सुषमा स्वराज के 'गुनाह' हर महिला के लिए सबक हैं!
आज जिस तरह आपको ट्रोल किया जा रहा है, वो यस्य नार्यस्तु पुज्यंते रमन्ते तत्र देवता वाले खोखले सूत्रों के देश में पुरुषवादी विकृत मानसिकता का ही द्योतक है. लेकिन आज इस लड़ाई को लड़ने के लिए द्रौपदी भी आप ही हैं, अर्जुन भी आप ही और कृष्ण भी आप ही.
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आदरणीय सुषमा जी नमस्कार,
आपकी गिनती एक सूझबूझ, समझ और विवेक वाली नेता के रूप में होती है. मौजूदा सरकार में आपकी गिनती ऐसे मंत्री के रूप में होती है जिनका अनुभव विदेश मंत्रालय को गरिमा और नई ऊंचाई देता है. आपने अपने व्यक्तित्व से साबित किया है कि संसदीय लोकतंत्र को चलाने और बनाए रखने के लिए आप जैसे नेता का होना क्यों जरूरी है. लेकिन पिछले कुछ दिनों से आप नाहक चंद लोगों की उन अभद्र टिप्पणियों का शिकार हो रही हैं, जिन्हें ना तो इस देश के अतीत का कोई ज्ञान है, ना भविष्य की कोई चिंता. ये वो लोग हैं जो सोशल मीडिया पर खुद के अनसोशल ही नहीं, असंगत और अभद्र होने की भी गवाही दे रहे हैं.
आपका गुनाह यही है कि आप पर हिंदू-मुस्लिम दंपती से जुड़े पासपोर्ट मामले में पासपोर्ट अधिकारी के तबादले का आरोप है. गुनाह इसलिए कह रहा हूं कि आजकल अपने मन की सुनने की आदत ऐसी हो गई है कि अगर किसी मुद्दे या सवाल पर मतभेद भी हो गया तो देशद्रोह से कम पर बात ठहरती ही नहीं. दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की खूबसूरती हमारे समाज के आईने में खुद को देखती है तो उसे सिर्फ विद्रुपताएं ही दिखती हैं. नहीं तो भारत और भारत सरकार आज अपनी विदेश मंत्री के हर पल होते अपमान पर चुप क्यों रहते? क्यों चुप रह जाती वो पार्टी जिसे 32 साल से आप अपने खून-पसीने से सींचती आ रही हैं? क्यों चुप रह जाती वो सरकार, जिसमें आप सबसे सीनियर मंत्रियों में शुमार हैं और क्यों चुप रह जाते स्वयं प्रधानमंत्री जी, जिनका कर्तव्य बनता है कि अपने मंत्री की मर्यादा की रक्षा के लिए सामने आते?
सुषमा स्वराज को ट्विटर पर जमकर ट्रोल किया गया
सुना है कि आपको ट्रोल करने वालों में कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्हें प्रधानमंत्री भी फॉलो करते हैं. गृह मंत्री राजनाथ सिंह और परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने जरूर ट्रोल को गलत बताया लेकिन बीजेपी और साथ में समूची सरकार की चुप्पी घातक भविष्य की तरफ इशारा कर रही है.
कहां तो बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा फिजाओं में गूंजता है और कहां हिंदुस्तान की आप जैसी एक बेटी को वही लोग अपमानित कर रहे हैं, जो खुद को आपकी पार्टी, आपके वैचारिक संगठन और राजनीतिक सोच का हामी मानते हैं. क्या विचारों की ये कट्टरता धीरे धीरे हमें 60-70 साल पहले वाले पाकिस्तान की तरफ नहीं ले जा रही है? अगर ऐसा नहीं होता तो अफवाहों का जहर अपनी धमनियों में भरने वाली उन्मादी भीड़ कैसे बेगुनाहों को बीच सड़क पर मार डालती? अगर ऐसा नहीं होता तो बुनियादी सवालों की जगह जजबातों का उभार राजनीति का विमर्श क्यों बन जाता और जिस विदेश नीति को राष्ट्रीय हित से जोड़ा जाता रहा है, वो कैसे चुनावी मुद्दा बनकर रह जाती?
इन सवालों का जवाब देश आपसे भी मांगेगा, क्योंकि आप इस सरकार की एक जिम्मेदार मंत्री हैं. आपका अतीत संघर्षों का दस्तावेज है. 23 साल की उम्र में लोग अपना करियर संवारते हैं तो आप अपने पति के साथ इमरजेंसी में इंदिरा विरोधी नेताओं के लिए केस मुकदमे लड़ रही थीं. वो संघर्ष आपको राजनीति में खींच लाया. हमने आपको कई बार रवींद्र नाथ टैगोर की उस महान पंक्ति को उद्धृत करने हुए सुना है- यदि तोर डाक शुने केऊ न आसे तबे एकला चलो रे. क्या आत्ममर्यादा की वो पंक्तियां सिर्फ सुनने-सुनाने के लिए हैं? मुझे ठीक से याद नहीं कि वो देवेगौड़ा सरकार पर विश्वास प्रस्ताव की बहस थी या गुजराल सरकार की, जिसमें डीएमके नेता मोरासोली मारन ने भारत, भारतीय और भारतीयता पर सवाल खड़ा किया था. तब आपने उसके विरोध में बोलते हुए पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर पर तंज कसा था कि उनके जैसा आदमी क्यों भीष्म पितामह की तरह चुप रह गया. आज जो लोग आपको ट्रोल कर रहे हैं, वो सिर्फ आपका अपमान नहीं कर रहे, वो उसी भारत, भारतीय और भारतीयता का अपमान कर रहे हैं जिसकी हामी आप हैं.
द्रौपदी के चीरहरण के वक्त कोई भीष्म, कोई द्रोण चुप रह जाए तो रह जाए लेकिन द्रौपदी को उठ खड़ा होना होगा. द्रौपदी भारत की सबसे तेजस्वी, मनस्वी, ओजस्वी और प्रतापी महिला का नाम है. महाभारत के युद्ध में कोई सवाल खड़ा कर सकता है कि नायक कौन था- कृष्ण या अर्जुन लेकिन नायिका तो द्रौपदी ही थी. इसलिए कि पुरुष दंभ से ग्रस्त समाज में उसने नारी मर्यादा की आवाज बुलंद की. आज जिस तरह आपको ट्रोल किया जा रहा है, वो यस्य नार्यस्तु पुज्यंते रमन्ते तत्र देवता वाले खोखले सूत्रों के देश में पुरुषवादी विकृत मानसिकता का ही द्योतक है. लेकिन आज इस लड़ाई को लड़ने के लिए द्रौपदी भी आप ही हैं, अर्जुन भी आप ही और कृष्ण भी आप ही. इसलिए उठ खड़ी होइए. मंत्री पद पाना बड़ी बात है लेकिन उससे भी बड़ी बात है उस पद को छोड़ देना, अगर बात अपनी गरिमा और मर्यादा की हो.
एक बात और. ये ट्रोलिंग सिर्फ आपकी नहीं हो रही है बल्कि जैसे संकेत मिल रहे हैं, उसमें इस देश की हर नारी धीरे-धीरे इसका शिकार होगी. कांग्रेस प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी की दस साल की बेटी से बलात्कार की धमकी इस खतरनाक भविष्य की आहट सुना रही है. कांग्रेस के नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने आपके बारे में कहा कि आपको बीजेपी के ही तैयार किए हुए राक्षस (ट्रोल) निशाना बना रहे हैं. दरअसल संवाद के लिए जहां संवेदना और विरोधियों के लिए भी सम्मान की गुंजाइश नहीं बचती, वहां लोकतंत्र बेमानी होने लगता है. लेकिन क्या आप भी इसके लिए कुछ हद तक जिम्मेदार नहीं हैं?
2004 में जब कांग्रेस की अगुवाई में यूपीए ने चुनाव जीता तो प्रधानमंत्री देश का कौन बने, ये फैसला कांग्रेस और यूपीए को करना था. लेकिन सोनिया गांधी का विरोध आपके लिए इतना महत्वपूर्ण हो गया कि उनके प्रधानमंत्री बनने की स्थिति में आप जोगिया भेष धारण करके बाल मुंडवाकर संन्यासिन की जिंदगी जीने की धमकी देने लगीं. ऐसी भावुक धमकियां लोगों को आंदोलित कर सकती हैं लेकिन भविष्य के लिए आहत मूल्यों और खतरनाक विचारों का दरवाजा भी खोलती हैं.
मैं यह नहीं कहूंगा कि लोकतंत्र खतरे में है. लेकिन अगर एक महिला का अपमान, वो भी सरकार की वरिष्ठतम महिला मंत्री का अपमान सरेआम सोशल मीडिया के बाजार में हो रहा हो तो ये खतरे की घंटी जरूर है. इससे जितनी जल्द ये समाज विरत हो, उतना अच्छा होगा. ये कैसे होगा, मैं नहीं जानता. बस फिराक गोरखपुरी का एक शेर ही कहा जा सकता है-
ना कोई वादा...ना कोई यकीं...ना कोई उम्मीद
मगर मुझे तेरा इंतजार करना था...
सादर,
एक आम हिंदुस्तानी
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