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Updated: 26 नवम्बर, 2018 06:59 PM
श्रुति दीक्षित
श्रुति दीक्षित
  @shruti.dixit.31
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'बच्चे तो भगवान की देन होते हैं. भगवान सबको एक जैसा नहीं बनाता.' ये सब कुछ हम बचपन से सुनते आ रहे हैं कि किसी के भी लुक्स को लेकर, उसके दिमाग को लेकर, उसकी आदतों को लेकर उसपर टिप्पणी करना सही नहीं है. भगवान हर किसी को एक जैसा नहीं बनाता और जो भी भगवान की देन है उसे हमें स्वीकार करना चाहिए, लेकिन शायद ये सीख अब कहीं धूमिल होती जा रही है. लगातार साइंस की तरफ से खोज की जा रही है और ऐसे बच्चों को पैदा करने की बात हो रही है जिनके डीएनए से छेड़छाड़ की हो. ये सुपर ह्यूमन की कैटेगरी है जहां जीन्स (जेनेटिक) को ही बदल दिया जाता है ताकि बच्चे शुरुआत से ही बेहतरीन प्रदर्शन करें और कुछ अनोखे हों, सबसे बेस्ट मेरा बच्चा की होड़ आखिर कहां लेकर जा रही है दुनिया को?

इस बार भी कुछ ऐसा ही हुआ है. चीन के एक वैज्ञानिक ने दावा किया है कि उसने दुनिया का पहला जिनेटिकली एडिटिड बच्चा बना लिया है. दरअसल, वो जुड़वां लड़कियां हैं जो हाल ही में पैदा हुई हैं और उन बच्चियों के डीएनए में गर्भावस्था के दौरान ही एडिटिंग कर दी गई थी. चीनी वैज्ञानिक ने दावा किया है कि जिस ताकतवर तरीके से डीएनए को बदला गया है वो जिंदगी का ब्लूप्रिंट ही बदल सकता है.

चीन, वैज्ञानिक, विज्ञान, बच्चेचीनी वैज्ञानिक का दावा है कि उसके भ्रूण का डीएनए एडिट कर दुनिया के पहले ऐसे बच्चों के जन्म में मदद की है जिनके जीन्स बदले हुए हैं

अगर ये सच है और चीनी वैज्ञानिक ने वाकई ऐसे बच्चों का डीएनए बदल दिया है तो ये विज्ञान के लिए तो बड़ा बदलाव है और साथ ही ये यकीनन प्रकृति के नियमों के साथ खिलवाड़ जैसा ही है.

क्यों ये खिलवाड़ है?

जिस तरह की जीन एडिटिंग की बात हो रही है वो न सिर्फ मौजूदा बच्चों के लिए खतरनाक है बल्कि ये आने वाली पीढ़ियों के लिए भी है. मान लीजिए कोई कॉम्प्लिकेशन अभी उन जुड़वा बच्चियों के साथ नहीं हुआ, लेकिन बाद में उनके बच्चों पर असर हुआ और मौजूदा माहौल के हिसाब से एक ऐसा जीन पृथ्वी पर पनपने लगा जो असल में इस दुनिया के लिए है ही नहीं.

इस तरह का काम अमेरिका में बैन है क्योंकि ये डीएनए का बदलाव भविष्य की जनरेशन पर जा सकता है और ये यकीनन एक खराब बात होगी.

कई वैज्ञानिकों का मानना है कि जो रिसर्च हुई है वो बहुत ज्यादा खतरनाक है और उसका इस्तेमाल अभी एकदम से मानव संसाधनों के लिए नहीं करना चाहिए. अजन्मे बच्चों का डीएनए बदलना बहुत खतरनाक है.

किसने की है ये रिसर्च?

ये रिसर्च करने वाले हैं शिनजेन के वैज्ञानिक ही जैनकुई (He Jiankui). उनका कहना है कि उन्होंने 7 जोड़ों के भ्रूण में बदलाव किया जो फर्टिलिटी ट्रीटमेंट के जरिए माता-पिता बनने की कोशिश कर रहे थे. इसमें से सिर्फ एक ही जोड़े के साथ पॉजिटिव रिपोर्ट मिली और अन्य महिलाएं प्रेग्नेंट नहीं हो पाईं.

उनका कहना है कि उन्होंने ये किया ताकि बच्चों में बीमारी की प्रतिरोधक क्षमता ज्यादा हो. बच्चों को वो माता-पिता की वंशागत बीमारियों से तो बचा नहीं सकते, लेकिन उन्होंने एक छोटा सा बदलाव किया है जिससे बच्चों में ऐसे जीन्स बने जो HIV से होने वाले सभी संक्रमणों से बचाव कर सके. इसमें AIDS भी शामिल है.

जिन मरीजों के साथ ये किया गया उनकी पहचान गुप्त रखी गई है और साथ ही साथ जैनकुई के दावे को लेकर भी कोई पुख्ता सबूत जारी नहीं किए गए हैं. अभी तक किसी अन्य वैज्ञानिक ने भी इसकी पुष्टी नहीं की है. जैनकुई ने Associated Press को एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू दिया जिसमें इस सबका दावा किया गया है.

जैनकुई का कहना है कि उनके ऊपर बड़ी ज़िम्मेदारी थी कि वो न सिर्फ ये सबसे पहले करें बल्कि ये भी कि उन्हें एक उदाहरण बनना है. समाज ही आगे ये तय करेगा कि इस तरह की साइंस को आगे बढ़ाना है या फिर नहीं.

डॉक्टर किरन मुसुनुरू जो खुद यूनिवर्सिटी ऑफ पेंसिलवेनिया में जीन एडिटिंग एक्सपर्ट हैं उनका कहना है कि ये न सिर्फ नैतिक रूप से गलत है बल्कि ये गैरकानूनी भी है. ये अभी बहुत जल्दी है कि ऐसा कोई भी एक्सपेरिमेंट किया जाए.

हालांकि, हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक जॉर्ज चर्च का कहना है कि ये जीन एडिटिंग असल में HIV के मरीजों के लिए नई उम्मीद की तरह है. इसे माना जा सकता है.

जिस टूल से जीन एडिटिंग की गई है उसे CRISPR-cas9 कहा जाता है जिसकी मदद से DNA में ऑपरेशन किया जा सकता है. इससे उस जीन को बदला जा सकता है जो मानव शरीर में समस्या पैदा कर रहा हो. इसे हाल ही में इंसानों पर टेस्ट किया गया है जो किसी गंभीर बीमारी से जूझ रहे थे. ऐसे में जेनेटिक बदलाव सिर्फ उस इंसान तक ही सीमित रहे थे. लेकिन किसी भी अजन्मे बच्चे के साथ ये रिस्क लेना सही नहीं है. ऐसे बच्चे जो अभी पैदा भी नहीं हुए हैं ये उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ है. लैब रिसर्च के आधार पर ये करना सही था, लेकिन असल में किसी भी जीवित इंसान के साथ ये करना सही नहीं है.

क्या हो सकता है आगे?

इसे सही नहीं कहा जा सकता क्योंकि जिन बच्चों के साथ ये किया गया उन्हें आगे चलकर किस तरह की समस्या का सामना करना पड़ेगा ये पता नहीं है. साथ ही, अगर ये रिसर्च और एक्सपेरिमेंट सही है तो लोग इसे एक ऐसा तरीका समझने लगेंगे जिससे सुपर बेबी बनाया जा सके. यानी एक ऐसा बच्चा जिसे एडिट करके बनाया गया हो. उसपर जन्म के पहले से ही इतनी जिम्मेदारी लाद दी जाए कि बस वो सब कुछ सुपर कर सके. अपने बच्चे को सुपर बेबी बनाने का ख्याल क्या प्रकृति के खिलाफ नहीं है? भले ही जो काम चीनी वैज्ञानिक ने किया हो वो किसी बेहतर काम के लिए हो, उनकी सोच अच्छी हो कि HIV से बचाने के लिए बच्चों के साथ ये किया गया हो, लेकिन क्या आगे चलकर वो सही ही होगा ये कैसे कहा जा सकता है. जब इसके लेकर पर्याप्त रिसर्च नहीं है तो किसी बच्चे की जिंदगी से खेलने का क्या मतलब है. ये डॉक्टर अमेरिका में रहते थे और चीन में वापस आए क्योंकि अमेरिका उन्हें ये करने की इजाजत नहीं देता, लेकिन क्या उन्होंने जो किया वो सही है? आप खुद सोचकर देखिए.

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श्रुति दीक्षित श्रुति दीक्षित @shruti.dixit.31

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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