जंग के मैदान में महिलाओं को भेजना सही या गलत?
तर्क दिया जा रहा है कि महिलाएं शारीरिक रूप से पुरुषों की तरह मजबूत नहीं होतीं. जबकि जंग के समय कई-कई दिनों तक मुश्किल हालात का सामना करना पड़ता है. इसलिए सवाल है कि क्या महिलाएं इसके लिए तैयार हैं...
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2015 में गणतंत्र दिवस के मौके पर जब बराक ओबामा भारत दौरे पर थे तो भारतीय वायुसेना की विंग कमांडर पूजा ठाकुर ने राष्ट्रपति भवन में उनके स्वागत समारोह के दौरान गार्ड ऑफ ऑर्नर की अगुवाई की. यह इतिहास रचने जैसा था. क्योंकि भारत में किसी राजकीय मेहमान को दिए गए गार्ड ऑफ ऑनर का नेतृत्व करने वाली वह पहली महिला अधिकारी बनीं. भारत में महिलाओं को बराबरी का हक दिए जाने की बहस पुरानी है. लेकिन उसी साल हंगामा ब्रिटेन में भी मचा है. वहां के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन की सरकार इस बारे में बहस कर रही थी कि महिला सैनिकों को भी जंग के मैदान में उतरने की इजाजत दी जाए.
कैमरन के बयान पर मचा था बवाल..
कैमरन ने ब्रिटिश अखबार 'द टेलीग्राफ' को दिए इंटरव्यू में कहा था, 'हमने पहले ही महिलाओं के लिए पनडुब्बी और सेना में उनके ऊंचे पद तक पहुंचने का रास्ता खोलकर उनके लिए राह आसान कर दी है. हम इसकी भी तैयारी कर रहे हैं कि उन्हें युद्ध के मैदान में जाने की इजाजत मिल सके.' ब्रिटेन में वैसे भी इस पूरे मसले पर लंबे समय से बहस चल रही है. वहां के रक्षा मंत्रालय ने महिलाओं को जंग के मैदान में उतारने को लेकर छह महीने का गहन अध्ययन किया और अब वह आगे बढ़ने के लिए तैयार है. ऐसे में माना जा रहा है कि कैमरन के बयान से इस प्रक्रिया को पूरा करने में और तेजी आएगी.
हालांकि, इस पूरे कदम का विरोध जल्द ही शुरू हो गया था. ब्रिटिश सेना के ज्यादातर बड़े अधिकारी मान रहे थे कि कैमरन इस दिशा में आगे बढ़ कर भले ही खुद को राजनीतिक रूप से सही साबित कर लें. लेकिन महिलाओं को जंग में उतारने के फैसले से ब्रिटिश आर्मी कमजोर होगी. तर्क ये दिया जा रहा था कि महिलाएं शारीरिक रूप से पुरुषों की तरह मजबूत नहीं होतीं. जबकि जंग के समय कई-कई दिनों तक मुश्किल हालात का सामना करना पड़ता है. इसलिए सवाल उठाए जा रहे थे कि क्या महिलाएं इसके लिए तैयार हैं. ब्रिटिश सेना में इस समय 16,000 महिलाएं शामिल हैं.
वैसे, इस बहस के बीच जरूरी है कि ब्रिटेन दुनिया के तमाम दूसरे देशों सहित भारत की ओर भी देखें कि वहां सेना में महिलाओं की भूमिका क्या है. खासकर इजरायल की भी जहां हर महिला के लिए जरूरी है कि वह अपनी जिंदगी के कुछ साल सेना को दे. वो देश जहां जंग के मैदान में जा सकती हैं महिलाएं:
इजरायल- इजरायली सेना में महिलाएं बड़ी भूमिका निभाती रही हैं. सेना के 88 से लेकर 92 फीसदी पद महिला उम्मीदवारों के लिए खुले हैं. इजरायल वैसे भी ऐसा देश है जो लंबे समय से युद्ध झेल रहा है. इसलिए भी शुरू से वहां सेना में महिलाओं की भूमिका महत्वपूर्ण रही है.
कनाडा और न्यूजीलैंड- इन दोनों देशों में सेना में महिलाओं की भूमिका को लेकर कोई रोक-टोक नहीं है. लेकिन कनाडा में जरूर महिलाओं के पनडुब्बी से जुड़े अभियानों में हिस्सा लेने पर रोक है. हालांकि, यहां भी गौर करने वाली बात है कि ये दोनों देश शायद ही कभी युद्ध और विश्व के दूसरे राजनीतिक मसलों में खुद को उलझाते हों.
श्रीलंका- यहां भी महिलाओं की भूमिका सेना में अहम है. लेकिन जंग के माहौल में दुश्मनों के सामने मोर्चा संभालने को लेकर कुछ सीमाएं भी हैं. ऐसे ही तुर्की, फ्रांस, अमेरिका, ब्राजील, जर्मनी, नॉर्वे सहित कई और देशों में भी यह व्यवस्था है जहां महिलाएं दुश्मन के साथ मुठभेड़ के लिए मैदान में उतर सकती हैं.
भारतीय सेना में महिलाएं..
बतौर अधिकारी भारतीय सेना में महिलाओं की नियुक्ति की इजाजत 1992 में मिली. इसी साल अक्टूबर में सरकार ने घोषणा कर दी कि भारतीय वायु सेना के अभियानों में अब महिलाएं न केवल हिस्सा ले सकेंगी बल्कि फाइटर जेट प्लेन भी उड़ा सकेंगी. सरकार आर्मी और नेवी में भी महिलाओं के लिए और रास्ते खोलने पर विचार कर रही है. इसी साल मई में सरकार ने 11,000 से ज्यादा महिलाओं की नियुक्ति केंद्रीय सुरक्षा बल में करने की इजाजत भी दे दी. ये महिलाएं बॉर्डर सुरक्षा और विधि-व्यवस्था जैसे कार्यों को भी संभालेंगी.
महिलाएं कितनी सक्षम:
कहानी फिल्मी है. लेकिन उल्लेख जरूरी है. याद कीजिए..1997 की हॉलीवुड फिल्म G.I. Jane को. यह फिल्म यू.एस नेवी स्पेशल वारफेयर ग्रुप में चुनी गई पहली महिला की कहानी कहती है. उस महिला का किरदार डेमी मूर ने निभाया है. पूरी फिल्म एक महिला की ट्रेनिंग और उसके सामने आने वाली चुनौतियों को दिखाती है. फिर एक सीन ऐसा भी जहां डेमी अपने लंबे बालों को खुद से शेव कर देती हैं...और अपनी ट्रेनिंग पूरी करती हैं.
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