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राजीव रंजन प्रसाद
rajeev.prasad
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सियासत
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5-मिनट में पढ़ें
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राजीव रंजन प्रसाद
@rajeev.prasad
अप्रासंगिक धारा 370 और वामपंथी रुदालियां
वामपंथियों ने जिस तरह लोकतंत्र बचाने के जुमले के साथ बुक्का फाडा है वह उनकी तर्कशीलता का नहीं मध्ययुग की सोच को बचाये रखने का परिणाम है.
संस्कृति
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7-मिनट में पढ़ें
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राजीव रंजन प्रसाद
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महावीर को राष्ट्रनिर्माण से भी जोड़कर देखना चाहिये
महावीर जब अपने सिद्धांतो के प्रचार में निकलने लगे तो लोगों नें उन्हें पागल समझा, किसी नें पत्थर फेंके तो किसी नें डंडे से मारा, किसी नें उन पर कुत्ते छोड़ दिये. महावीर नें स्वयं अपना रास्ता बनाया जिस पर लाखों लोग चले.
सियासत
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5-मिनट में पढ़ें
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राजीव रंजन प्रसाद
@rajeev.prasad
सामाजिक एकता मंच बनाम नक्सल समर्थक मंच
बस्तर में यह बहुधा होता है कि अमेरिका से लेकर दिल्ली तक पुलिस तंत्र की नाकामियों अथवा उनकी ज्यादतियों पर मुखर होते हैं तो नक्सलियों की कारस्तानियों पर खामोश रहते हैं. नक्सल पीडितों की भी एक पूरी पीढी विद्यमान है जिनकी पक्षधरता कभी भी जनपक्षधारता के वर्तमान भारतीय मानकों के अंदर रेखांकित नहीं होती.
सियासत
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5-मिनट में पढ़ें
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राजीव रंजन प्रसाद
@rajeev.prasad
जेएनयू बनाम एनआईटी- अभिव्यक्ति और असहिष्णुता के मापदंड
कितना अच्छा है न यह चुप्पी का खेल? लेखक चुप पत्रिकायें भी चुप, पत्रकार चुप अखबार भी चुप, मोमबत्तियां चुप जंतरमंतर भी चुप, नेता चुप प्रशासन भी चुप. केवल कराह रहे हैं तो वे छात्र जिनकी अक्षम्य गलती है कि वे जवाहरलाल नेहरू युनिवर्सिटी, नयी दिल्ली में नहीं पढते.
समाज
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4-मिनट में पढ़ें
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राजीव रंजन प्रसाद
@rajeev.prasad
हमारी बेशर्म खामोशी ही नक्सलियों की ताकत है
उत्तराखण्ड वाले घोडे की टूटी टाँग से भी बदतर नियति उन शवों की है जिन्हें नक्सली वारदात में मौत मिलती है, लेकिन देश के एक विशेष बौद्धिजीविक जमात के लिये ये लाल-आतंकवादी वस्तुत: क्रांतिकारी हैं. इनकी क्रूरतम वारदातों को भी सामान्यतम बना कर किसी सूचना की तरह रोजमर्रा की बात बना दिया जाता है.
सियासत
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5-मिनट में पढ़ें
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राजीव रंजन प्रसाद
@rajeev.prasad
जेएनयू की अति-बैद्धिकता, लाल-आतंकवाद और बस्तर
फासीवाद और स्टालिनवाद में कोई अंतर नहीं है यहाँ तक कि हिटलरवाद और माओवाद को भी मौसेरा भाई ही माना जा सकता है. अभिव्यक्ति की आजादी का भारत से बेहतर कोई दूसरा मुल्क उदाहरण नहीं लेकिन दुर्भाग्य कि जो लोग उसकी मर्यादा नहीं रखना चाहते वे स्वयं को देश की कथित सबसे प्रतिष्ठित युनिवर्सिटी का छात्र या प्रोफेसर कहते हैं
सियासत
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6-मिनट में पढ़ें
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राजीव रंजन प्रसाद
@rajeev.prasad
हाथी घोड़ा पालकी अब कन्हैया ‘लाल’ की
कन्हैया का भाषण बहुत कुछ सोचने समझने को बाध्य कर गया. इस जबरदस्त शो और बेहतरीन मीडिया मैनेजमेंट के बीच जो कुछ दबाया जाना था वह बहुत बेहतर तरीके से किया जा चुका है.