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Updated: 27 अक्टूबर, 2020 10:27 PM
प्रदीप कुमार
प्रदीप कुमार
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अब से करीब इक्यावन साल पहले 21 जुलाई 1969 को नील आर्मस्ट्रांग (Neil Armstrong) ने जब चंद्रमा पर कदम रखा था, तब उन्होंने कहा था कि ‘एक आदमी का यह छोटा-सा कदम मानवता के लिए एक विराट छलांग है.’ अपोलो मिशन (Apollo Mission) के तहत अमेरिका ने 1969 से 1972 के बीच चांद की ओर कुल नौ अंतरिक्ष यान भेजे और छह बार इंसान को चांद पर उतारा. अपोलो मिशन खत्म होने के तीन दशक बाद तक चंद्र अभियानों (Moon Mission) के प्रति एक बेरुखी सी दिखाई दी थी. मगर चांद की चाहत दोबारा बढ़ रही है. बीता साल चंद्र अभियानों के लिहाज से बेहद खास रहा.16 जुलाई, 2019 को इंसान के चांद पर पहुंचने की पचासवीं वर्षगांठ थी. जनवरी 2019 में एक चीनी अंतरिक्ष यान चांग ई-4 ने एक छोटे से रोबोटिक रोवर के साथ चांद की दूर वाली सतह पर उतरकर इतिहास रचा. भारत ने भी अपने महत्वाकांक्षी चंद्र अभियान के तहत चंद्रयान-2 को चांद की ओर भेजा था हालांकि उसे अपेक्षित सफलता नहीं मिली.

Moon, Earth, Space, India, America, Chandrayan, Chinaकिसी अन्य मुल्क की तरह भारत भी मिशन मून को लेकर बहुत उत्साहित है

बीते साल इजरायल ने भी एक छोटा रोबोटिक लैंडर उस ओर भेजा था, लेकिन वह दुर्घटनाग्रस्त हो गया. हाल ही में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने अपने आर्टेमिस मून मिशन की रूपरेखा प्रकाशित की है, जिसके अंतर्गत साल 2024 तक इंसान (एक स्त्री और एक पुरुष) को चंद्रमा पर भेजने की योजना है. बीते 14 अक्टूबर को आठ देशों ने आर्टेमिस मिशन को लेकर एक बहुत ही महत्वपूर्ण अंतराष्ट्रीय समझौता किया है. इस करार के मुताबिक सभी आठ देश मिलकर शांति और जिम्मेदारी के साथ चंद्रमा के अन्वेषण में सहयोग करेंगे.

इस मिशन पर काम कई दशको पहले स्पेस लॉंच सिस्टम और ओरियन कैपस्यूल के निर्माण के साथ शुरू हुआ था और अभी यह अपने अंतिम दौर पर है. आर्टेमिस मिशन के जरिए नासा इंसानो को करीब 51 सालों बाद फिर एक बार चाँद पर उतारने की योजना बना रहा है. यह मिशन इस दशक का सबसे खास और महत्वपूर्ण मिशन होने जा रहा है जो कि अन्तरिक्ष अन्वेषण के क्षेत्र में एक नए युग की शुरुआत करेगा. भले ही यह मिशन चांद से शुरू होगा पर यह भविष्य में प्रस्तावित मंगल अभियान और दूसरे अन्य अन्तरिक्ष अभियानों के लिए मील का पत्थर साबित होगा.

अंतरिक्ष में हमारा सबसे नजदीकी पड़ोसी चांद प्राचीन काल से ही मानव जाति की जिज्ञासा का विषय रहा है. पिछली सदी के पूर्वार्ध तक हम अपनी चंद्र जिज्ञासा को दूरबीन से ली गई तस्वीरों से ही शांत करते थे. पहली बार साल 1959 में रूसी (तत्कालीन सोवियत) अंतरिक्ष यान ‘लूना-1’ चंद्रमा के करीब पहुंचने में कामयाबी रहा. इसके बाद रूसी यान ‘लूना-2’ पहली बार चंद्रमा की सतह पर उतरा. सोवियत संघ ने 1959 से लेकर 1966 तक एक के बाद एक कई मानवरहित अंतरिक्ष यान चंद्रमा की धरती पर उतारे.

द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद अमेरिका और सोवियत संघ के बीच शीतयुद्ध जब अपने उत्कर्ष पर था, तभी 12 अप्रैल 1961 को सोवियत संघ ने यूरी गागरिन को अंतरिक्ष में पहुंचाकर अमेरिका से बाजी मार ली. इससे अमेरिकी राष्ट्र के अहं तथा गौरव पर कहीं न कहीं चोट पहुंची थी. उसके बाद अमेरिका ने अंतरिक्ष अन्वेषण में अपनी श्रेष्ठता साबित करने के लिए अकूत आर्थिक और वैज्ञानिक संसाधन झोंक दिए. आखिरकार नील आर्मस्ट्रांग चंद्रमा की सतह पर कदम रखने वाले पहले इंसान के रूप में इतिहास में दर्ज हुए.

अपोलो मिशन के जरिए 12 इंसानों ने चंद्रमा पर चलने का गौरव प्राप्त किया, जबकि 10 को उसकी कक्षा में चक्कर लगाने का मौका मिला. शीतयुद्ध की राजनयिक, सैन्य विवशताओं और मिशन के बेहद खर्चीला होने के कारण अपोलो-17 के बाद इसे समाप्त कर दिया गया. तब से लेकर आधी सदी तक अंतरिक्ष कार्यक्रमों को मंजूरी देने वाले नियंताओं की आंख से मानो चांद ओझल ही रहा. मगर आज चांद पर पहुंचने के लिए जिस तरह से विभिन्न देशों में होड़ लगती हुई दिखाई दे रही है, उसे देखते हुए यही कहा जा सकता है कि चांद फिर से निकल रहा है.

इसरो को चंद्रयान-2 मिशन की आंशिक विफलता ने इसके उन्नत संस्करण चंद्रयान-3 के लिए नए जोश के साथ प्रेरित किया है. चीन 2024 तक चंद्रमा पर अपने अंतरिक्ष यात्री उतारने की तैयारी कर रहा है. रूस 2030 तक चांद पर अपने लोगों को उतारने की तैयारी में है.यही नहीं, कई निजी कंपनियां चांद पर उपकरण पहुंचाने और प्रयोगों को गति देने के उद्देश्य से नासा का ठेका हासिल करने की कतार में खड़ी हैं.

इसका मुख्य कारण है चांद का धरती के नजदीक होना. वहां तक पहुंचने के लिए तीन लाख चौरासी हजार किलोमीटर की दूरी सिर्फ तीन दिन में पूरी की जा सकती है. चांद से धरती पर रेडियो कम्यूनिकेशन स्थापित करने में महज एक से दो सेकंड का समय लगता है. सवाल है कि बीते पचास सालों में किसी देश ने चांद पर पहुंचने के लिए कोई बड़ा प्रयास नहीं किया, तो फिर अचानक ऐसा क्या हुआ कि उन्हें वहां जाने की दोबारा जरूरत महसूस होने लगी है?

इसके लिए अलग-अलग देशों के पास अपनी-अपनी वजहें हैं. मसलन, भारत के लिए चंद्र अभियान खुद को तकनीकी तौर पर उत्कृष्ट दिखाने का सुनहरा मौका होगा. चीन तकनीक के स्तर पर खुद को ताकतवर दिखाकर महाशक्ति बनने की दिशा में आगे बढ़ जाना चाहता है. अमेरिका के लिए चांद पर जाना मंगल पर पहुंचने से पहले का एक पड़ाव भर है. लेकिन चंद्रमा की नई होड़ के पीछे सबसे बड़ा कारण वहां पानी मिलने की संभावना है. हालिया अध्ययनों में चांद के ध्रुवीय गड्ढों में बर्फ होने की उम्मीद जताई गई है.

यह वहां जाने वाले अंतरिक्ष यात्रियों के लिए पेयजल का दुर्लभ स्रोत तो होगा ही, सोलर ऊर्जा के जरिए पानी को हाइड्रोजन और ऑक्सिजन में विखंडित भी किया जा सकता है. ऑक्सिजन सांस लेने के लिए हवा मुहैया करा सकती है, जबकि हाइड्रोजन का उपयोग रॉकेट ईंधन के रूप में किया जा सकता है. चांद पर भविष्य में एक रिफ्यूलिंग स्टेशन बनाया जा सकता है, जहां रुककर अपने टैंक भरकर हमारे अंतरिक्ष यान सौरमंडल के लंबे अभियानों में आगे निकल सकते हैं.

विभिन्न देशों की सरकारों की नजर चंद्रमा के कई दुर्लभ खनिजों जैसे सोने, चांदी, टाइटेनियम के अलावा उससे टकराने वाले क्षुद्र ग्रहों के मलबों की ओर भी है, मगर वैज्ञानिकों की विशेष रुचि चंद्रमा के हीलियम-3 के भंडार पर है. हीलियम-3 धरती की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के साथ-साथ इसके कारोबार में लगे लोगों को खरबों डॉलर भी दिला सकता है.

भविष्य के न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्टरों में इस्तेमाल के लिहाज से यह सबसे बेहतरीन और साफ-सुथरा ईंधन है. जाहिर है, इस दशक में चांद इंसानी गतिविधियों का प्रमुख केंद्र बनेगा क्योंकि वहां खनन से लेकर होटल बनाने और मानव बस्तियां बसाने तक की योजनाओं पर काम चल रहा है. देखते हैं, चंद्रमा की यह नई दौड़ क्या नतीजे लाती है.

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लेखक

प्रदीप कुमार प्रदीप कुमार @2175488646036357

लेखक साइंस ब्लॉगर हैं और विज्ञान से ही जुड़े मुद्दों पर लिखते हैं.

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