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Updated: 07 फरवरी, 2017 05:53 PM
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1 से 4 फरवरी को दुनिया में ऐसा कुछ नहीं हुआ जिससे कि हलचल मचती. लेकिन एक देश ऐसा है जहां की औरतों के लिए एक बड़ी घटना घटी. हालांकि ये सुर्खियां नहीं बनी पर फिर भी उनके लिए ये किसी जैकपॉट से कम नहीं था. ये देश है सऊदी अरब.

सऊदी अरब का नाम सुनते ही आपके ज़ेहन में सबसे पहली बात क्या आती है? औरतों के लिए नर्क! है ना? इस देश के लिए और कोई संज्ञा सही हो भी नहीं सकती. ये ऐसा देश हैं जहां औरतों के मूलभूत मौलिक अधिकारों की बात तो भूल जाइए, गाड़ी चलाने तक का अधिकार नहीं देती. लेकिन धीरे-धीरे यहां के हालात बदल रहे हैं. ऐसा मान सकते हैं. हालांकि सच्चाई अभी भी उतनी ही कड़वी है.

1 से 4 फरवरी तक तीन दिन सऊदी अरब में महिला दिवस मनाया गया. इसमें महिलाओं के अधिकारों और उनकी स्थिति के बारे में बात की गई. सबसे बड़ी बात की शाही परिवार के लोगों ने इश कार्यक्रम में हिस्सा लिया. रियाध के किंग फहाद कल्चरल सेंटर में हुए इस कार्यक्रम में सिर्फ महिलाओं और उनसे जुड़े मुद्दों पर बात हुई. शिक्षा और खेल जैसे क्षेत्रों में देश के महिलाओं की भागीदारी पर जाने-माने वक्ताओं ने अपना मत रखा.

अरब न्यूज़ के मुताबिक इस कार्यक्रम का आयोजन सऊदी अरब के कला और सूचना मंत्री के आदेश के बाद किया गया था. किंग फहाद कल्चरल सेंटर के प्रवक्ता ने बताया कि- 'हम लोगों को ये बताना चाहते हैं कि शिक्षा, कला, मेडिसिन, साहित्य और भी कई क्षेत्रों में महिलाओं का कितना योगदान है. हम सऊदी महिलाओं और उनकी उन्नति का जश्न मनाना चाहते हैं.'

कार्यक्रम में देश के पुरुष संरक्षण कानून को खत्म करने की भी मांग की गई. इस कानून के तहत् महिलाओं को पासपोर्ट, शादी, कहीं भी आने-जाने या फिर ऊंची शिक्षा के पहले पुरुष संरक्षक से इजाजत लेनी होती थी. बैठक में सऊदी अरब के शाही परिवार की औरतों ने भी हिस्सा लिया. राजकुमारी अल-जवाहरा बिंत फहाद अल-सउद ने महिलाओं की शिक्षा पर बात की. राजकुमारी, महिलाओं के गाड़ी चलाने से लेकर स्वास्थ्य और कानूनी अधिकारों के मुद्दे पर मुखर रही हैं.

सऊदी अरब अपने देश में महिलाओं के अधिकारों के हनन के लिए हमेशा निशाने पर रहा है. यहां तक कि वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के 2015 में जारी किए गए अपने ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट में सऊदी अरब 145 देशों में 134वें नंबर पर था. हालांकि महिलाओं पर से पुरुषों के अधिकारों को कम करने कवायद चल रही है लेकिन अभी तक ये कागज़ों पर ही दिखती हैं. ज़मीनी हकीकत जस की तस बनी हुई है. यहां तक की 2016 में एक आदमी को सिर्फ इसलिए जेल में डाल दिया गया था क्योंकि उसने महिलाओं पर पुरुषों के अधिकार को खत्म करने की मांग की थी!

saudi-woman_650_020717023222.jpgकहीं ये भी तो ढाक के तीन पात साबित नहीं होगा?

ऐसे देश में जहां महिलाओं को मौलिक अधिकार तक मयस्सर नहीं हैं वहां महिला दिवस का मनाना अपने आप में एक क्रांतिकारी कदम है. आगे भी देश के कला और आर्थिक क्षेत्रों में बदलाव के लिए विजन-2030 नाम से एक प्लान तैयार किया गया है. लेकिन क्या ये तीन दिन का कार्यक्रम अपने आप में पर्याप्त है? क्या इसके बाद जमीनी हकीकत बदलेगी या फिर ये भी कोरी बातें ही साबित होंगी?

वैसे 2015 में सऊदी अरब में महिलाओं को वोट करने और निगम चुनाव लड़ने का अधिकार दिया गया लेकिन फिर भी अभी इन्हें बदलाव की जरुरत है. यहां की महिलाओं को अभी भी रुढ़िवादी कानूनों से बांध कर रखा गया है. यहां महिलाओं को ट्रैवल करने से पहले अपने पुरुष संरक्षकों से इजाजत लेनी होती है. महिलाओं को अगर खेल में हिस्सा लेना है तो इजाजत लेनी पड़ती है. घर के बाहर के पुरुषों से महिलाओं को बात करने की इजाजत नहीं है. यही नहीं शॉपिंग मॉल में महिलाओं को कपड़े ट्राई करने तक की इजाजत नहीं है!

लेकिन अब सऊदी की महिलाएं अपने अधिकारों के लिए आवाज़ उठा रही हैं. जनवरी में एक वीडियो रिलीज हुआ था जिसमें महिला पर किए गए अत्याचार को दिखाया गया. इस वीडियो को सोशल मीडिया पर लाखों लोगों ने देखा था. Hwages नाम के इस वीडियो में महिलाएं पूरे इस्लामिक कपड़ों में दिखती हैं. वो कई कामों में हिस्सा लेती हुई दिखाई गई हैं और जो गाना गा रही हैं जिसके बोल हैं- अगर भगवान हमें मर्दों से बचाए.

हम उम्मीद ही कर रहे हैं कि सऊदी अरब महिलाओं के लिए अपनी रुढ़िवादी सोच से बाहर आएगा और मिडिल ईस्ट के कई देशों के लिए एक उदाहरण बन पाएगा.

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