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Updated: 09 अक्टूबर, 2019 06:00 PM
गिरिजेश वशिष्ठ
गिरिजेश वशिष्ठ
  @girijeshv
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कल शाम दूध लेने गया तो दुकानदार ने कैरीबेग देने से मना कर दिया. बताया कि बैन हो गया है. पास खड़े सज्जन बोले - 'सारा सामान तो पॉलीथीन में आ रहा है. तुम्हारे चिप्स, तुम्हारे नमकीन, तुम्हारा दूध भी तो इसी में है.' दुकानदार ने कहा - 'साहब रोक सारी हमारे ऊपर ही है. दो हज़ार का चालान कर देंगे.' पास वाले सज्जन ने दिखाया कि कैसे कोल्डड्रिंक की बॉटल भी अब प्लास्टिक के श्रिंक पैकेज में आ रही है. पहले ये कार्टन में आया करती थी.

कल ही सुबह भंडारे की स्वादिष्ट पूरियां और सब्जी खाने पहुंचे तो कागज़ पर चमकीली पन्नी चढ़ी खांचे वाले प्लेट थी. चमकीली पन्नी न दिखे इसलिए बनाने वाले ने उसके ऊपर एक पतला कागज़ और चढ़ा दिया था. भंडारा करने वालों ने कहा कि सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध है. ये प्रतिबंध किसी होटल में नहीं है ब़ड़े रेस्त्रां में नहीं है. आज भी स्टारबक्स के आउटलेट पर कोल्ड कॉफी डिस्पोजेबल पेट गिलास में ही मिलती है. कोल्ड ड्रिंक, मिनरल वाटर यहां तक कि शराब भी आपको सिंगल यूज प्लास्टिक की बॉटल में ही मिल रही है.

ऐसी एक नहीं तो दूसरी चर्चा पर्यावारण पर हर नुक्कड़, हर चौराहे, हर दफ्तर और हर चाय के टपरे पर आम है. प्रतिबंध है लेकिन उनके लिए है जिन्हें पता है कि प्रतिबंध नहीं लगा है लेकिन जो कानून नहीं जानते और गलत फैसलों को चुनौती नहीं दे वो प्रतिबंध के शिकार हैं.

plastic bansingle used plastic पर बैन लेकिन हर जगह नहीं

सिर्फ प्रतीकात्मकता से काम नहीं चलेगा

प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ करनी होगी कि अपने एक बयान से ही उन्होंने पर्यावरण को चर्चा के केन्द्र में ला दिया. लोग पॉलीथीन पर बात कर रहे हैं और उसकी चुनौतियों को लेकर एक वातावरण बना है. लेकिन चुनौतियों का सामना करने को लेकर कोई सकारात्मक दिशा नहीं है. लोगों से सिंगल यूज प्लास्टिक का इस्तेमाल करने के लिए कह दिया गया है. ये सही भी है लेकिन इससे होने वाली हानियां और इसके विकल्पों पर सोचा ही नहीं गया. प्लास्टिक को समाज का दुश्मन घोषित करके रामलीला में उसके पुतले जलाकर आप क्या संदेश देना चाहते हैं. सिर्फ प्रतीकात्मकता से तो काम नहीं चलेगा ना.

ये ठीक वैसी प्रतीकात्मतकता है जैसे आपने लोगों से खुले में शौच न करने की अपील की. कुछ लोगों को शौचालय बनाने के नाम पर पैसे बांट दिए. उसके बाद भारत को खुले में शौच मुक्त घोषित कर दिया. सब कुछ वैसे ही चल रहा है लेकिन तालियां बज चुकी हैं. और अगर सचमुच इसपर रोक लग जाती तो कभी सोचा है कि क्या होता? सिर्फ शहरों में सीवर लाइनें होने के कारण किस तरह नदियां प्रदूषित हो चुकी हैं.

प्लास्टिक विलेन नहीं, हीरो है

खैर पॉलीथीन पर आते हैं. जैसा मैंने पहले लिखा था कि पॉलीथीन को विलेन बानाना ठीक नहीं है. प्लास्टिक विलेन नहीं है. वो हीरो है. वो मित्र है शत्रु नहीं है. आज प्लास्टिक न होता तो आप जमीन खोद खोद कर किस तरह तबाही ला चुके होते. पूरी मिट्टी कुल्हड़ों में तब्दील हो जाती. जो बच जाती उस मिट्टी या सिलिका को आग में फूंक कर आप कांच में तब्दील कर देते. पालीथीन की जगह अगर कागज़ इस्तेमाल होता तो जंगल बच पाते? हो सकता है कि इस पर कुछ लोग रटा रटाया सरकारी बहाना दोहरा दें- बहाना आबादी का. कहें कि आबादी बहुत है इसलिए बरबादी पक्की है लेकिन ये आबादी नहीं बाज़ार की बीमारी है. हर चीज़ की खपत बढ़ाई जा रही है कोल्डड्रिंक पहले लोग कभी-कभी पीते थे अब रोज पीने वालों की आबादी बढ़ गई है. क्योंकि ये बाजार के लिए मुफीद बैठता है. आप गिनने बैठें तो सौ चीज़ें ऐसी मिल जाएंगी जो बाजार ने पैदा कीं और लोगों की आदत बना दीं. तो बात पॉलीथीन के दोस्त होने की है. पॉलीथीन ने बाजारी लालच के बीच भी पर्यावरण को बचाने का बेहतरीन काम किया है. यही काम सिंगल यूज प्लास्टिक ने किया है.

समस्या सरकार के स्तर पर है

सरकार प्लास्टिक के इस्तेमाल की रफ्तार के साथ ही उसे ठिकाने लगाने की व्य़वस्था नहीं बना सकी. पुनर्चक्रण के लिए कुछ काम नहीं हुआ. हमने सिंगल यूज प्लास्टिक के फिर से इस्तेमाल के लिए कुछ नहीं किया. ये प्लास्टिक अगर रिसाइकिल हो रही है तो गरीब कूड़ा बीनने वालों और कचरे को छांटकर काम की चीज़ें निकालने वाले कारोबारियों के कारण हो रही है. ये ही अकेली व्यवस्था है जो भारत को प्रदूषण के बड़े नुकसान से बचाए हुए हैं. जबकि इसके उलट सरकारी हवा हवाई योजनाएं फुस्स फटाका साबित हुई हैं. भले ही वो प्लास्टिक से बिजली बनाने की बात हो या प्लास्टिक से सड़कें बनाने की, अखबारों में सुर्खियां बनकर ये योजनाएं गायब हो जाती हैं.

plastic banप्लास्टिक की रीसाइकिलिंग पर ध्यान देना होगा

पॉलीथीन का सही इस्तेमाल सीखने की जरूरत

इस देश को पॉलीथीन के इस्तेमाल से रोकने की जरूरत नहीं है बल्कि जरूरत पॉलीथीन के सही इस्तेमाल को सिखाने की जररूत है और इस्तेमाल करने की प्रक्रिया का सबसे अहम हिस्सा है रिसायकिलिंग जो कि सरकार के प्रयासों से ही मुमकिन है. इसके कई तरीके हो सकते हैं. एक तरीका ये हो सकता है कि प्लास्टिक के रीसेल को मुनाफे का कारोबा बनाया जाए. पेपर श्रेडर की तरह प्लास्टिक श्रेड करने या कंप्रेस करने जैसी कोई व्यवस्था घर में ही हो. लोग प्लास्टिक की कतरनें तैयार करें और वो सरकार खरीद ले. या बाजार में उसे खरीद लिया जाए. जब प्लास्टिक बेचने से ठीक-ठाक पैसा मिलेगा तो लोग उसे यहां वहां नहीं फेंकेंगे. कम से कम घर में इस्तेमल होने वाला प्लास्टिक तो रिसाइकिल ज्यादा होने ही लगेगा.

सड़क पर इस्तेमाल होने वाली सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंधित होना चाहिए. कोल्डड्रिंक और मिनरल वाटर प्लास्टिक की बॉटल में बिकने बंद हों. और इस प्लास्टि को भी जब बिकाऊ बना दिया जाएगा तो स़ड़क पर काम करने वाले लोग प्लास्टिक को रिसायइकिल करके पैसे बनाना पसंद करेंगे. रेल्वे स्टेशनों से उठने वाली प्लास्टिक की बोतलें सरकारी प्लांट मे श्रेड की जा सकती है.

तरीके हजारों हो सकते हैं लेकिन ये तभी संभव है जब कोई दिशा हो. वरना प्लास्टिक को हटाने के नाम पर हलचल भरपूर है लेकिन बदल कुछ नहीं रहा.

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लेखक

गिरिजेश वशिष्ठ गिरिजेश वशिष्ठ @girijeshv

लेखक दिल्ली आजतक से जुडे पत्रकार हैं

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