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समाज
|
एक अलग नज़रिया
| 4-मिनट में पढ़ें
ज्योति गुप्ता
@jyoti.gupta.01
उस सरकारी टीचर की कहानी जिसके पढ़ाने के तरीके ने बच्चों को स्कूल आने पर मजबूर कर दिया
सरकारी टीचर खुशबू की कोशिश से इतने बच्चे स्कूल आने लगे हैं कि क्लास में बैठने की जगह तक नहीं बची है. वे हर छात्र में अपने बच्चे की छवि देखती हैं. वे बच्चों को पढ़ाने के लिए नए-नए रोचक तरीके अपनाती हैं. वे ध्यान रखती हैं कि बच्चे स्कूल में बोर ना हो और उनका मन लगा रहे. इसलिए वे खेलते-कूदते, नाचते-गाते, म्यूजिक के साथ बच्चों को पढ़ाती हैं.
समाज
| 4-मिनट में पढ़ें
बिजय कुमार
@bijaykumar80
नून रोटी खाएंगे...देश का भविष्य कैसे बनाएंगे
उत्तर प्रदेश सरकार ने इसी साल जनवरी में मिड डे मील में पारदर्शिता लाने के लिए सभी प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूलों की दीवारों पर मेन्यू पेंट करने का निर्देश दिया था और इसके लिए बाकायदा पैसे भी जारी किये थे बावजूद इसके बावजूद इसके बच्चे नमक रोटी खा रहे हैं.
समाज
| 3-मिनट में पढ़ें
प्रीति 'अज्ञात'
@preetiagyaatj
...तो मान लिया गया है कि नैतिकता शिक्षक नहीं दे सकते?
क्या ऐसा नहीं लगता कि नैतिकता, ईमानदारी, सच्चाई, आदर्शवादिता और अच्छे संस्कार; परिवार और परिवेश से आते हैं! हर बात की जिम्मेदारी स्कूल ही क्यों ले?
सियासत
| 7-मिनट में पढ़ें
सिद्धार्थ झा
@sidharath.jha
निजीकरण की जरूरत
आज के युवा भले ही इन बातों पर यकीन न करें, लेकिन ये हमारा भूतकाल रहा है जहां हर चीज के लिए लाइन में लगना जरूरी था. लेकिन सच मानिए सरकार ने जिस किसी भी क्षेत्र में कदम रखा वहां बेड़ा गर्क ही हुआ है.
समाज
| 2-मिनट में पढ़ें
आईचौक
@iChowk
जापानी और भारतीय चित्रकारों ने देखिए बिहार के स्कूल का क्या किया..
इस वेलफेयर स्कूल को देखकर यकीन करना मुश्किल है कि ये देश के सबसे गरीब प्रदेश बिहार के एक छोटे से गांव में बसा है.
समाज
| 6-मिनट में पढ़ें
शिवानन्द द्विवेदी
@shiva.sahar
पूंजीपतियों के लिए तो नहीं बना आरटीई कानून?
एक रिपोर्ट के मुताबिक अगर आरटीई के नियमों में ढील नहीं दी गयी या पुराने स्कूलों से यह नियम हटाया नहीं गया तो लगभग लाखों की संख्या में बच्चे शिक्षा से महरूम होंगे.
सियासत
| 3-मिनट में पढ़ें
मृगांक शेखर
@msTalkiesHindi
छोटे कुमार राज के बड़े सवाल...
एक बच्चा बड़ा होकर कुछ बनना चाहता हैं. सिर्फ 'कुछ' नहीं, बल्कि प्रधानमंत्री बनना चाहता है. लेकिन प्रधानमंत्री ही क्यों?