ऐसा क्या है जिसने बनाया, राहुल द्रविड़ को एक बेहतरीन इंसान
सम्पूर्ण क्रिकेट जगत में राहुल द्रविड़ का शुमार उन खिलाड़ियों में है, जो बहुत सादगी से अपना जीवन जीते हैं और किसी भी प्रकार के स्पेशल स्टेटस से दूर रहते हैं.राहुल के आलोचकों का भी मानना है कि यही राहुल की सबसे बड़ी खूबी है.
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54 बार टेस्ट क्रिकेट में क्लीन बोल्ड होने वाले क्रिकेटर राहुल द्रविड़ क्रीज़ पर भले ही धीमें खेलते रहें हों लेकिन उनका पूरा कैरियर बहुत ही सधा हुआ और उम्मीदों भरा रहा. राहुल क्रीज़ पर हों और पूरे दिन का खेल बचा हो, एक दर्शक के तौर पर आपको उनसे ऑटोमेटिक उम्मीद लग ही जाती रही होगी. उनका मैदान पर दीवार की तरह खड़े रहना, उनके नाम कई रिकॉर्ड बनाता चला गया. अर्जुन, विसड़ेन, क्रिकेटर ऑफ द ईयर, टेस्ट प्लेयर ऑफ द ईयर, पद्म श्री और पद्म विभूषण से सम्मानित राहुल द्रविड़ किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं. टेस्ट क्रिकेट में सबसे ज्यादा 31,258 गेंदें खेलने का रिकॉर्ड राहुल के ही नाम है. इनके बाद सचिन और जैक कैलिस आदि का नाम आता है. अपनी फेवरेट जगह स्लिप में फील्डिंग करते हुए उन्होने 164 मैचों की 301 पारियों में 210 कैच भी लपके थे.राहुल द्रविड़ का शुमार उन खिलाड़ियों में है जो शालीनता से जीवन जी रहे हैं
यहीं आंकड़ा उन्हें मिस्टर डिपेंडेबल भी बनाता है. भारतीय क्रिकेट टीम के इतिहास में भरोसेमंद खिलाड़ी के तौर पर पहचाने जाने वाले राहुल द्रविड़, सन्यास के बाद अपनी सादगी और कूल स्वभाव को लेकर जीवन यापन कर रहे हैं. फैन, ट्यूबलाइट, एलईडी, इनवर्टर, फेसवाश, टेलीविज़न आदि का विज्ञापन करने के बजाय उन्होंने सामाजिक चेतना जगाने वाले विज्ञापनों पर अपना ध्यान दिया है. थियेटर में फिल्म देख रहें दर्शक को एंटी स्मोकिंग डिस्क्लेमर राहुल कई वर्षों से देते आयें है. उनका यह विज्ञापन उनके निजी कैरियर से पूरी तरह मेल खाता है.
विज्ञापनों में आम तौर पर झूठ ही बेचा जाता है. तभी अजय देवगन विमल पान मसाला खाते दिखते हैं तो सचिन टायर को बेचते हुए. दोनों ही प्रोडक्ट का उनके निजी जीवन से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं है. भले ही ग्राहक के तौर वो उस प्रोडक्ट का प्रयोग करते हों लेकिन उसको बेचने के लिए वो कोई भरोसेमंद व्यक्ति नहीं मालूम देते. विज्ञापन कंपनियां भी मौजूदा दौर में खिलाड़ी के खेल से नहीं उनकी उपभोक्ताओं में पहुंच के आधार पर उनका चयन करती हैं. द्रविड़ का पिच पर टिके रह कर मैच बचाना बताता है कि आप तंबाकू का प्रयोग न करते हुए कैसे अपने जीवन को लंबा खींच सकते हैं.
द्रविड़ ने जब शुरुआती दिनों में क्रिकेट की दुनिया में कदम रखा तो घोर व्यवसायिक विज्ञापनों से वो भी अपने आप को बचा नहीं पाये थे. हालांकि इसमें भी उनकी स्पेशियालिटी को ही केंद्र में रख कर विज्ञापन तैयार किया गया. उन दिनों प्रतिष्ठित क्रिकेटर न होने के चलते पेप्सी के विज्ञापन में मॉडल्स का तड़का लगाकर पेश कर दिया गया था. आप भी देखिये पेप्सी का वो पुराना विज्ञापन
ख्याति पाने के बाद आम तौर पर वीवीआईपी कल्चर में जीते हुए खिलाड़ी, अभिनेता, राजनेता देखे जा सकते हैं. राहुल द्रविड़ की बीते दिनों सोशल मीडिया में वायरल हुई तस्वीर उनका व्यक्तित्व और भी निखार रही है. एक साइंस एक्सिबिशन में अपने बच्चों के साथ राहुल द्रविड़ बिना किसी दिखावे, आम माता-पिता की तरह लाइन में खड़े दिख रहे हैं. चाहते तो उन्हें वहां स्पेशल सुविधा आसानी से मिल सकती थी.
राहुल द्रविड़ अपने जीवन की प्राथमिकताओं को गंभीरता से लेना जानते हैं
यह पहला मौका नहीं है जब राहुल द्रविड़ ने अपनी सिंप्लीसिटी और सामान्य व्यवहार को जाहिर किया है. इसके पूर्व इसी वर्ष जनवरी में हुए बैंगलोर विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में उनको दी जाने वाली मानद उपाधि को उन्होंने लेने से मना कर दिया था. देश में कई महान व्यक्तित्व आज ऐसे हैं जिन्हें वास्तव में डिग्री दिखाने की जरूरत पड़ती रहती है. ऐसे में उनका मानद ठुकराना किसी अचंभे से कम नहीं. राहुल ने इस मानद को ठुकराते हुए कहा था कि मैं खेल के क्षेत्र में अनुसंधान करके ही डॉक्ट्रेट की उपाधि लेना चाहता हूँ. इसमें पूर्व गुलबर्गा विश्वविद्यालय द्वारा भी मानद के लिए चुने जाने पर उनका जवाब यही था.
क्रिकेट के नाम पर करोड़ों रुपये इधर का उधर रातों रात हो रहा है. पुरस्कृत होने की होड़ मची पड़ी है. विज्ञापनों के सहारें भविष्य सुधारे जा रहे हैं. ऐसे में क्रिकेट में मैदान के उसूलों और नियमों के साथ निजी जिंदगी में जीना अपने आप में सराहनीय कदम है. यह उनका अपना ही अंदाज है कि उन्होने दिल्ली डेयरडेविल्स का कोच पद त्याग ‘इंडिया ए’ और ‘अंडर 19’ टीम का कोच बनाना ज्यादा जरूरी समझा.
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