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समाज
| 2-मिनट में पढ़ें
कुमार विवेक
@5348576095262528
दरकता जोशीमठ जूझते लोग
आर्थिक लाभ की हवस नें एक पूरे समुदाय को खतरे में डाल दिया है. प्रकृति से छेड़छाड़ का नतीजा जीवन के जोखिम के रूप में सामने है. उस पिकनिक या पर्यटन स्थल के विकास के क्या मायने है जो मानव जीवन की कीमत पर हो. क्या जब हमारे पास पूर्वानुमान के इतने साधन थे. कई आपदाओं के उदाहरण थे.
समाज
|
एक अलग नज़रिया
| 3-मिनट में पढ़ें
ज्योति गुप्ता
@jyoti.gupta.01
जोशीमठ की रोती-बिलखती महिलाएं दिल पर पत्थर रख अपने घरों को अलविदा कह आईं हैं
दुनिया कहां से कहां जा रही है मगर महिलाओं की दुनिया तो उनका घर होती है. घर की चारदावारी में उनकी धड़कन बसती है. वे कहीं भी चली जाएं घर आकर ही उन्हें चैन मिलता है. वे ही तो मकान को घर बनाती है. अपने हाथों से करीने से सजाती हैं. तीज त्योहार पर खुद भले ना सजें मगर घर को जरूर सजाती हैं.
समाज
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एक अलग नज़रिया
| 5-मिनट में पढ़ें
ज्योति गुप्ता
@jyoti.gupta.01
जोशीमठ के लोगों का दर्द महसूस कर कलेजा फट जाएगा, घर बनाने में एक उम्र खपानी पड़ती है
घर बनाने में सिर्फ पैसा लगता है क्या? घर बनाने में इंसान झोंक देता है अपनी जवानी. अपनी जिंदगी भर की कमाई. घर सिर्फ मकान नहीं होता, घर होता है पूर्वजों की निशानी. बच्चों का भविष्य. घर सिर्फ सीमेंट, बालू, ईंट नहीं होता. घर होता है बच्चे का पहला रूंदन. घर से आंगन में गाए जाते हैं ब्याह के गीत. पहली बार उतरती है किसी की डोली. उसी घर से होती है जिंदगी के सफर की अंतिम विदाई और उठती है अर्थी...