पेशेवर हाथों में हो खेल संघों की कमान
नरसिंह यादव का मामला इस बात का सटीक प्रमाण है की राजनीति ने खेलों का केवल कबाड़ा ही किया है
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ओलंपिक में मेडल्स का सूखा खत्म हो गया है, ये राहत की बात है. हालांकि एक बुरी खबर भी आई कि नरसिंह यादव ओलंपिक में नहीं खेल सकेंगे. लेकिन ये तो स्वाभाविक ही था. जब डोप टेस्ट का परिणाम नरसिंह के खिलाफ आया था तभी ये भी तय हो गया था कि उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ सकता है. और यही हुआ भी. सत्य क्या है ये केवल नरसिंह जानते हैं और इससे अब रियो में भारत की स्थिति पर कोई फर्क नहीं पड़ता.
इस मामले पर भारतीय कुश्ती संघ का बयान कि नरसिंह यादव मामले की सीबीआई जांच हो, बड़ा हास्यास्पद लगता है. अब नरसिंह यादव के वर्ग में भारत की चुनौती समाप्त हो गई है. इस वर्ग में बिना लड़े भारत ने हार मान ली है. ओलंपिक में तो भद्द पिट ही गई, रही बात साज़िश या सीबीआई जांच की तो उसके लिए आपके पास अगले ओलंपिक तक का समय है.
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नरसिंह यादव पर 4 साल का बैन लगा दिया गया है |
खास बात ये है कि इस मामले में प्रधानमंत्री को भी अंधेरे में रखा गया. उन्हें ये नहीं बताया गया कि ये मामला यहीं खत्म नहीं हुआ है. ओलंपिक में भी नरसिंह यादव को इस मामले से जूझना पड़ सकता है, और इस बात की भी आशंका है कि उन्हें खेलने न दिया जाए. यदि उन्हें ये पता होता तो वो यकीनन ऐसा नहीं होने देते, और आज भारत इस वर्ग में खेल रहा होता.
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ये मामला इस बात का सटीक प्रमाण है की राजनीति ने खेलों का केवल कबाड़ा ही किया है. खेलों की कमान पेशेवर हाथों में होनी चाहिए. दीपा और पीवी सिंधू के मामलों ने ये साबित कर दिया है. कोच और खिलाड़ी ही मुकाबलों के रूख बदल सकते हैं. नरसिंह मामले में यदि सिर्फ पेशेवर होते तो यकीनन ये स्थिति नहीं बनती. खेलना पहली शर्त होती, फिर ये तय होता कि हमारी चुनौती कौन पेश करेगा. यहां ये बताना भी लाज़मी है कि रियो ना जाने की स्थिति में नरसिंह को बैन का सामना नहीं करना पड़ता. यानी खेल के नियम और फॉर्मेट की जानकारी का अभाव, जिसका खामियाजा नरसिंह को भी भुगतना पड़ेगा.
बहरहाल अभी खेल चल रहे हैं और भारत के लिए ओलंपिक में अभी संभावनायें शेष हैं इसलिए शुभकामनाएं.
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