ये बताने के लिए काफी हैं कि, कश्मीर की खस्ताहाली की जिम्मेदार केवल वहां की सरकार नहीं है और वहां वर्तमान में वही काटा जा रहा है जो पूर्व में अलगाववादियों और चरमपंथियों द्वारा बोया गया है.
मौजूदा वक़्त में हम जैसे-जैसे कश्मीर को देख रहे हैं वैसे-वैसे यही मिल रहा है कि, शायद अब एक आम कश्मीरी ये मान चुका है कि वो हर उस चीज के साथ है तो गलत है. गौरतलब है कि आज राज्य के लोगों की एक बड़ी संख्या चरमपंथी नेताओं जैसे मीर वाइज या गिलानी से प्रेरित है.
ये नेता भी इस बात को बखूबी समझते हैं और लगातार उनके द्वारा अपने भाषणों में यही ऐलान किया जाता है कि वो कश्मीरियों के दुःख और दर्द को समझते हैं और उनके हितों के हिमायती हैं. ऐसे में यदि आम कश्मीरी उनका साथ देता है तो वो उन्हें उनके अधिकार दिला देंगे. कहा ये भी जा सकता है कि एक आम कश्मीरी अपने अधिकारों के लालच के अंतर्गत अब खुल कर उनका साथ दे रहा है जो कि सरासर गलत है.
अंत में इतना ही कि अब वो समय आ चुका है जब एक आम कश्मीरी को ये समझ लेना चाहिए कि उसे इंसाफ अलगाववाद और चरमपंथ से नहीं बल्कि साथ रहने से मिलेगा. यदि वो साथ रहता है तो ये देश के लिए एक अच्छी पहल है और यदि वो लीग से हटकर अलग चलने का प्रयास करता है और देश तोड़ने की बात करता है तो फिर उसकी वही हालत होगी जो आज है. यानी जिस तरह वो आज परेशान है आगे भी रहेगा.
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