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Updated: 07 मई, 2019 07:15 PM
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आज से रमजान की शुरुआत हो चुकी है. ओह सॉरी... रमजान नहीं... रमज़ान(Ramzan). या यूं कहें कि रमादान(Ramadan)? हर बार मुस्लिमों के इस पर्व पर कोई न कोई बहस छिड़ती ही है. इस बार बहस इस बात पर छिड़ी है कि ये रमज़ान नहीं रमादान होता है. दावा किया जा रहा है कि सही शब्द है रमादान, लेकिन हम इसे गलत बोलते हैं... रमज़ान. तो क्या वाकई ये गलत है? क्या इतने दिनों से हम सभी गलत बोलते आ रहे थे.? Ramzan Mubarak के इस पावन मौके पर पीएम मोदी ने भी ट्विटर पर मुस्लिम समुदाय के लोगों को शुभकामना देते हुए रमज़ान लिखा है. मतलब सभी गलत हैं?

दरअसल, ये सिर्फ अलग-अलग भाषा में उच्चारण का फेर है. रमज़ान कहें, या रमजान कहें, या रोमजान कहें, या फिर भले ही रमादान क्यों ना कहें, सब एक ही हैं. अलग-अलग जगह की अलग-अलग भाषा की वजह से मुस्लिमों के एक ही पर्व के कई नाम पड़े हैं. खैर, फिलहाल सोशल मीडिया पर लड़ाई रमज़ान और रमादान को लेकर है, जिसका कोई मतलब नहीं है. यानी एक बात तो साफ है कि इसमें बहस वाली कोई बात नहीं है. जिसकी जैसी भाषा होगी, वो वैसा ही उच्चारण करेगा.

रमज़ान, मुस्लिम, अरबीरमज़ान और रमादान एक ही है, बस भाषा का फर्क है, क्योंकि अरबी भाषा में 'ज़' अक्षर ही नहीं है.

रमज़ान और रमादान में फर्क क्या है?

इसमें सिर्फ एक ही फर्क है कि रमज़ान का उच्चारण मूलत: फारसी भाषा के लोग करते हैं. जब ये भारत में आया और उर्दू में शामिल हो गया. जबकि रमादान का उच्चारण अरबी भाषा बोलने वाले मुस्लिम करते हैं. भारत में रमज़ान कहा जाता है और अरबी दुनिया में रमादान. हालांकि, ये दोनों शब्‍द फारसी और अरबी भाषा में लिखे एक ही तरह से जाते हैं. लेकिन जब इसे पढ़ा जाता है तो अरबी में रमादान पढ़ते हैं, क्योंकि उनकी भाषा में 'ज़' (zwad) अक्षर है ही नहीं. वह 'ज़' को 'द' (dwad) पढ़ते हैं, इसलिए रमज़ान को रमादान पढ़ते हैं.

रमज़ान, मुस्लिम, अरबीरमज़ान और रमादान को लिखा तो एक ही तरह जाता है, लेकिन अलग-अलग भाषा के लोग अलग-अलग पढ़ते हैं.

हिंदुस्तान टाइम्स के पत्रकार रेजुल हसन लश्कर ने इसे समझाने के लिए कुछ शब्दों का उदाहरण दिया है, जिन्हें उर्दू या फरसी में कुछ और कहा जाता है, लेकिन अरबी में उसे कुछ और ही कहते हैं. जैसे अरबी में 'रोज़ा' शब्‍द नहीं है, इसे वहां सौम (sawm) कहते हैं. सेहरी को अरबी में सुहूर (suhoor) कहते हैं, नमाज़ को अरबी में सलह (salah) कहते हैं, अज़ान को अरबी में अधान (adhan) कहा जाता है और बुर्का को अरबी में अबाया (abaya) कहते हैं. खैर, ये तो बस चंद उदाहरण हैं, इसकी लिस्ट बहुत लंबी है.

तो फिर रमज़ान को रमादान क्यों कहा जाने लगा है?

भारत में पहले के लोग तो रमज़ान ही कहते रहे हैं, लेकिन नई पीढ़ी खुद को अरबी दिखाने में गर्व महसूस करती है और यही वजह है कि अब रमज़ान धीरे-धीरे रमादान बनता जा रहा है. इतना ही नहीं, आज के समय में कट्टरता काफी बढ़ चुकी है. जो मुस्लिम खुद को सच्चा मुसलमान दिखाना चाहते हैं, वह अरब से प्रभावित हैं, क्योंकि वह मानते हैं कि वही सच्चे मुसलमान हैं. वक्त बीतने के साथ-साथ हिंदू भी कट्टर हुए और मुस्लिम भी कट्टरता की ओर बढ़े हैं. रमज़ान का रमादान बनते जाना इसी का नतीजा है.

भारत में लगातार मुस्लिम शासकों के आक्रमण के चलते इस्लाम ने सूफीवाद और फारसी भाषा को स्वीकार करना शुरू कर दिया. नतीजा ये हुआ कि 'खुदा हाफिज' (अलविदा या goodbye) जैसे शब्द सामने आए. हालांकि, जो लोग खुद को सच्चा इस्लाम मानने वाला कहते हैं, उन्होंने 'अल्लाह हाफिज' बोलना शुरू कर दिया.  इस्लाम ने अरबी की लिपि को तो अपना लिया, लेकिन अपनी संस्कृति नहीं छोड़ी. इसी वजह से जिसे अरबी लोग 'द' पढ़ते हैं, उसे भारत के मुस्लिमों ने 'ज़' ही पढ़ा. 

तो एक बात ये साफ है कि रमज़ान और रमादान एक ही है, बस उच्चारण का फर्क है, क्योंकि अरबी भाषा में 'ज़' अक्षर ही नहीं है, उसे 'द' कहते हैं. ये बिल्कुल वैसा ही है, जैसे बिहार के व्यक्ति को प्रायः 'श' बोलना नहीं आता है. हालांकि, वह लिखता बिल्कुल सही है, लेकिन बिहारी भाषा में 'श' अक्षर है ही नहीं, इसलिए वह 'श' को भी 'स' ही बोलता है. खैर, रमज़ान और रमादान पर चल पड़ी बहस में न सिर्फ मुस्लिम समुदाय के लोग बहस कर रहे हैं, बल्कि हिंदू धर्म के लोग भी इसमें कूद पड़े हैं. इसमें अधिकतर लोग ऐसे हैं, जिन्हें रमज़ान और रमदान की पृष्ठभूमि का भी नहीं पता है. कम से कम ऐसे लोगों को इस बहस में कूदने से बचना चाहिए, ताकि सिर्फ भाषा की वजह से चल पड़ी ये बहस हिंदू और मुस्लिम समुदाय के बीच विवाद का मुद्दा ना बन जाए.

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