इन टेडी बियर में है जली हुई सिगरेट के ठूंठ वाला डीएनए, इनकी उदासी समझिए
ये बात भले ही दुर्भाग्यपूर्ण हो. लेकिन एक बड़ा सत्य यही है कि, जैसे जैसे सिगरेट की ठूंठ से बने गुड्डे नुमा सॉफ्ट टॉयज पर नजर जा रही है. कहीं भी प्रसन्नता की अनुभूति नहीं हो रही है. यदि कुछ महसूस हो रहा है तो वो एक ऐसी मायूसी है जो इन गुड्डों की तरह हमें भी अपनी आगोश में ले रही है.
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सॉफ्ट टॉयज जेंडर स्पेसिफिक नहीं होते. मतलब ये कि चाहे लड़की हो या लड़का. स्त्री हो या पुरुष सॉफ्ट टॉयज होते ही इतने क्यूट हैं कि ये किसी को भी अच्छे लग सकते हैं. लेकिन क्या सॉफ्ट टॉयज चरसी, गंजेड़ी, नशेड़ी हो सकते हैं? शर्तिया है कि सवाल अजीब लगेगा. लगे भी क्यों न जब इस बात की तस्दीख स्वयं वो सॉफ्ट टॉयज कर देते हैं जिन्हें उस चीज से बनाया गया है जो फेफड़े जलाती है. ना. हम कोई राय नहीं बना रहे लेकिन जब हम इंटरनेट पर वायरल उन सॉफ्ट टॉयज को देखते हैं जिनके निर्माण के लिए सिगरेट के ठूंठ का इस्तेमाल हुआ है तो इस बात का एहसास स्वतः हो जाता है कि सॉफ्ट टॉयज में नशे का असर आया है और क्या ही भरपूर आया है. हो सकता है कि सॉफ्ट टॉयज से जुडी ये बातें आपको अतिश्योक्ति लगें लेकिन जैसे ही आप तस्वीरों को देखेंगे और जैसी शक्लें क्यूट कहे जाने वाले सॉफ्ट टॉयज ने बनाई है उसपर गौर करेंगे तो कई बातें खुद साफ़ हो जाएंगी.
अपने में मायूसी लिए हैं ये सॉफ्ट टॉयज जिन्हें सिगरेट की ठूंठ से बनाया गया है
तस्वीर देखिये और याद करिये उन पलों को जब आपसे कोई ऐसा व्यक्ति टकराया हो जो नशे में धुत्त रहता हो. मतलब ऐसे लोग वो होते हैं जो बिना कहे अपनी भाव भंगिमाओं से इस बात की पुष्टि कर देते हैं कि उनके अंदर कोई तो आदत ऐसी है जिसकी इज्जत सभ्य समाज और समाज के अंदर वास करने वाले लोग नहीं देते. चाहे आंखें हों या चेहरा-मोहरा या फिर शक्ल पर फैली उदासीनता कह सकते हैं कि नशा अपनी दास्तां बिन पूछे खुद बयां कर देता है.
जिक्र सिगरेट ठूंठ से बने सॉफ्ट टॉयज और उनके नशेड़ी होने का हुआ है तो जब हम इनपर गौर करते हैं तो इनके चेहरे तक में वो मासूमियत, वो भोलापन वो क्यूटनेस नदारद है जो एक सॉफ्ट टॉय को सॉफ्ट टॉय की संज्ञा देती है. हां अलबत्ता इन्हें देखते हुए ऐसा लग रहा है कि ये दम फूंक के या फिर इंजेक्शन लगवा के अपनी सुध बुध खो चुके हैं और निढाल पड़े हैं.
बात इन सॉफ्ट टॉयज के नशेड़ी होने या फिर नशे की गिरफ्त में होने की हुई है तो क्यों न इनके निर्माण की प्रक्रिया से भी अवगत हो लिया जाए. दरअसल इन सॉफ्ट टॉयज को बनाने का श्रेय जाता है दिल्ली के एक व्यापारी नमन गुप्ता को. नमन ने दिल्ली के आउटस्कर्ट्स में अपनी तरह की एक अनोखी फैक्ट्री की शुरुआत की है. और इसी फैक्ट्री में निर्माण होता है इन सॉफ्ट टॉयज का.
ये सॉफ्ट टॉयज कैसे बनते हैं ये भी अपने में एक रोचक प्रक्रिया है. पान की गुमटी पर हम जो सिगरेट सुलगते हैं जब वो ख़त्म होती है तो उसका बड फ़ेंक दिया जाता है. नमन की कंपनी इन्हीं ठूंठ को जगह जगह से इकट्ठा करती है फिर उसके अंदर मौजूद फाइबर निकाला जाता है और बाद में उससे सजाने सामान से लेकर सॉफ्ट टॉयज तक बनाए जाते हैं,
सुनने बताने में भले ही ये एक आसान सी चीज लगे लेकिन ये प्रक्रिया इसलिए भी जटिल है क्योंकि हजारों किलो सिगरेट के ठूंठ जमा करना आसान तो किसी सूरत में नहीं है लेकिन धन्यवाद भारत की उस तीस प्रतिशत आबादी का जो तंबाकू प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करती है और जिनके कारण नमन का धंधा फल फूल रहा है.
बहरहाल अभी विषय नमन का धंधा या उनकी कमाई नहीं है. अभी जो मसला है वो है सिगरेट ठूंठ के जरिये बने सॉफ्ट टॉयज का अलग लगना. तो जैसा कि हम पहले ही इस बात को जाहिर कर चुके हैं कि सिगरेट की ठूंठ के अंदर निकले फाइबर्स से बने ये सॉफ्ट टॉयज अलग हैं तो ये बातें यूं ही नहीं हैं. इनकी शक्ल चीख चीखकर ये बता रही है कि ये जिस चीज से बने है उसने देश के तमाम लोगों जिसमें पुरुष, महिलाएं, बच्चे सब हैं कई ज़िंदगियां लील रखी हैं.
अब चूंकि सिगरेट से आजतक शायद ही किसी का भला हुआ है. तो कहीं न कहीं ये दंश इन सॉफ्ट टॉयज को भी भोगना पड़ा है. और शायद यही कारण है कि अपनी जिस क्यूटनेस या ये कहें कि मासूमियत के लिए सॉफ्ट टॉयज दुनिया के करोड़ों लोगों के पसंदीदा है वो क्यूटनेस और मासूमियत इनसे गायब है. कुछ भी हो ये सॉफ्ट टॉयज न होकर बदसूरत गुड्डे हैं जो कहीं न कहीं अपनी नियति पर अफ़सोस कर रहे हैं.
ये बात भले ही दुर्भाग्यपूर्ण हो लेकिन एक बड़ा सत्य यही है कि जैसे जैसे इन गुड्डे नुमा सॉफ्ट टॉयज पर नजर जा रही है कहीं भी प्रसन्नता की अनुभूति नहीं हो रही है. यदि कुछ महसूस हो रहा है तो वो एक ऐसी मायूसी है जो इन गुड्डों की तरह हमें भी अपनी आगोश में ले रही है.
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