मोदी-मोशे मुलाकात और पाकिस्तान का 'डंक' !
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इजरायल यात्रा का अहम मौका. जिसमें एक ओर होगा मोशे, जिसके माता-पिता को पाकिस्तानी आतंकियों ने मार दिया, तो दूसरी ओर वह पीएम जिसके देश को रोज पाकिस्तान लहूलुहान कर रहा है.
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26/11. ये ऐसी तारीख है जो हर हिंदुस्तानी के जेहन में छपी हुई है. इस दिन का नाम आते ही हमारी आंखों के सामने बंदूक थामे आतंकवादी कसाब की तस्वीर घूमने लगती है. 29 नवंबर 2008 को देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में पाक आतंकियों द्वारा चार दिन चले सुनियोजित हमले में 164 लोगों की मौत हो गई थी और 308 लोग घायल हो गए थे.
दिल दहलाने वाली इस घटना में मुंबई के 8 प्रमुख जगहों- छत्रपति शिवाजी टर्मिनल, ओबराय होटल, ताज होटल, लियोपोल्ड कैफे, कामा अस्पताल, मेट्रो सिनेमा और नरीमन हाउस पर हमला किया था. नरीमन हाउस को चाबाद हाउस के नाम से भी जाना जाता है. ये एक पांच मंजिला मकान है जहां यहूदी लोग रहा करते थे.
मासूम मोशे को थामे सैंड्रा, जिसने उसे 26/11 के हमलों में चमात्कारिक रूप से बचा लिया था
इसे 2006 से राबी गैबरिएल और रिवका होल्ट्जबर्ग नाम के दंपति चलाते थे. इस बिल्डिंग को सांस्कृतिक और शिक्षा संस्थान के रूप में चलाया जाता था और यहूदियों के लिए इसे हॉस्टल की तरह प्रयोग किया जाता था. 2008 के आतंकी हमलों की आग नरीमन हाउस तक भी पहुंची थी, जिसमें 6 लोग मारे गए थे. मरने वालों में गैबरिएल और रिवका होल्ट्जबर्ग भी शामिल थे. उस वक्त रिवका होल्ट्जबर्ग पांच महीने के गर्भ से थीं. उनका एक ढाई साल का एक बेटा मोशे भी था. आतंकी हमले में होल्ट्जबर्ग दंपति भी काल के गाल में समा गए थे, लेकिन मोशे को उसकी आया सैंड्रा सैमुअल मौत के मुंह से निकाल लाई थी.
मोशे की आया होकर भी सैंड्रा ने मां-बाप दोनों का फर्ज निभाया
हमले के 8 साल सात महीने बाद सभी की जिंदगी आगे बढ़ गई. अब सांड्रा 53 साल की हो गई हैं और नन्हा मोशे 10 साल का. हमले के दो दिन बाद इजरायल सरकार ने सैंड्रा और मोशे को इजरायल लेकर चली गई थी जहां भारतीय मूल की सैंड्रा को इजरायल की मानद नागरिकता प्रदान की गई. अब सैंड्रा जेरूसलम स्थित अलेह जेरुसलम सेंटर नाम के रिहैब सेंटर में दिव्यांग बच्चों की देखभाल करती हैं.
मोशे के लिए सैंड्रा ने अपने बच्चों को छोड़ दिया
हालांकि सैंड्रा को मोशे के 6 साल का होने तक उसकी देखभाल करनी थी और उसके बाद देश वापस लौट आना था. लेकिन मोशे को अभी भी उनकी जरुरत है इसलिए अभी भी वो इजरायल में ही हैं और जब तक मोशे खुद की देखभाल करने के लायक नहीं हो जाता वहीं रहेंगी. मोशे अभी अपने नाना-नानी के पास रहता है और सैंड्रा हर शनिवार को जेरूसलम से 95 किलोमीटर दूर अफूला मोशे से मिलने जाती हैं. रविवार को सैंड्रा अगर घर नहीं आती तो मोशे परेशान हो जाता है. हालांकि पिछले 5 सालों में सिर्फ तीन रविवार ही ऐसा हुआ है जब सैंड्रा मोशे से मिलने नहीं जा पाई हैं!
मोशे अब दस साल का हो गया है
सैंड्रा, मोशे को सोनू नाम से पुकारती हैं. खुद सैंड्रा के दो बेटे मार्टिन (34 साल) और जैक्सन (26 साल) हैं. ये दोनों ही भारत में रहते हैं. लेकिन सैंड्रा के लिए अपने दोनों बेटों से ज्यादा प्यारा मोशे है. 2008 का वो कभी न भूलने वाला साल सैंड्रा के लिए मनहूसियत लेकर ही आया था. नवंबर में आतंकी हमले के ठीक 6 महीने पहले सैंड्रा के पति का देहांत हो गया था. इस सदमे से उबरने और अपना घर चलाने के मकसद से ही सैंड्रा ने होल्ट्जबर्ग दपंति के यहां नौकरी कर ली थी.
मोशे के लिए उसके माता-पिता की याद भी तस्वीरों में ही रह गई
खैर पिछले हफ्ते सैंड्रा को खुशियों की सौगात मिली, जब उन्हें पता चला कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने इजरायली दौरे के दौरान मोशे से मिलेंगे. लेकिन सैंड्रा को इस बात की खुशी ज्यादा थी कि मोशे पहली बार अकेले घर से कहीं बाहर गया था. उनका मोशे अब बड़ा हो रहा था. मोशो को उस मनहूस घटना की तो कोई याद नहीं है लेकिन वो अपने माता-पिता को बहुत याद करता है.
अब मोशे स्कूल जाता है जहां वो अपने धर्म की शिक्षा लेता है, साथ ही मैथ और अंग्रेजी भी सीख रहा है. मोशे मुख्यत: हिब्रू भाषा में बात करता है लेकिन सैंड्रा से वो इंग्लिश से ही बात करता है. सैंड्रा जब मोशे को उसके माता-पिता के बारे में बताती है तो वो शांति से सुनता है. ना तो कोई सवाल-जवाब, ना ही किसी तरह के शिकवे-शिकायत. लेकिन सैंड्रा चाहती हैं कि मोशे उनसे सवाल करे. मोशे उनसे पूछे कि- 'आखिर उसके माता-पिता क्यों बेमौत मारे गए.' मोशे को स्पोर्ट्स बहुत पसंद है और मेसी उसका फेवरेट प्लेयर है. उसे रोनाल्डो भी बहुत पसंद है. साथ ही वो टेबल-टेनिस और फुटबॉल का भी प्रेमी है.
मेसी का फैन मोशे, मम्मी-पापा को सैंड्रा की नजरों से ही जानता है
सैंड्रा के दिमाग में वो सारी घटना फिल्म की तरह छपी हुई है, जिसका खौफ उन्हें आज भी सोने नहीं देता. सैंड्रा का मोशे के लिए प्यार बताता है कि इंसान का इंसान बने रहना इतना भी मुश्किल नहीं है. 26/11 की घटना और इस तरह के कई वाकये तो लोगों के दिलों को जोड़ते हैं, लेकिन स्वार्थ में अंधे पाकिस्तान को कौन समझाएगा ?
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