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Updated: 30 नवम्बर, 2016 06:27 PM
सुयश मिश्र
सुयश मिश्र
  @suyash.mishra.1690
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लोक में यश प्राप्त करने की इच्छा सहज और स्वाभाविक है. इसी इच्छा से प्रेरित होकर लोग अखबारों में छपने, टेलीविजन के पर्दे पर दिखने तथा गिनीज बुक में नाम लिखाने के लिए तरह-तरह के प्रयत्न करते हैं. ऐसा ही एक प्रयत्न सूरत के एक नवविवाहित जोडे़ ने अपने विवाह को लेकर किया. बताया गया कि उनका विवाह मात्र पांच सौ रुपए की छोटी सी रकम में संपन्न हो गया. यह समाचार टेलीविजन पर एक न्यूज चैनल ने प्रसारित किया और प्रधानमंत्री श्री नरेंन्द्र मोदी ने इस जोडे़ को बधाई भेजी.

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 500 रुपये में शादी, मेहमानों को पिलाई गई चाय

लेकिन पांच सौ रुपए में विवाह की बात कुछ हजम नहीं होती क्योंकि यह विवाह किसी मंदिर के एकान्त में सादगी से सम्पन्न नहीं हुआ बल्कि अतिथियों के चायपान, बैठक व्यवस्था, फोटोग्राफी, वैवाहिक परिधान-आभूषण आदि अनेक व्यय-साध्य व्यवस्थाओं के साथ सम्पन्न दर्शाया गया है. इससे कथित समाचार की सत्यता और विश्वसनीयता पर अनेक प्रश्नचिन्ह खडे़ होते हैं. यदि यह मान लिया जाए कि उपर्युक्त समस्त व्यवस्थाएं उपहार स्वरुप वरवधू को उपलब्ध करायी गईं तब भी इन पर व्यय हुई राशि पांच सौ से अधिक ही लगती है और वह विवाह के व्यय से अलग नहीं मानी जा सकती है. ऐसी स्थिति में इस समाचार की विश्वसनीयता प्रश्नांकित होती है. अपने प्रचार के लिए ऐसे  समाचारों का प्रसारण करना-कराना जनता को मूर्ख बनाने जैसा है.

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विवाह-समारोह समाजिक जीवन में प्रसन्नता का अवसर होता है. इस अवसर पर सम्बंधित परिवार अपनी प्रसन्नता व्यक्त करने के लिए अपने सामाजिक स्तर के अनुरुप व्यय करते हैं. जन साधारण इस अवसर पर अपनी गाढ़ी कमाई की बचत व्यय करके यदि यह उत्सव मनाता है तो इसमें कुछ भी अनुचित नहीं है किन्तु ऋण लेकर अथवा अपनी काली-कमाई के बल पर विवाह-समारोह को अपव्यय पूर्वक प्रदर्शनीय बनाना निश्चित रुप से गलत है. इसका किसी भी प्रकार समर्थन नहीं किया जा सकता. इस पर शासन और समाज-दोनों का नियंत्रण आवश्यक है.

भारतीय समाज में विवाह अनेक ऐसी रीतियों के साथ सम्पन्न होता है जिसमें समाज के न्यून आय वर्ग वाले लोगों जैसे नाई, धोबी, कुम्हार, माली आदि की भी महत्वपूर्ण भूमिका रहती है. इनकी आजीविका के साधनों में विवाह प्रमुख है. इन्हें वर-वधू दोनों पक्ष नकद राशि, वस्त्र आदि उपहार देकर संतुष्ट करते हैं. यह कार्य पांच सौ रुपए में पूरे नहीं हो सकते. कदाचित मोदी सरकार भी इस तथ्य को समझती है और इसीलिए उसने ढाई लाख नकद राशि देने का प्रावधान किया है. पांच सौ रुपए की शादी में इन सांस्कृतिक रीति-रिवाजों की कोई गुंजाइश नहीं रह जाती. इसलिए ऐसे विवाहों का समर्थन-प्रोत्साहन सांस्कृतिक-रीतियों और सामाजिक-परम्पराओं को नष्ट करना है. अतः इसका समर्थन नहीं किया जा सकता.

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हिन्दू समाज में आठ प्रकार के विवाह बताए गए हैं. इनमें विवाह का एक प्रकार गंधर्व विवाह भी है जिसमें वर-वधू पारस्परिक सहमति के आधार पर एक दूसरे को पुष्पमाल पहनाकर विवाह कर सकते हैं. इसमें सामाजिक स्वीकृति की अपेक्षा नहीं होती. आधुनिक समाज के प्रेम विवाह और ‘लिव इन’ जैसे रिश्ते इसी गंधर्व विवाह का नया संस्करण हैं. इनमें पाँच सौ रुपए का भी खर्च नहीं है. सूरत जैसे कथित मितव्ययी जोडे़ यदि चाहें तो इस विवाह विधि से पांच सौ रुपए भी बचा सकते हैं. शायद तब वे गिनीज बुक, लिम्का बुक में भी नाम लिखा सकें.

लेखक

सुयश मिश्र सुयश मिश्र @suyash.mishra.1690

लेखक पत्रकारिता के छात्र हैं

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