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Updated: 02 दिसम्बर, 2016 10:53 AM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
  @parulchandraa
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ऐसे वक्त जब एक-एक करके देश के प्रमुख धार्मिक स्थलों में महिलाओं के प्रवेश को अनुमति मिल रही है, इस खबर से फिर मंदिरों में महिलाओं के प्रवेश पर बहस गर्मा गई है, खबर जरा चौंकाने वाली है. एक तरफ महिलाओं को समानता का अधिकार मिल रहा है, और दूसरी तरफ केरल की महिलाएं मंदिर में प्रवेश ही नहीं करना चाहतीं.

मामला सबरीमाला मंदिर से जुड़ा हुआ है. अब इसी मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आना बाकी है. यहां कुछ धर्मभीरू महिलाओं का कहना है कि वो मंदिर में प्रवेश के लिए 50 वर्ष की उम्र तक इंतजार कर सकती हैं. सोशल मीडिया पर ये महिलाएं #ReadyToWait नाम के हैशटैग का जमकर इस्तेमाल कर रही हैं. बाकायदा बैनर और पोस्टर के साथ तस्वीरें पोस्ट की जा रही हैं. जिसपर ये बड़ी ही मजबूती से कह रही हैं कि सबरीमाला मंदिर में अगर महिलाओं को प्रवेश की अनुमति नहीं है तो वो सही है.

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 50 साल की उम्र तक कर सकती हैं इंतजार

महिलाओं को लेकर विभिन्न धर्मों की तमाम दकियानूसी मान्यताओं का इन दिनों सभी धर्मों में विरोध हो रहा है. विश्व प्रसिद्ध शनि शिंगणापुर मंदिर, महालक्ष्मी मंदिर और हाजी अली दरगाह में प्रवेश के लिए महिलाओं को लम्बी लड़ाई लड़नी पड़ी है. जिसके लिए उन्होंने कट्टर धार्मिक ताकतों का सामना किया. कोर्ट कचहरी, साइबर ट्रॉलिंग से लेकर मार-पीट तक सहने वाली ये महिलाएं हारी नहीं. लेकिन यहां तो नजारा ही बदल गया है क्योंकि महिलाओं के हक के सामने अब महिलाएं ही सड़क पर उतर आई हैं.

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ऐसा नहीं है कि सबरीमाला मंदिर में महिलाओं को प्रवेश नहीं दिया जाता, केवल 10 से 50 साल की महिलाएं मंदिर में नहीं जा सकतीं, बाकी सबको अनुमति है, यानि महिलाओं का एक बड़ा वर्ग जो अशुद्ध है, जिन्हें पीरियड होते हैं उनके लिए मंदिर में कोई जगह नहीं है.

क्या बताना चाहता है #ReadyToWait-

फिर भी इन महिलाओं का कहना है कि ये लड़ाई समानता की नहीं बल्कि हमारे रिवाजों से खिलवाड़ की है. हम पढ़ी-लिखी हैं, बहुत मजबूत हैं, अपनी जड़ों से जुड़ी हुई हैं, कोई भी बाहरी व्यक्ति हमें प्रभावित नहीं कर सकता. हम अपनी धार्मिक परंपराओं का आदर करती हैं और भगवान अय्यप्पा के दर्शन करने के लिए इंतजार कर सकती हैं.

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 इन महिलाओं का कहना है कि ये लड़ाई समानता की नहीं बल्कि हमारे रिवाजों से खिलवाड़ की है

क्या बताना चाहता है #RightToPray-

मान्यता है, चूंकि महिलाओं को पीरियड होते हैं इसलिए वो अशुद्ध होती हैं, और इसीलिए उनसे मंदिरों में पूजा करने का अधिकार छीन लिया गया. बड़े-बड़े मंदिरों में बैठे धर्मगुरुओं ने ये लक्ष्मण रेखा महिलाओं के सामने खींच दी, जिन्हें परंपरा और रिवाजों का नाम देकर सदियों से ढोया जा रहा है. संविधान स्त्री और पुरुष दोनों को बराबरी का दर्जा देता है तो फिर मंदिरों और मस्जिदों में महिलाओं के साथ भेदभाव क्यों?

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आरोप लग रहे हैं कि इन चिंगारियों को सबरीमाला प्रशासन ही हवा दे रहा है. धार्मिक स्थलों में स्त्रियों के प्रवेश के मामलों पर सुप्रीम कोर्ट के रुख को देखते हुए संभव है कि यहां महिलाओं को ही महिलाओं के सामने खड़ा कर दिया गया है, जिससे दबाव बनाया जा सके. महिलाओं को धर्म और आस्था के नाम पर गुमराह करना बेहद आसान काम है जो सदियों से होता आ रहा है. फिर चाहे वो पढ़ी लिखी हो, या फिर अनपढ़ उससे कोई फर्क नहीं पड़ता. आज #ReadyToWait कहा जा रहा है, कल खत्म हो चुकी दूसरी दकियानूसी परंपराओं को फिर किसी हैशटैग के साथ उठाएंगी. कट्टरपंथी धर्म के नाम पर जो न करवा लें थोड़ा है.

लेकिन वो दिन भी दूर नहीं कि अय्यप्पा भगवान के दरवाजे जिस दिन सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं के लिए खोल दिए, यही #ReadyToWait का झंडा बुलंद करने वाली और परंपराओं में यकीन रखने वाली महिलाएं सबसे पहले अपने इष्ट का आशीर्वाद लेने के लिए दौड़ती दिखाई देंगी.

लेखक

पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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