इस्मत चुगताई से समझना चाहिए Feminism के मायने
इस्मत चुगताई पर सैकड़ों किस्से हैं मगर जन्मदिन के दिन उनपर बात इसलिए भी जरूरी हो जाती है क्योंकि उन्होंने न सिर्फ मुस्लिम महिलाओं को बल दिया बल्कि ये भी बताया कि असल में महिला सशक्तिकरण होता क्या है.
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मंटो के तमाम किस्से हैं इस्मत आपा के लिए. अब ये या तो खुदा जानता होगा या फिर साहब का दिल कि वो आप को चाहते थे या नहीं. वैसे लाजमी नहीं है कि उन्हें मुहब्बत रही होगी. मगर एक ऐसा रिश्ता तो जरूर रहा होगा जिसमें एक रूह ने दूसरी रूह को जाना होगा. क्योंकि इस्मत आपा को जैसे मंटो ने समझा और जाना शायद ही किसी और ने जाना होगा. उस आग जैसी लड़की से भला मुहब्बत कर कौन ख़ुद को जलाए. वो तो साहब ख़ुद दरिया थे आग का तो शायद कर ली होगी दोस्ती इस ज़लज़ले से. ख़ैर आज बात मंटो साहब की नहीं इस्मत आपा की होगी. आज जन्मदिन है आपा का. जो होती तो सौ बरस में चार और साल जुड़ जाते. दस भाई-बहनों में आपा नौवें नम्बर की सबकी लाड़ली थी. बहनें बड़ी थी तो ब्याह दी गयी. आपा भाइयों के साथ बड़ी हुईं. तो वो लड़कियों वाली नज़ाकत के साथ एक बदमिज़ाजी भी उनकी शख़्सियत में घुलती गयी. उम्र बढ़ने के साथ ही आपा को रिवाजों और रिवायतों से चिढ़ होने लगीं. उन्हें समाज का दोहरा रवैया कभी नहीं सुहाया. छोटी-बड़ी बातों को ले कर अपनी अम्मी तक से उलझ जाती थीं. चूंकि बड़े भाई मिर्ज़ा अज़ीम बेग चुगताई बड़े लेखक थे तो बहन की भी दोस्ती किताबों से करवा डाली.
इस्मत चुंगताई को इसलिए भी याद किया जाना चाहिए की उन्होंने नारीवाद को एक नई दिशा दी
आग लगे किताबों को आपा के तो पंख निकल आए. सिर्फ़ उर्दू अदब की नहीं शेक्सपियर से ले कर चेखव तक को पढ़ डाला. अब ये ज़ाहिर सी बात है कि जब आप अच्छा पढ़ते हैं तो ख़ूबसूरत इंसान बन जाते हैं. ज़रिए किताबों के आप दुनिया के उन आयामों को छू आते हैं, जो हक़ीक़त में शायद मुमकिन न हो. आपा ने भी किताबों में वो दुनिया देख ली. आपा अब लिखने को तैयार थीं. और फिर जो लिखा वो जमाने को बर्दाश्त न हुआ. आपा पर मुकदमा चला दिया गया. उन पर इल्जाम धर दिए गए कि वो समाज को गलत दिशा में ले जा रही हैं.
अच्छा, ये समाज को गलत दिशा में ले जाना समाज के ठेकेदारों को इसलिए लगा कि आपा ने ‘लिहाफ़’ नाम की एक कहानी लिख डाली. कहानी एक ऐसी औरत की थी जिसे कभी शौहर से प्रेम मिला ही नहीं. एक खालीपन को वो अपने अंदर महसूस करती रहीं. उस खालीपन के दौरान वो औरत एक दूसरी औरत के नजदीक आती है और उनका सम्बंध बन जाता है. बताइए ये तो आज इक्कीसवीं सदी में गंवारा नहीं तो तब कैसे नियम-कायदे वाले लोग इस बात को पचा पाते. आपा पर दो साल केस चला मगर बाद में कोर्ट ने खारिज कर दिया.
अब आपा ने फिल्म निर्देशक शाहिद लतीफ से निकाह कर घर बसाने का फैसला लिया. फिर उन्हीं दिनों ‘गरम हवा’ नाम से एक कहानी लिखीं. जिस पर बाद में शौहर ने फिल्म भी बनाई और आपा को फिल्म-फेयर अवॉर्ड भी मिला. आपा हकीकत में फेमिनिस्ट थीं. वो ताउम्र औरतों की हक के लिए लड़ीं. लड़कियां पढ़ाईं जाए ताकि वो अपने हक को जाने. कोई उन पर शासन न करें. वो गुलाम बन जिंदगी न गुज़ार दे इसलिए वो लड़कियों को पढ़ा-लिखा कर आगे लाने की वकालत करती रहीं. आपा ने जिंदगी को अपने शर्तों पर जीया और मौत के बाद भी उनके शरीर के साथ क्या होगा ये तय कर इस दुनिया से रुखसत हुईं. कायदे से उन्हें दफनाना था मगर उन्होंने खुद को जलाने का फैसला लिया और फिर हुआ भी ऐसा ही.
नहीं पता कि जिंदगी में कभी भी उन जैसा लिख पाउंगी या नहीं मगर कई मौकों पर कितनों ने मेरी कहानियों में आपा की झलक मिलतीं है ऐसा कहा है. आपा होती तो उनसे मिल कर बताती कि लड़कियों के लिए दुनिया अब भी उतनी ही मुश्किल है. उन्हें हर कदम पर जज अब भी किया जाता है. कहानियों में लोग लेखिका की कहानी ढूंढ अब भी कठघरे में उतारते ही हैं. ये लम्बी लड़ाई है आपा. अभी बहुत लड़ना बाक़ी है. आप जन्नत से अपनी दुआ बनाएं रखना उन लड़कियों पर जो समाज के बने-बनाए कायदे से बाहर निकल कुछ अलग लिखना चाह रही हैं.
दिन मुबारक हो इस्मत आपा!
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