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Updated: 29 जून, 2018 08:30 PM
श्रुति दीक्षित
श्रुति दीक्षित
  @shruti.dixit.31
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हमारे देश की अर्थव्यवस्था बड़ी ही अजीब है. यहां 22% से ज्यादा लोग गरीबी रेखा के नीचे रह रहे हैं और उसके अलावा, करीब 2.5 लाख करोड़पति परिवार हैं जो सालाना 6.8 करोड़ से ज्यादा कमाते हैं. ये सोचने वाली बात है कि भारत जैसे देश में जहां इतनी आबादी में इतना अंतर है विकास कैसे हो रहा है. भारतीय पैसे की विविदता के बारे में बात करें तो हाल ही में स्विस नैशनल बैंक ने हाल ही में 2017 की एक रिपोर्ट जारी की है. इस रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले एक साल में भारतीयों का पैसा स्विस बैंक में 50% तक बढ़ गया है.

पिछले साल ये पैसा 1.01 बिलियन स्विस फ्रैंक (करीब 7000 करोड़) तक पहुंच गया. मोदी सरकार के आने के बाद से लगातार हर साल ये पैसा कम हो रहा था और इस साल अचानक नोटबंदी के बाद ये बढ़ गया है.

विदेशों में जहां भारतीयों का पैसा जमा है उसके मुकाबले स्विट्ज़रलैंड के बैंक में ये आंकड़ा 3 प्रतिशत तक बढ़कर 1.46 ट्रिलियन स्विस फ्रैंक यानी 100 लाख करोड़ हो गया है. यानी भारतीयों का कुछ 100 लाख करोड़ रुपए स्विस बैंकों में जमा है.

ये अचंभे की बात इसलिए लग रही है क्योंकि पिछले चार सालों से मोदी सरकार लगातार स्विस बैंकों से बातचीत कर रही है. उनके साथ सूचनाओं के आदान-प्रदान को लेकर संधि कर रही है. हर साल इस पैसे में कमी आ रही थी. 2016 में तो स्विस बैंकों में जमा धन का आंकड़ा 45% गिरकर सिर्फ 676 मिलियन (कुल 4500 करोड़) रह गया था. 1987 से जबसे स्विस बैंक ने डेटा सार्वजनिक किया था तब से लेकर 2016 तक में ये सबसे कम रहा था.

स्विस बैंक, काला धन, मोदी सरकार, राहुल गांधी, अर्थव्यवस्था

स्विस बैंक के डेटा के अनुसार एक साल में भारतीयों द्वारा जमा किया गया पैसा 999 मिलियन स्विस फ्रैंक (6891 करोड़ रुपए) जमा किए गए. मौजूदा डेटा के अनुसार भारतीय कस्टमर के 464 मिलियन स्विस फ्रैंक (3200 करोड़ रुपए) डिपॉजिट के तौर पर, 152 मिलियन स्विस फ्रैंक (1050 करोड़ रुपए) बैंकों के और 383 मिलियन स्विस फ्रैंक (2640 करोड़ रुपए) अन्य देनदारियों के रूप में जमा किए गए हैं.

ये डेटा अपने साल कई सवाल लेकर आया है. अरुण जेटली की गैरमौजूदगी में वित्त मंत्रालय का कार्यभार संभाल रहे पीयूष गोयल ने ये कहा है कि 2019 तक सारा डेटा मिल जाएगा और जिनका भी काला धन स्विस बैंक में जमा है उन्हें सज़ा मिलेगी. इसपर राजनीति भी शुरू हो गई है और राहुल गांधी ने ट्वीट कर इसे पूरी तरह से काला धन बता दिया है.

पर सवाल अब भी यही है. क्या ये पूरी तरह से काला धन है? अब कुछ बातों पर और सवालों पर गौर करते हैं.

क्या भारत सरकार को पता है कि पैसा कितना गया है?

सबसे बड़ा सवाल जो इस स्वित्जरलैंड वाले मामले के बाद निकल कर आ रहा है वो ये कि क्या सरकार को इसकी जरा भी भनक थी कि नोटबंदी के बाद इतना पैसा बाहर गया है?

2014 में काला धन को लेकर SIT बन गई थी उसका क्या?

कश्मीर मसले और काला धन मोदी सरकार के दो अहम चुनावी मुद्दे थे. इसमें से ब्लैक मनी की रोकथाम से लिए मोदी सरकार ने चुनाव का फैसला आते ही सबसे पहले SIT (स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम) बनाने का काम किया था. इस टीम के अध्यक्ष रिटायर्ड जज एम बी शाह बने थे. सुप्रीम कोर्ट ने इस टीम में रेवेन्यू सेक्रेटरी, सीबीआई के डायरेक्टर्स, इंटेलिजेंस ब्यूरो, रिसर्च एंड एनालिसिस विंग और ED के लोग, साथ ही सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्स के सदस्य और रिजर्व बैंक के डेप्यूटी गवर्नर को जोड़ने की बात की थी.

उस समय इस टीम के कई सारी उम्मीदें लगाई जा रही थीं.

क्या जो पैसा गया है वो सभी काला धन है?

2017 में Knight Frank द्वारा की गई एक स्टडी की रिपोर्ट आई थी. 2017-18 के वित्तीय वर्ष के पहले 5 महीनों में ही भारतीयों ने $23.5 मिलियन डॉलर (1 अरब 61 करोड़) की प्रॉपर्टी विदेशों में खरीद ली थी. इसे इन्वेस्टमेंट कहा जाता है. 2016-17 के वर्ष में ये आंकड़ा कुल $111.9 मिलियन (7 अरब 66 करोड़ से भी ज्यादा) का निवेश भारतीयों के द्वारा सिर्फ प्रॉपर्टी पर ही किया था. इसमें वहां की कंपनियों में निवेश, पनामा जैसे किसी भी आंकड़े का जिक्र नहीं है.

Kotak Securities, ICICI Direct, India Infoline, Reliance Money और Religare जैसी कंपनियां भारतीय पैसे को फॉरेन (टैक्स हेवेन देशों) में लगाती हैं और ये सारा प्रोसेस लीगल है और कानूनी तौर पर होता है. इनकी मदद से कोई भी भारतीय अपने पैसे से विदेशी कंपनियों में निवेश कर सकता है उनके शेयर खरीद सकता है.

इस हिसाब से अगर देखा जाए तो स्विस बैंक में जमा किया गया पैसा क्या वाकई काला धन हो भी सकता है और नहीं भी. ब्लैक मनी हो या व्हाइट उसे बिना जानकारी के पूरी तरह से गैरकानूनी पैसा कहना सही नहीं है. जब तक पूरी रिपोर्ट सरकार पेश नहीं कर देती ये नहीं कहा जा सकता कि ये काला धन ही है.

भारत और स्विट्जरलैंड की डील का क्या हुआ?

भारत और स्विस सरकार के बीच एक डील हुई थी जिसमें 1 जनवरी 2018 से ऑटोमैटिक डेटा शेयरिंग की बात हुई थी. इसके शुरू होते ही 1 साल के अंदर (वित्तीय वर्ष) यानी 2019 मार्च तक डेटा शेयर किया जाएगा. पीयूष गोयल ने भी इसी ओर इशारा किया है. ये डील पिछले साल नवंबर में साइन की गई थी और ये automatic exchange of information (AEOI) नाम से की गई थी. इसके तहत दोनों देश ग्लोबल स्टैंडर्ड के हिसाब से 2018 से डेटा इकट्ठा करना शुरू कर देंगे.

स्विस बैंक, काला धन, मोदी सरकार, राहुल गांधी, अर्थव्यवस्था

ये डेटा टैक्स से जुड़ी जानकारी का होगा. ये फैसला काले धन को वापस लाने और दोषी को सज़ा देने के लिए किया गया था. ये सारी जानकारी सरकार के पास 2019 तक आएगी. इस डील की सबसे बड़ी खूबी ये है कि इससे पार्दर्शिता बढ़ेगी. इस डील के बाद मोदी सरकार को काफी सराहा गया था कि आखिरकारी स्विट्ज़रलैंड की तिजोरी के भीतर झांकने के लिए भारत ने रास्‍ता खोज ही लिया.

अब बात ये है कि 2018 से में डेटा में जानकारी दी गई है. जो डेटा अभी रिलीज किया गया है उसके हिसाब से 2016-17 में ये पैसा जमा किया गया है. कैबिनेट मिनिस्टर पीयूष गोयल का कहना है कि 2019 मार्च तक इसकी पूरी लिस्ट सामने होगी और अब देखना ये है कि क्या वाकई ये हो पाएगा?

क्या भारत सरकार जो भी पैसा पार्क हुआ है उसका टैक्स वसूल चुकी है?

इस समय सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या वाकई ये जो 50% पैसे की बढ़त स्विस बैंक में भारतीय पैसे की हुई है ये काला धन है या नहीं. हो सकता है कुछ हो और हो सकता है कि नहीं भी. इसका पता लगाने के लिए ये सवाल किया जा सकता है कि क्या आखिर इसका टैक्स सरकार वसूल चुकी है? अगर हां तो फिर ये काला धन हो ही नहीं सकता. अगर नहीं तो इसकी जांच जरूरी है. रीनल ट्रांसप्‍लांट के बाद आराम कर रहे अरुण जेटली ने इस मुद्दे पर वक्‍तव्‍य देते हुए कहा है कि स्विस बैंक में जमा धन का एक बड़ा हिस्‍सा ऐसे 'भारतीयों' का है, जो या तो विदेशों की नागरिकता लेकर वहीं बस गए हैं या फिर एनआरआई हैं. जमाकर्ताओं की इन दोनों ही श्रेणियों पर भारतीय कानून लागू नहीं होता है.

भारत में टैक्स को लेकर नियम क्या हैं?

हमारे यहां कानून में ऐसे कोई प्रावधान नहीं है कि अगर आपने कोई गलत शपथ पत्र दिया है तो आप डिस्क्वालिफाई हो जाओगे, हमारे यहां टैक्स चोरी को एक खतरनाक अपराध नहीं माना जाता है. भारत में जो रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपुल एक्ट (RP Act) में ऐसा कुछ भी नहीं है. अगर टैक्स चोरी के मामले में हमारे यहां कोई एमपी या एमएलए पकड़ा भी जाता है तो भी उसके मामले में कोई कार्यवाही नहीं होती. उसे या तो फाइन देना होता या फिर 6 महीने की जेल.

दूसरी चीज़ हमारे यहां ब्लैक मनी को आसानी से टैक्स चुकाकर वाइट मनी बनाया जा सकता है. न जाने कितने ही तरीके इसके लिए अपनाए जाते हैं. ऐसे में क्या वाकई ये सोचना कि 50% पैसा जो बढ़ा है वो काला धन ही है ये गलत होगा.

सरकार कितनी सचेत है इसके लिए?

हाल फिलहाल सरकार ऐसी कई देशों से डील कर चुकी है जहां डेटा शेयरिंग की बात की गई थी. ये अपने आप में एक नई पहल है. स्विस सरकार के साथ भी ऐसा ही समझौता है. ऐसे में इस बात की उम्‍मीद कम है कि नए दौर में कोई स्विस बैंकों में काला धन जमा करने की रिस्‍क लेगा.

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श्रुति दीक्षित श्रुति दीक्षित @shruti.dixit.31

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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