ईद के चांद को लेकर बहस खत्म करने की बहस...
Ramzan, Eid, रोज़ा इफ्तार, नमाज का समय चांद देखकर बताया जाता है. पर चांद नए वैज्ञानिक उपकरण और तरीकों से देखा जाए या पुराने उलेमा के तरीके से? ये मामला अब अंतरराष्ट्रीय बहस का मुद्दा बन गया है.
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रमजान का पाक महीना खत्म हो गया है और भारत सहित दुनिया भर के मुस्लिम रोज़े खत्म होने के बाद ईद मनाने की तैयारी कर रहे हैं. रमजान महीने की खासियत के बारे में तो शायद आप जानते हों, लेकिन जो बात अधिकतर लोगों को उलझा देती है वो ये कि आखिर रमजान का महीने एक ही देश में अलग-अलग दिन कैसे शुरू हो सकता है. भारत की ही बात ले लीजिए. केरल में रमजान 5 मई से शुरू हुआ तो दिल्ली सहित पूरे उत्तर भारत में ये 6 मई से शुरू हुआ. इसको लेकर पूरे विश्व के मुसलमानों में बहस सी छिड़ गई है कि क्या रमजान, ईद आदि के लिए वैज्ञानिकों के तथ्यों का इस्तेमाल किया जाए या फिर उलेमा (इस्लामिक धर्माधिकारी जिन्हें इस्लाम के नियमों के बारे में अच्छी खासी जानकारी होती है और साथ ही साथ इफ्तार, रमजान, नमाज, ईद आदि का समय और दिन निर्धारित करते हैं.) की जानकारी पर भरोसा किया जाए.
पाकिस्तान में तो इसे लेकर अच्छी-खासी बहस शुरू हो गई है. पाकिस्तान के विज्ञान और तकनीकी मंत्री चौधरी फवाद हुसैन के मुताबिक एक वैज्ञानिक कमेटी का गठन किया गया है जो अगले पांच सालों का इस्लामिक कैलेंडर बना देगी. उलेमा की बात पर उनका कहना है कि जो लोग ठीक से अपने सामने खड़े लोगों को नहीं देख पाते आखिर वो क्या चांद देखकर ईद और रमजान का फैसला करेंगे.
बात भी सही है आखिर धार्मिक बातों को कब तक ऊपर रखा जाए? जिस समय चांद देखकर ईद और रमजान का समय बताने की बात कही गई थी तब कोई भी वैज्ञानिक उपकरण नहीं थे. ऐसे में मानव द्वारा फैसला लिया जाता था. अब बात बदल गई है.
It’s ironic that ‘guardians of the faith’ reject @fawadchaudhry’s proposal for the lunar calendar when the Muslim Scientists were the pioneers in Astronomy and the Lunar calendar back in the 18th century! This is basically an issue of losing significance. #dukanbandh pic.twitter.com/eEY6vLMVe6
— Omair Rana (@omairana) May 7, 2019
इस वीडियो में एक अहम बात कही गई है. सही तारीख को निर्धारित न करने के कारण भाई के घर ईद और बहन के घर रमजान हो सकता है. यही बात है जो चांद देखने के तरीके को बेहद विवादित बनाती है. रमजान का महीना सऊदी, पाकिस्तान, ईरान सब जगह कुछ अंतर से शुरू हुआ और ईद भी अलग दिन ही मनाई जाएगी.
पुराने जमाने और नए जमाने में बहुत अंतर है. जहां एक ओर पुराने जमाने में चांद देखने और वैज्ञानिक तौर पर लूनर साइकल निर्धारित करने का कोई तरीका नहीं था अब बहुत से टेलिस्कोप इसके लिए तैनात हैं. अब ऐसी गणनाएं बहुत आसानी से हो सकती हैं.
इस्लामिक कट्टरपंथी मानते हैं कि आंखों से देखे गए चांद को ही तय पैमाना मानना चाहिए. वही नए महीने की शुरुआत बता सकता है. पर एक धड़ा ये भी कहता है कि इसके लिए वैज्ञानिक गणनाओं का सहारा लेना चाहिए.
GCC (Gulf Cooperation Council) देशों में चांद को देखकर ईद और रमजान तय करने का रिवाज है, लेकिन मलेशिया और तुर्की जैसे देशों में अब ये वैज्ञानिक गणनाओं के आधार पर तय हो रहा है.
एक विश्वसनीय मुस्लिम स्कॉलर डॉक्टर अहमद अल कुबैसी का कहना है कि पैगंबर ने कहा था, 'रमज़ान का चांद देखकर ही रोज़े शुरू करें और अपना रोज़ा शव्वाल के चांद को देखकर तोड़ें. अगर आसमान साफ नहीं है तो शाबान (शब-ए-बारात) से 30 दिन गिन लें.' इसके बाद ही चांद देखकर रमजान का महीना और ईद तय करने का रिवाज आया था. अब क्योंकि नए वैज्ञानिक उपकरण और गणनाएं हैं तो फिर मुसलमानों ने चांद देखने के रिवाज को दरकिनार करना शुरू कर दिया है. और पहले किसी मुस्लिम के पास वैज्ञानिक उपकरण थे भी नहीं जिनका इस्तेमाल किया जा सके.
चांद देखने और तारीख तय करने के लिए वैज्ञानिक तरीकों का इस्तेमाल अपवाद नहीं होगा.
कुबैसी के मुताबिक पैगंबर ने ये भी सिखाया है कि हम अपने ज्ञान के उमाह हैं और हमें प्रगति की ओर बढ़ना है. हमें ज्ञान प्राप्त करना है और जिस दौर में रह रहे हैं उसके हिसाब से ढलना है. और इसीलिए मुसलमानों ने वैज्ञानिक उपकरणों का सहारा लेना शुरू कर दिया.
यहीं अरब यूनियन फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड स्पेस साइंस के चेयरमैन और शारजाह विश्वविध्यालय के कुलपति डॉक्टर हुमैद मजोल अल नुआमी के अनुसार खगोल विज्ञान ने ही सूर्य और चंद्र ग्रहण के समय का पता लगाया और ये वैज्ञानिक गणनाओं का ही नतीजा है कि सब कुछ समय पर होता है. हुमैद के मुताबिक चांद का पृथ्वी का चक्कर लगाना ही लूनर कैलेंडर है जिसे इस्लामिक और हिजरी कैलेंडर भी कहा जाता है. दो पूर्णिमा के बीच समय 29.5 दिन हो सकता है और ऐसी ही गणनाओं को आधार बनाया जा सकता है.
जहां तक चांद देखने की बात है तो उसके लिए विज्ञान का सहारा लिया जा सकता है और इससे कई समस्याओं का हल मिल जाएगा. यहां तक कि तस्वीरें भी खींची जा सकती हैं जिनका इस्तेमाल अलग-अलग समय पर किया जा सकता है. ऐसे में चांद दिखने की गलत अफवाहों को भी दरकिनार किया जा सकता है.
नए चांद का बनना और दिखना दो अलग बातें हैं. खगोल विज्ञान भी इसे मानता है. वैज्ञानिक मानते हैं कि नए चांद का समय एक सेकंड तक सटीक बताया जा सकता है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि नया चांद देखा भी जा सके.
अगले 10 हज़ार सालों तक नए चांद का समय बताया जा सकता है, यहां तक कि कई वेबसाइट भी ये कर सकती हैं, लेकिन अगर कोई खगोलीय घटना हो रही है तो इसका मतलब ये नहीं है कि वो देखी भी जा सकेगी. नया चांद तब तक नहीं दिखेगा जब तक वो सूर्य से सात डिग्री दूर न हो और अपने कक्ष से पांच डिग्री ऊपर न हो. इसकी गणना करने के लिए कई पैमाने तय किए जाते हैं.
जहां तक पाकिस्तान की चांद देखने वाली कमेटी का सवाल है तो चौधरी फवाद हुसैन ने यकीनन एक बड़ा कदम उठाया है कि वो अगले पांच सालों तक चांद और उससे जुड़े सवालों को एक साथ खत्म कर देंगे, लेकिन जहां तक पाकिस्तान का सवाल है तो वहां इमरान खान खुद कहते हैं कि वो विज्ञान और रूहानियत को मिलाकर एक सुपर साइंस बनाएंगे. वहीं बड़ी समस्या है कि विज्ञान को माना जाए या रूहानियत को. जिस पाकिस्तान में लड़कियों के लिए शादी की बालिग उम्र का ही निर्धारण धर्म के आधार पर किया जा रहा हो वहां चांद को लेकर कितनी बहस छिड़ने वाली है ये तो वक्त ही बताएगा.
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