करणी सेना के ये दस बातें उनके इतिहास, भूगोल पर से पर्दा उठा देगी
राजस्थान की जनसंख्या का 12 प्रतिशत राजपूत हैं. और करणी सेना राजपूतों का प्रतिनिधित्व करती है. इससे साफ जाहिर है कि आखिर क्यों भाजपा और कांग्रेस दोनों ही इनपर हाथ डालने से डरते हैं.
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पद्मावत विवाद ने चाहे गलत कारणों से ही सही राजपूत करणी सेना का नाम बच्चे बच्चे की जुबान पर ला दिया है. फिर चाहे फिल्म में रानी पद्मावती का किरदार निभाने वाली दीपिका पादुकोण का नाक काटने के लिए 5 करोड़ की घोषणा हो, चाहे मध्यप्रदेश के स्कूल को तहस नहस कर देना क्योंकि वहां के बच्चे 'घूमर' डांस कर रहे थे.
ये सब खबरों में सुन ही रहे हैं तो हम आपके लिए करणी सेना की दस बातें लाए हैं. उन्हें भी जान लीजिए-
1- करणी माता से पड़ा नाम:
जोधपुर और बीकानेर के शाही परिवारों में करणी माता की पूजा की जाती है. करनी माता उर्फ नारी बाई महिला योद्धा थी जिन्हें उनके समर्थक मां दुर्गा का अवतार मानते हैं. राजपूतों के शाही परिवारों द्वारा आग्रह किए जाने पर करणी माता ने ही बीकानेर और मेहरानगढ़ के किलों की नींव रखी थी. रहस्यमयी तरीके से उनके गायब हो जाने के बाद बीकानेर के नजदीक देशनोक में उनका एक मंदिर बनाया गया. ये मंदिर सफेद चूहों के लिए प्रसिद्ध है. करणी सेना के लोग इनकी ही पूजा करते हैं.
2- राजपूत एकता को बढ़ावा:
लोकेन्द्र सिंह कालवी
हालांकि आज करणी सेना को संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावती के विरोध के लिए जाना जाता है. इसी विरोध के कारण फिल्म का नाम बदलकर पद्मावत कर दिया गया. लेकिन 2006 में इस सेना की स्थापना राजपूत समुदाय के साथ हो रहे किसी भी तरह के अन्याय (सामाजिक, ऐतिहासिक या फिर राजनैतिक) के विरोध के लिए की गई थी. सेना, राजपूत समुदाय में एकजुटता लाने के लिए भी प्रतिबद्ध थी.
3- अलग अलग नामों की सेना:
राजपूतों में एकता लाने के नाम पर बनी सेना में अंदरुनी फूट पड़ते देर नहीं लगी. आलम ये है कि अब ये तीन बैनरों में दिखाई देती है- श्री राजपूत करणी सेना, श्री राष्ट्रीय राजपूत करणी सेना और श्री राजपूत करणी सेना समिति. हालांकि पद्मावत के विरोध में ये तीनों ही सेनाएं एकजुट हैं. श्री राजपूत करणी सेना को ही राजपूत करणी सेना के नाम से जाना जाता है और फिल्म में विरोध में सबसे ज्यादा मुखर यही हैं.
महिपाल सिंह मकराना
4- समुदाय के रक्षक:
श्री राजपूत सभा (1939) जैसी संस्थाएं राजपूतों के अधिकारों के लिए लंबे समय से लड़ाई लड़ रही हैं. लेकिन करणी सैनिक खुद को ही समुदाय का रक्षक मानते हैं. दूसरों से अलग दिखाने के लिए वो दावा करते हैं कि राजपूतों का एक बड़ा वर्ग उनके साथ खड़ा है.
5- 40 से कम उम्र के सदस्य:
श्री राजपूत करणी सेना के ज्यादातर सदस्य कॉलेज के छात्र हैं और 40 साल से उम्र के लोग इसके सदस्य बन सकते हैं. ये लोग सेना में सिर्फ एडवाइजरी कमिटि का हिस्सा हो सकते हैं.
6- पहली फूट कांग्रेस से टिकट मिलने के नाम पर हुई:
रिपोर्ट के अनुसार सेना के सह संस्थापक अजित सिंह ममदोली और सेना का गठन करने वाले लोकेन्द्र सिंह ने रास्ते अलग कर लिए. खबर आई थी की करणी सेना ने जब कांग्रेस का समर्थन करने की घोषणा की तो ममडोली को टिकट की पेशकश हुई थी.
लोकेन्द्र सिंह कल्वी, भैरों सिंह शेखावत की सरकार में कृषि मंत्री रहे स्वर्गीय कल्याण सिंह कल्वी के पुत्र हैं. राजपूत सेना दो धड़ों- कल्वी के नेतृत्व में श्री राजपूत करणी सेना और ममडोली के नेतृत्व में श्री राजपूत करणी सेना समिति में बंट गई. अब ये दोनों गुट ही आपस में राज्य की राजनीति में अपना वर्चस्व साबित करने की लड़ाई लड़ने लगी. तीसरा गुट 2015 में अस्तित्व में आया. श्री राजपूत करणी सेना (कल्वी गुट) के प्रदेश अध्यक्ष ने श्री राष्ट्रीय राजपूत करणी सेना का निर्माण किया.
7- करणी सेना ने राजस्थान में फिल्म जोधा अकबर को रीलिज नहीं होने दिया था:
जोधा अकबर को रीलिज नहीं होने दिया
2008 में आशुतोष गोवारिकर की फिल्म जोधा अकबर को भी सेना के रोष का भागी बनना पड़ा था. आरोप लगाया गया कि फिल्म में इतिहास से छेड़छाड़ की गई है. कार्यकर्ताओं का कहना था कि जोधपुर की राजकुमारी जोधा बाई की शादी अकबर से नहीं हुई थी.
फिल्म के रिलीज होने के बाद उन्होंने सिनेमाघरों के मालिकों को खून से चिट्ठियां लिखी और फिल्म का विरोध किया. नतीजतन फिल्म राजस्थान में रिलीज नहीं हुई. सेना के नेताओं ने दूसरे राज्यों से भी फिल्म नहीं दिखाने की गुजारिश की.
8- टीवी सीरियल जोधा अकबर के खिलाफ भी प्रदर्शन:
जयपुर लिटरेचर फेस्ट में भी हंगामा मचाया
2014 में जयपुर लिटरेचर फेस्टीवल में सेना के लोगों ने एकता कपूर के सेशन के दौरान तोड़फोड़ मचाई थी. जोधा अकबर सीरियल की प्रोड्यूसर एकता कपूर थी.
9- राजपूतों के लिए आरक्षण:
हालांकि ये कोई नई मांग नहीं थी. लेकिन पिछले साल की शुरुआत में गुजरात के पाटीदार आंदोलन के समय सेना ने अपने को सुर्खियों में लाने के लिए केंद्र सरकार से आरक्षण की मांग पर प्रदर्शन करना शुरु कर दिया. 2013 में भी उन्होंने 'चिंतन शिविर' के दौरान तत्कालिन कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी का विरोध करने की घोषणा की थी.
10- करणी सेना इतनी मजबूत क्यों?:
करणी सेना कोई राजनीतिक गुट नहीं है. लेकिन फिर भी उन्होंने किसी भी पार्टी से जुड़े राजपूत को समर्थन देने की घोषणा कर रखी ही. समय समय पर अपने फायदे के अनुसार इन्होंने पाले बदलने से भी गुरेज नहीं किया. अपने गठन के समय ये लोग कांग्रेस के समर्थन में थे. भाजपा की सरकार बनते ही ये उनके साथ जुड़ गए. 2012 में करणी सेना ने भाजपा के जयपुर बंद का समर्थन किया और फेक इनकाउंटर मामले में राजेन्द्र सिंह राठौर का भी विरोध किया.
राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने भी फिल्म को बैन करने के संबंध में केंद्र को लिखा. भाजपा विधायक दिव्या कुमारी ने फिल्म के विरोध में एक हस्ताक्षर अभियान भी चलाया. राजस्थान की जनसंख्या का 12 प्रतिशत राजपूत हैं. और करणी सेना राजपूतों का प्रतिनिधित्व करती है. इससे साफ जाहिर है कि आखिर क्यों भाजपा और कांग्रेस दोनों ही इनपर हाथ डालने से डरते हैं.
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