शर्मनाक: नेता दस लाख की गड्डी लहरा रहे थे, उधर एक बच्ची भूख से मर गई
जहां एक तरफ गुजरात में 500-500 रुपये की बीस गड्डियां हैं. दूसरी तरफ झारखण्ड में भूख और तड़प है. पांच रुपये का चावल भी नसीब नहीं हो रहा, जिससे पेट की आग बुझ सके.
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दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के ये दो अनूठे चेहरे हैं- एक तरफ एक करोड़ रुपये भी कोई मायने नहीं रखते, तो वहीं दूसरी तरफ एक मुट्ठी भात दे पाने में भी सरकार सक्षम नहीं है. जी हां, हम बात कर रहे हैं गुजरात और झारखण्ड की.
जहां एक तरफ गुजरात में 500-500 रुपये की बीस गड्डियां हैं. बिक जाते तो इस तरह की 180 गड्डियां और मिल जातीं. दूसरी तरफ झारखण्ड में भूख और तड़प है. पांच रुपये का चावल भी नसीब नहीं हो रहा, जिससे पेट की आग बुझ सके. एक तरफ नरेंद्र पटेल हैं, जो दस लाख रुपये लेकर एक करोड़ की बोली लगाने वाली सत्ताधारी पार्टी की पोलपट्टी खोलने सामने आ गये. वहीं झारखंड के सिमडेगा जिले में भूख से तड़पकर, भात-भात की रट लगाते 11 साल की बच्ची की मौत हो गई.
सबसे पहले बात गुजरात की-
लाखों की गड़्डियां चुनाव में झोंकने के लिए
गुजरात में विधानसभा चुनाव अपने चरम पर है. ऐसे में जैसा कि हमारे लोकतंत्र में हमेशा से होता रहा है, राज्य में खरीद-फरोख्त के आरोपों का दौर भी शुरू हो चुका है. हार्दिक पटेल के करीबी और पाटीदार नेता नरेंद्र पटेल ने मीडिया के सामने आकर बीजेपी पर बड़ा आरोप लगाते हुए दावा किया कि बीजेपी में शामिल होने के लिए उन्हें एक करोड़ रुपये देने की पेशकश की गई थी. जिसमें से दस लाख रुपये उन्हें अग्रिम राशि के रूप में मिल चुके हैं. उन्होंने मीडिया के सामने 500 के नोटों की गड्डियां दिखाईं और आरोप लगाया कि बीजेपी ने उन्हें 10 लाख रुपए दिए हैं. उनके अनुसार बीजेपी में शामिल हुए हार्दिक पटेल के सबसे बड़े करीबी वरुण पटेल के जरिए ये पैसा दिया गया था. हालांकि सत्ताधारी दल ने इस दावे को सिरे से खारिज कर दिया.
अब बात झारखण्ड की-
भात-भात रटते हुए ये बच्ची मर गई
जहां एक तरफ हमारा देश तरक्की के रास्ते पर दौड़ना चाहता है और शाइनिंग इंडिया, डिजिटल इंडिया के बाद बुलेट ट्रेन चलाने की कवायद के साथ बड़ी तेजी से न्यू इंडिया की तरफ कदम बढ़ाने में लगा हुआ है. तो वहीं दूसरी तरफ देश में गरीब बच्चे भूख से बिलख-बिलख कर दम तोड़ दे रहे हैं. बच्चे की भूख और बेबस मां की पुकार कोई सुन नहीं रहा. झारखण्ड में एक महीने के अंदर भूख से मरने वाले बच्चों की संख्या 3 तक पहुंच चुकी है.
देवघर : 23 अक्टूबर को देवघर के मोहनपुर प्रखंड स्थित भगवानपुर गांव निवासी रूपलाल मरांडी (60) की मौत हो गयी. मृतक की बेटी के अनुसार घर में अनाज का एक दाना भी नहीं था. रूपलाल कुछ दिनों से भूखा था. राशन कार्ड से सितंबर व अक्टूबर माह का अनाज नहीं मिला. डीलर ने बायोमेट्रीक मशीन में अंगूठा काम नहीं करने के कारण अनाज दिये बगैर लौटा दिया था.
झरिया : 20 अक्टूबर को झरिया में एक रिक्शा चालक की भूख से मौत हो गई. 40 साल के बैजनाथ दास के घर में अनाज का एक दाना भी नहीं था. वो बीमार होने के कारण रिक्शा भी नहीं चला पा रहा था.
सिमडेगा : 28 सितम्बर को झारखंड के सिमडेगा की रहने वाली 11 साल की एक बच्ची की भूख से तड़प कर मौत हो गई थी. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार राशन कार्ड का आधार नंबर से लिंक न होने की वजह से उसके परिवार को सरकारी लाभ नहीं मिल पाया था.
तो ये था हमारे लोकतंत्र का दो वास्तविक चेहरा. इसे हम नकार भी नहीं सकते क्योंकि ये सीरे घटनाएं हमारे समाज के लिए नई नहीं है. सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या लोकतंत्र नोटों में सिमट गया है या फिर भूख से तड़प रहा है? और लोकतंत्र के इस खाई को हम सभी को मिलकर पाटना ही होगा.
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