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Updated: 06 जून, 2015 05:08 PM
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हड़ताल कौन करता है? गरीब, दबे-कुचले लोग. अपने अधिकारों के लिए. लेकिन कभी सुना है कि समाज के सबसे सशक्त तबके ने हड़ताल किया हो? शायद नहीं. वक्त जो न कराए! तेलंगाना में ब्राह्मणों (पुजारियों और मंदिर कर्मचारियों) ने हड़ताल कर दिया है. उनकी मांग है - सैलरी बढ़ाओ, तभी पूजा-पाठ होगी और भक्तजनों की प्रार्थनाओं को भगवान तक 'ट्रांसफर' किया जाएगा.   

याद रहे कि यह हड़ताल उस तबके ने किया है, जो एक समय राजा-महाराजाओं के समकक्ष हुआ करता था. एक समय था जब शिक्षा पर ब्राह्मणों का एकाधिकार था. जजमानी भी खूब होती थी. समाज में इज्जत और ठसक थी. जमीन, धन-धान्य की कोई कमी नहीं. कुल मिलाकर धर्म और कर्म-कांड का 'पेशा' अच्छा था.

वक्त का पहिया घूमा और समाज का सबसे शक्तिशाली तबका आर्थिक रूप से ही सही, खुद को सबसे कमजोर महसूस करने लगा. नौकरी (सरकारी हो कॉर्पोरेट) वाले लोगों की समाज में पूछ होने लगी. उनके बैंक-बैलेंस महीने-दर-महीने बढ़ने लगे. परिणामस्वरूप जमीनों पर भी उनका अधिकार होने लगा. एक-दो पीढ़ी ऐसा हो तो अफसोस कर सहा जा सकता है, लेकिन पीढ़ी-दर-पीढ़ी हो तो आखिर कब तक!!!

यह कोई रॉकेट साइंस नहीं है. Survival of the Fittest का मसला है. बच्चे क्या खाएं, क्या पहनें और कहां पढ़ें - इन आधारभूत सवालों से जुड़ा है मंदिर के पुजारियों का हड़ताल पर जाना. और न ही भाव में बह कर कोई यह सोचे कि यह धर्म और जग-कल्याण है... यह विशुद्ध पेशा है साहब.

पुजारी सुबह-शाम मंदिर में काम करते हैं. दिन में भी पूजा-अर्चना होती है. इसके बदले बाजारवाद की इस दुनिया में उसका और उसके परिवार का काम जजमानी से चल जाए, यह तो होने से रहा! मेट्रो और बसों में जजमान कह कर उनसे टिकट न लिया जाता हो, यह तो हमने आज तक नहीं देखा है. ऐसे में जब बाजार उनके लिए नहीं बदल रहा तो उन्हें तो बदलना ही होगा न...

फिलहाल तेलंगाना में लगभग 6000 पुजारियों ने हड़ताल कर दी है. ये लोग मंदिरों में सिर्फ सुबह की पूजा कर रहे हैं जबकि अर्चना सेवा और आरती पूजा बंद कर रखी है. इन्हें 3000-5000 रुपये के बीच का मासिक वेतन दिया जाता है. इन लोगों की मांग है कि इसे बढ़ाकर 20000 रुपये प्रति माह किया जाए.

लेखक

चंदन कुमार चंदन कुमार @chandank.journalist

लेखक iChowk.in में पत्रकार हैं.

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