Why women should carry both? मल्टी-टास्किंग के दबाव में दम घुटता है औरतों का!
महिलाओं और उनकी लाइफस्टइल को महिमामंडित करता प्रेगा न्यूज़ का नया विज्ञापन सुर्ख़ियों में है. सवाल ये है कि कहीं इस विज्ञापन के जरिये फेमिनिस्म के नाम पर फेक फेमिनिस्म को बढ़ावा तो नहीं दिया जा रहा?
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दुर्गा पूजा या महिला दिवस के दौरान 6 से 8 हाथों वाली औरत की वह तस्वीर आपने देखी ही होगी जिसके एक हाथ में बेलन, दूसरे में कर्छी, तीसरे में मोबाइल, चौथे में टिफिन, पाँचवे में लैपटॉप, छठे में दूध पीता बच्चा है और औरत खुद स्कूटी पर सवार है. महिलाओं को महिमामंडित करती उस तस्वीर को अब विज़ुअलाईज़ करके बेहतर तरीक़े से समझाया है, प्रेगा न्यूज़ के नये ऐड she can carry both ने. जिसे देखकर वाह! दिस इज़ द रियल वूमन कहकर मर्द खुद को थोड़ा सा और फेमिनिस्ट समझ लेते हैं. औरतें महिला होने पर गर्व महसूस लेती है. (महंगाई के इस दौर में सबसे सस्ता सिर्फ 'गर्व' है जिसे किसी भी फीलिंग/इमोशन के साथ फेंटा /लपेटा/जोड़ा/चिपकाया जा सकता है.)
एड में चार अलग उम्र, अलग पेशे की औरतें हैं- मॉडल, कंपनी एम्प्लॉय, सफाई-कर्मी, एसएसपी. अब स्टीरियोटाइप देखिये- चिलखते बच्चे को पुचकारती मां के हाथ से दूध की बोतल फिसलकर ज़मीन पर जा गिरी. सफाई कर्मी उठाते हुए बड़ी खुश और संतुष्ट होकर बताती है इस नौकरी से छूटते ही उसकी मां होने की ड्यूटी शुरु हो जाती है.
प्रेगा न्यूज़ का ऐड आया है और जैसा ये ऐड है साफ़ है कि महिलाओं के साथ धोखा किया जा रहा है
याद कीजिये फिल्म 'थप्पड़' जिसमें हेल्पर आखिर में अपने पति से सिर्फ इस बात के लिये पिटती चली जाती है की वह दूसरों के घरों में काम नहीं करना चाहती. मेरी हाउस हेल्पर लगभग हर दूसरे तीसरे दिन अपने पति और बेटे की कमा ना सकने की अयोग्यता को कोसती है. विलापती है अगर वे ढंग से कमाते तो रोज़ उसे घर-घर बर्तन ना मांजने पड़ते.
वापस लौटकर अधेड़ जुआरी मियां और जवां होते लड़के की तोंद तो कसनी ही होती है. बाक़ी राशन लाना, कपड़ा धोना, साफ़-सफाई जैसे सौ काम निपटाने होते. ज़ाहिरन बिना किसी सहयोग के. सड़क पर झाड़ू लगाने वाली हो या ईंट ढोने वाली. कमर-पीठ पर बच्चा टांग कर मजदूरी करने वाली औरतें मज़बूत कम मजबूर ज़्यादा होती हैं.
दूसरा स्टीरियोटाइप देखिये- बच्चे को चुप कराती एसएसपी के पास मैटरनिटी लीव है. जिसका इस्तेमाल ना करते हुए ड्यूटी जॉइन करके महान तो वे यूं ही घोषित हैं. (ध्यान दीजिये, जिस लीव के लिये वैश्विक स्तर पर संघर्ष हुए है, उसे यह ऐड फिज़ूल बताता है) अच्छा ड्यूटी पर आई भी है तो बच्चे से सम्बंधित हर तरह की ज़िम्मेदारी उठाने के लिये बहुत से विकल्प हैं. आप आर्डर तो दिजिये बच्चे की उल्टी हो या टट्टी जूनियर/ कर्मचारी वगैरह प्रसाद समझ कर उसे हाथ में समो लेंगे.
सरकारी नौकरी के साथ घर, गाड़ी, नौकर, छुट्टी, अच्छी खासी तनख्वाह वाली अधिकारी और एक सफाई कर्मचारी का मां होना एक ही है क्या? प्रेग्नेंसी भर कर्मचारी औरत को भरपूर पौष्टिक खाना, नींद, आराम मिलती है? दोनों का प्रसव एक जैसे अस्पताल में होता है? मातृत्व इतना ही चमत्कारिक है तो मिडिल, लोअर क्लास की अधिकतर औरतों में बच्चा जनने के बाद कैल्शियम, आयरन, हेमिग्लोबिन की कमी क्यों है?
'औरत मां बनकर ही पूर्ण होती है' को स्मार्टली नहीं बल्कि चालाकी से परिभाषित करता यह ऐड इनडायरेक्टली ट्रांस मदर, सिंगल मदर, विधवा, मां ना बन पायी या/और मां ना बनना चाहती, औरतों को हाशिये पर रखते हुए संदर्भ से ही बाहर रख देता है. इनके हिसाब से वे औरतें नहीं समाजिक दृष्टिकोण से आराजक तत्व हैं, जिन्होंने मां होने को चॉइस की तरह लिया है.
तीसरा स्टीरियोटाइप देखिए- विश्व के अब तक के सबसे महान नेता की 'कपड़ों से पहचान' (अपराधी की) वाली सूक्ति का समर्थन करते हुए बताता है, साड़ी-सिन्दूर यानी मुस्कुराती, शर्माती, ममतामयी, करूणामयी, आभामयी और सबसे ज़्यादा स्वयं पर गौरान्वित जो वाह-वाही की पात्र है, अच्छी औरत होती है. जबकि कोट-पैंट पहने, लैपटॉप पर काम करती महिला महत्वकांक्षी, करियर को प्रमुखता देने वाली, बच्चों से चिढ़ने वाली बुरी औरत होती है. (बुरी औरत की परिभाषा देखिये)
पित्रसत्ता का दंभ भरती इस ऐड का गुणगान करने वाले लाखों मर्दों के साथ औरतें भी हैं जिन्हें लगता है शी कैन कैरी बोथ. हां भाई, शी कैन. अब तक सारा दिन घर में यूं भी फ़ारिग ही फिरती थी. प्रगतिवादी सोच दिखाते हुए आपने नौकरी की इजाज़त दी है. खुशी के मारे निहाल हो उठी है. क्यों नहीं करेंगी. नौकरी से पहले भी मर्दो के साथ खेतों में भी जुत ही रही थीं. यस, शी कैन कैरी बोथ.
लेकिन सवाल यह है वाय 'ओनली' शी शुड कैरी बोथ? मर्द क्या सिर्फ सेक्स करेंगे...और 'बोथ' कैरी हो जाने पर औरतों को देवीस्वरूपा के तमगे से कृतार्थ कर तालियां बजाएंगे?
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