देखिए सुकन्या समृद्धि योजना कैसे गैर-इस्लामिक हो गई...
सोचने वाली बात है कि जो योजना बनाई ही इस वजह से हो कि बेटियों का भविष्य सुरक्षित हो सके, उसे क्या सिर्फ इस एक वजह से खारिज कर दिया जाएगा कि उसमें ब्याज शामिल है इसलिए वो अवैध है.
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महिलाओं का अंजान आदमी से चूड़ी पहनना या मेहंदी लगवाना शरियत कानून के खिलाफ है, वो मस्जिद नहीं जा सकतीं क्योंकि इसके लिए भी शरिया का कनून इजाजत नहीं देता. महिलाओं का फुटबॉल देखना, बारात में जाना, डांस करना भी जायज नहीं है. महिलाओं के चुस्त कपड़े और तंग बुर्के भी इस्लाम के खिलाफ हैं. आईब्रो, वैक्सिंग और बाल कटवाना भी नाजायज़. ये तो बस चुनिंदा बातें हैं जिससे साबित होता है कि शरिया का कानून महिलाओं के पक्ष में कम खिलाफ ज्यादा है.
हम इन बातों पर शरिया कानून की आलोचनाएं कर सकते हैं. उनसे बहस भी कर सकते हैं क्योंकि ये सब चीजें जीवनशैली से जुड़ी हैं और दुनिया भर में बहुत नॉर्मल हैं, लेकिन शरिया के मुताबिक ये हराम है. बात सिर्फ महिला विरोध की नहीं है यहां तो सोच ही अलग है. मुस्लिम भारत मां की जय नहीं बोलते, योग को नहीं अपनाते, सीसीटीवी लगवाने को भी नाजायज़ मानते हैं, यहां तक कि संपत्ति और जीवन बीमा करवाना भी शरिया कानून के खिलाफ है क्योंकि बीमा से मिलने वाला लाभ सूद की श्रेणी में आता है.
ताजा फतवा दिया गया है मोदी सरकार की एक योजना पर जो शरिया कानून के हिसाब से 'नाजायज' है. करीब 200 इस्लामिक मुफ्तियों ने एक प्रस्ताव पारित कर कहा है कि सरकार की सुकन्या समृद्धि योजना (एसएसवाई) शरिया के मुताबिक ‘अवैध’ है क्योंकि इस योजना के हिस्से के रूप में ब्याज अर्जित किया जाता है.
बेटियों के सुरक्षित भविष्य की योजना शरिया कानून में नाजायज़ कैसे?
जान लीजिए कि सुकन्या समृद्धि योजना है क्या
बेटी के अभिभावकों के लिए केंद्र सरकार की 'सुकन्या समृद्धि योजना' बहुत फायदेमंद है. लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए शुरू की गई यह योजना निश्चित तौर पर बच्ची के भविष्य के लिए लाभकारी है, साथ ही माता-पिता के कथित बोझ और चिंता को भी कम करती है. शादी के समय पर इसमें से रकम निकालना आसान है. अगर बेटी 10 साल से कम की है तो पोस्ट ऑफिस और कुछ अन्य ऑथराइज्ड बैंकों जैसे एसबीआई, पीएनबी, आईसीआईसीआई बैंक में जाकर इससे जुड़ा खाता खुलवाया जा सकता है.
न्यूनतम जमा राशि 1000 रुपए से घटाकर 250 रुपए कर दी गई है
'शरिया कानून' में इतना दोहरापन क्यों?
लेकिन अगर शरिया कानून ये कहता है कि ये योजना ठीक नहीं तो बस ठीक नहीं. किसी भी मुसलमान को अपनी बेटी के लिए इस योजना में पैसा नहीं डालना चाहिए, फिर चाहे वो पैसे भविष्य में बेटी की शिक्षा या शादी ब्याह के काम ही क्यों न आने हों. लेकिन सोचने वाली बात है कि जो योजना बनाई ही इस वजह से हो कि बेटियों का भविष्य सुरक्षित हो सके उसे क्या सिर्फ इस एक वजह से खारिज कर दिया जाएगा कि उसमें ब्याज शामिल है इसलिए वो अवैध है. नहीं, इसके पीछे एक नहीं 200 इस्लामिक मुफ्तियों का दिमाग है जो सिर्फ एक ही दिशा में काम कर रहा है. ये फतवा देने वाली सिर्फ उसी चीज को सही ठहराते हैं जो इनकी समझ के हिसाब से फायदेमंद है और जिससे महिलाओं पर पुरुषों का मालिकाना हक बना रहे.
ये वही शरिया कानून है जो तरह तरह के मोबाइल ऐप के जरिये आर्थिक लेनदेन को जायज ठहराता है. इनके मुताबिक कैशबैक या रिवार्ड प्वाइंट या ऐप से कैब बुकिंग कराना सब शरिया कानून के हिसाब से वैध है. एक प्रस्ताव में मुफ्तियों ने ये घोषणा भी की कि वैध वस्तुओं के विज्ञापन के लिए गुगल एडसेंस का इस्तेमाल किया जाना भी उचित है. लेकिन कुछ समय पहले ही एक फतवे में किसी बैंक में काम करने वाले व्यक्ति से शादी करने को नाजायज बताया गया था. इसके साथ-साथ फेसबुक और वाट्सएएप्प पर अपनी या परिवार की तस्वीरें शेयर करने को भी इस्लाम के खिलाफ बताया था. यानी आपका फायदा जिसमें हो वो चीज आपके शरिया कानून के हिसाब से वैध हो जाती है.
जो योजना बेटियों के लिए है वो 21 साल बाद फल देगी. यानी 21 सालों तक आपको पैसे इनवेस्ट करने हैं और सब्र रखना है. लेकिन मुस्लिम समाज में फोकस बेटियों की पढ़ाई लिखाई पर नहीं बल्कि जल्द से जल्द उनकी शादी पर होता है. उस हिसाब से ये योजना इनके काम की नहीं. अगर इनके हिसाब से हर मुस्लिम चलने लगे तो बैंक में खाता ही न खुलवाए. सरकार तो हर इंसान की भलाई के लिए कोई भी योजना बनाती है, लेकिन शरिया कानून इंसान की भलाई को तवज्जो क्यों नहीं दी जाती. ये बात समझ से परे है.
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