फ्रांस मामले में मुसलमानों को जैन समाज से प्रेरणा लेनी की जरूरत है
फ्रांस में जो हिंसा हो रही है उसके विरोध के लिए खुद मुसलमानों को आगे आना होगा. मुसलमानों का संगठित होकर इस कुकर्म के खिलाफ़ आवाज़ ना उठाना क्या उचित है? मुस्लिम समाज को समझना होगा कि उनके धर्म को बदनाम कोई दूसरा नहीं उनके अपने बीच के लोग कर रहे हैं. अब भी वक़्त है वरना दूसरों से की जा रहीं अपेक्षाएं अनुचित हैं.
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कुछ ही महीने पुरानी बात है जब लॉसवेगास के एक नाइट क्लब ने जैन प्रतिमाओं की अवहेलना की थी. यह कोई छोटा-मोटा क्लब नहीं है. अमेरिका के 7-8 महानगरों में इसकी ब्रांच है. सोशल मीडिया पर इसके लाखों फ़ॉलोवर्स हैं. इन्होंने अपने नाइट क्लब जोकि एक कसीनो क्लब है, वहां जैन प्रतिमाओं को साज-सज्जा की सामग्री बनाकर रखा. उन प्रतिमाओं के ऊपर चढ़कर पोल डांसर्स, अर्धनग्न अवस्था में अश्लील नृत्य करतीं जिनकी तस्वीरें इस क्लब के सोशल मीडिया से पोस्ट की गईं. जब यह बात जैन समुदाय के संज्ञान में आई तो उनकी भी धार्मिक भावनाएं आहत होना लाज़मी था. दिगंबर, बाल ब्रह्मचारी ईश्वर की ऐसी अवहेलना कौन सहन करता लेकिन इसके बदले में उन्होंने क्लब वालों का सर नहीं काटा. बल्कि वे संगठित हुए, भारत (India) के सभी जैन संगठनों ने अमेरिकी जैन-हिन्दू संगठनों के साथ मिलकर इस क्लब के खिलाफ़ कानूनी नोटिस जारी किए. इन्हें चेतावनी दी कि वे अपने क्लब से तत्काल प्रतिमाएं हटाएं अन्यथा उन्हें कड़ी कानूनी कार्यवाही का सामना करना पड़ेगा.
युवाओं ने सोशल मीडिया पर इनके पेज में संदेश भेजे कि सभी तस्वीरें हटाएं. नतीजा यह निकला कि दो दिन के भीतर उन्होंने तस्वीरें हटाईं और अपनी सभी ब्रांचेज़ से प्रतिमा हटाने की लिखित गारंटी दी. साथ ही अपने सोशल मीडिया से और लोकल मीडिया में इस अवहेलना के लिए माफ़ी मांगी. ये ख़बरें लॉसवेगास के सभी मीडियावालों ने कवर की थी.
विरोध के नाम पर फ्रांस का झंडा जलाते मुस्लिम प्रदर्शनकारी
अब यदि इसके स्थान पर कोई जैन अनुयायी क्लब वालों का सर काट देता तो क्या वह अहिंसा का संदेश देने वाले महावीर का उपासक कहलाता? क्या पैग़म्बर साहब ने कहा है कि आप उनका अपमान करने वालों का सार काट देना. वैसे सर तो निर्दोषों के भी काटे जा रहे हैं. लेकिन आप लोग उन सर काटने वालों के खिलाफ़ संगठित नहीं हो रहे बल्कि आप उस फ्रांस के खिलाफ़ रैलियां निकाल रहे हैं जो अपने लोगों को बचाने के लिए क़दम उठा रहा है.
आपको संगठित होना चाहिए उन लोगों के खिलाफ़ जो इस्लाम का चोला ओढ़कर आतंक फैला रहे हैं. आप कहिए उनसे कि इस्लाम के नाम पर ये आतंक आपको स्वीकार नहीं क्योंकि यह पूरे धर्म को बदनाम करता है. क्या आप ऐसा कर सकते हैं? क्या आप गारंटी ले सकते हैं कि दुनियाभर में फैले इस्लामिक आतंकवादी अब किसी का सर नहीं काटेंगे? कोई आतंकवादी हमला नहीं करेंगे?
आप बुरे नहीं हैं यह हम मानते हैं लेकिन आपका संगठित होकर इस कुकर्म के खिलाफ़ आवाज़ ना उठाना क्या उचित है? आपके धर्म को बदनाम कोई दूसरा नहीं आपके अपने बीच के लोग कर रहे हैं तो उसका नाम करने के लिए भी आपको ही आगे आना होगा. अन्यथा आपकी दूसरों से की जा रहीं अपेक्षाएं अनुचित हैं.
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