भाग 2 : जब योगी आदित्यनाथ वाली अयोध्या पहुंचे त्रेता के राम
दिवाली के दिन सरकारी विमान से अयोध्या पहुंचे भगवान राम बड़े परेशान हैं. भगवान इसी पशोपेश में हैं कि क्या ये वहीं अयोध्या है जहां से निकल कर वो वनवास के लिए गए थे.
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भाग 2 - त्रेता के राम का कलयुग की अयोध्या में आगमन और उनके अनुभव की 6 कथाएं :
कथा - 1
'हजारों जले हुए दीपक' देख कर लक्ष्मण का रोम-रोम पुलकित हो उठा. 'देखिये भइया कैसा अद्भुत दृश्य!' लक्ष्मण बोले. प्रभु राम कुछ न बोले. 'तनिक देखिये तो भइया...आपकी अयोध्या वापसी पर कैसे अयोध्या नगरी रौशनी में नहाई है!' प्रभु राम इस्थप्रज्ञ बने रहें. 'ऐसा प्रतीत होता है कि आकाश में टिम टिम करते तारों को किसी ने धरा पर जड़ दिया!' प्रभु राम शांत रहे. अब लक्ष्मण से रहा न गया, वे मइया सीता से बोले,' देखिए न भाभी श्री भइया को क्या हो गया है! कोई प्रतिक्रिया ही नहीं करते! 'हमारे अयोध्या वापसी पर दीपक जल रहे हैं या उनकी सत्ता वापसी पर... प्रभु कुछ तय नहीं कर पा रहे हैं!' मईया सीता बोलीं.
भाग 1 जब योगी आदित्यनाथ वाली अयोध्या पहुंचे त्रेता के राम
श्रीराम जब अयोध्या आए तो वो वहां का नजारा देखकर दंग रह गएकथा - 2
पिछले वर्ष आये थे, तब इतना उजाला नहीं था!' जगमग जगमग दीपकों को देखकर प्रभु राम ने सौम्य से दिखने वाले तिलकधारी से कहा. 'तब अंधेरगर्दी थी...' तिलकधारी आवेग में बोला.'मैं आप के कहे का अभिप्राय नहीं समझ पाया श्रीमान!' 'तब अधर्मी पावर में थे प्रभु !' 'अच्छा! और अब पावर की क्या स्थिति है 'अब पावर ही पावर है, कोई दिक्कत ही नहीं...''अरे भई! भइया पावर कट की बात कर रहे हैं!' लक्ष्मण क्रुद्ध हो बोले. 'ओह! तो आप बिजली की बात कर रहे हैं...' तिलाधारी ने हंसते हुए कहा. लक्ष्मण झेंप गए.
कथा - 3
प्रभु राम जब अयोध्या आये. देखा तो हतप्रभ रह गए. सरजू के तट पर अनगिनत दीपक जल रहे थे. क्या अदभुत दृश्य है लक्ष्मण!' प्रभु राम बोले. 'हां, पिछली बार जब हम आये थे, सरजू को तो ढूंढना पड़ा था, परन्तु इस बार तो आंखें ही चौंधिया गईं हैं भइया!' 'इस बार एक धर्म परायण सरकार जो है...' उनकी बातें सुन रहे पास खड़े एक संत बोले. 'आप कौन!' लक्ष्मण ने पूछा. 'मैं तो सेवक हूँ, प्रभु राम का...' संत ने विनम्र भाव से कहा. 'तट पर दीपकों का इतना प्रकाश...सरजू सूरज समान प्रतीत होती है.' प्रभु राम बोले. 'ये तो कुछ भी नहीं प्रभु...आप बस देखे जाइये!' 'हम तो वर्षो से देख ही रहे हैं!' प्रभु राम शून्य में देखते हुए बोले. 'समझा नहीं प्रभु!' संत बहुत आदर भाव से बोले. 'जाने दें! यह कहते हुए प्रभु तट का अवलोकन करने लगे. 'हम आपकी एक बहुत बड़ी प्रतिमा बनवा रहे हैं...' संत ने सगर्व कहा.'इस कार्य हेतु तो बहुत द्रव्य व्यय होगा! और एक संत के पास माया का तो सर्वथा लोप होता है!', प्रभु राम बोले.
अयोध्या आने पर श्री राम को भी लगा कि उनके नाम पर राजनीति हो रही है
सुन संत मुस्काये. बोले,' कार्य श्रद्धा से होता है प्रभु! 'आह!' क्या बात है! 'लक्ष्मण का मन प्रसन्न हो गया. वो संत की बानी पर मोहित से हो गए. 'प्रभु आप का यह दास सरकार में नहीं है. परंतु अब आपको पूजने वाले सरकार में हैं प्रभु!' 'परन्तु संत कब से सत्ता संभालने लगे!', लक्ष्मण ने पूछा. संत हँस पड़े. बोले,' अधर्मी के हाथों में राजनीति जाने से अच्छा है कि संत उसकी बागडोर स्वयं सम्हाल लें' 'अति उत्तम!' लक्ष्मण को यह बात जम गई. ''प्रभु अब तो राजनीति में गुंडे तक आने लगे हैं!', 'गुंडे!!!' लक्ष्मण समझ न पाए. 'असमाजिक तत्व!' संत ने समझाने की चेष्ठा की. 'परंतु आप ने अभी कहा कि संत आने लगे है!' 'जी, वही तो मैं भी कह रहा हूँ, राजनीति में अधर्मी न आने पाये इसलिए संतों को राजनीति में आना पड़ रहा है!'
'यदि ऐसा रहा तो धर्म कर्म के मामले कौन देखेगा!' लक्ष्मण चिंतित हुए. 'आप चिंतित न हो! हम राजनीति में ही धर्म को प्रस्थापित कर देंगे!' 'क्या ऐसा सम्भव है!' इस प्रश्न के प्रयुत्तर में सन्त ने मोबाइल निकाला. इधर-उधर रगड़ने के बाद उसको लक्ष्मण के सामने कर दिया. उसमें टीवी स्टूडियो का दृश्य था. कुछ लोग लड़ने के तर्ज पर आपस में बात कर रहे थे. कुछ की भंगिमा देख लक्ष्मण का हाथ स्वतः ही तूरीण की ओर चला गया. उनमें से एक बोला, 'अभी विमान रामलीला करने वाले बाहरी कलाकार उतरे, हैलीकाप्टर को पुष्पक विमान बना उन पर पुष्पवर्षा हो रही...' 'लोकल कलाकार क्यों नहीं!' 'पर आप के शासन में नाच होता था!' 'और आप में नौटंकी हो रही है!' इसके लिए धन कहां से आया!' 'यह सारा पैसा जनता का है!' 'ऐसा लगा मानो त्रेता युग जीवित हो गया हो!' 'नेता युग होते हुए ऐसा होना असम्भव है!' 'देखिए यह हमारी आस्था का प्रश्न है!' इतना बुरा तो रावण का अट्टहास नहीं लगा! जितनी इनकी आपस में चलने वाली नोंक झोंक! कृपया इसे बंद कर दे!' लक्ष्मण आक्रोशित स्वर में बोले.
अयोध्या की स्थिति देखकर पहले तो श्री राम की आंखें चमकीं, फिर वो उदास हो गए
'आप ने देखा न ! धर्म का धर्म रहा और राजनीति की राजनीति चली.' 'यदि सरकार पूजा पाठ करेगी तो राजपाठ कैसे चलेगा! आप समझ नहीं रहे हैं!' लक्ष्मण ऊंचे स्वर में बोले . 'भक्ति में बहुत शक्ति होती है, यह पाठ हमनें यदि सबको रटा दिया तो सब कुछ चलेगा... 'आप अभी मेरी प्रतिमा के विषय में भी कुछ बोल रहे थे!' इस बार प्रभु राम बोले. 'हां, प्रभु...आपकी खूब ऊंची प्रतिमा बनाने का विचार है!' संत ने उत्साह में बताया. 'उत्तम.... अति उत्तम.... वैसे कितनी ऊंची प्रतिमा होगी प्रभु की! लक्ष्मण ने उत्साह से पूछा. 'बहुत ऊंची...' संत अपने हाथों को ऊपर और ऊपर उठाते हुए बताया. 'एन्टेलिया से भी ऊंची!' प्रभु राम बोले. यह सुनते ही संत ने उनके समक्ष दोनों हाथ जोड़ लिए.
कथा - 4
आप लोग वार्तालाप क्रम बनाये रखें. यह कहते हुए प्रभु राम मैया सीता के साथ सरजू के घाट पर बैठ गए. 'कितने दीपक जलें!' लक्ष्मण ने गमछा डाले हुए एक व्यक्ति से पूछा. 'लाख से ऊपर!' उस व्यक्ति ने जवाब दिया. 'अद्भुत!' लक्ष्मण चकित रह गए. ' गिनीजबुक में रिकार्ड बन गया!' 'यह कैसी किताब है!' 'यह चमत्कारों को लिखने वाली किताब है!' 'तो आपने ऐसा कौन सा चमत्कार कर दिया!' 'अभी बताया तो आपको लाख के ऊपर दीपक जलाने का!' 'सुन्दर! परन्तु इसमें चमत्कार जैसा क्या है!' 'आग लगाने वाले यदि ज्योत जलाये तो चमत्कार से कम है क्या!' वहां से गुजरने वाले एक व्यक्ति ने कहा.
'इन महोदय का परिचय!' लक्ष्मण ने पूछा. 'इनका मानसिक संतुलन बिगड़ गया है! ये न घर के है न घाट के!'' 'कैसे!' 'हमारी पार्टी से टिकट मांग रहे थे, पर मिला नहीं, दूसरी पार्टी से टिकट खरीद के लड़े और हार गए!' 'टिकट खरीदा जाता है!' 'बिलकुल! ये श्रीमानजी टिकट खरीदे,पर जनता ने इनका टिकट काट दिया!'' यह कहकर गमछाधारी जोर से हंसा. 'प्रभु की मर्जी से एक पत्ता भी नहीं हिलता..' लक्ष्मण ने प्रतिवाद किया. 'पर आलाकमान के एक इशारे पर पत्ता अवश्य कट जाता है.' यह कह कर वह पुनः हंसा. 'इतने दीपक एक साथ जले.. क्या इसे प्रजा ने जलाया है!' प्रभु राम ने टॉपिक बदला. 'नहीं सत्ता ने' गमछा को गले में घुमाते हुए उस व्यक्ति ने बहुत ही सहजता से जवाब दिया
श्रीराम संग माता सीता और भाई लक्ष्मण भी परेशान हैं कि ये अयोध्या को हुआ क्या है
कथा - 5
प्रभु राम के आगमन की पूर्व संध्या पर सरजू के तट पर दीपक की ज्योत जगमग जगमग हो रही थी। इतना ही नहीं हजारों -लाखों रुपयें लागत की परियोजनाओं के शिलान्यास के शिलापट भी जड़ दिए गए थे. 'प्रभु राम तो कल आएंगे!' उनमें से एक शिलापट बोली. 'हां, मगर आज सरकार आएंगे!' 'अच्छा!' 'और एक से बढ़ कर एक कलाकार आएंगे!' 'धीरे बोल! कहीं किसी ने सुन लिया तो!' 'अरे पगली रामलीला करने वाले कलाकार की बात कर रही हूं! तू क्या समझी!' हाहाहा. .कुछ नहीं! ''समझी ! समझी!'' क्या!' 'जाने दें!' 'कल प्रभु राम भी आएंगे!' 'हां, अब देखो... पर हमारे प्रभु राम कब आते हैं!' 'सही कहा बहन!'' हमारे ऊपर अंकित परियोजना किसी भी नाम की क्यों न हो,मगर हम सब एक...' 'अहिल्या ही हैं!' दोनों शिलापट ने एक साथ कहा. 'तब तो तुम दोनों को चुनाव की प्रतीक्षा करनी चाहिए, न की प्रभु राम की..' शिलापट पर बैठा कौआ बोला.
कथा - 6
दीपक से ज़्यादा कैमरों की फ्लश चमके थे. दीपक अपने दिल पर यह बोझ लेकर बुझ चुके थे. दीपकों की अवलियां बिगड़ चुकी थी. सरकार और सरकार के नुमाइंदे जा चुके थे. मइया सीता, प्रभु राम और लक्ष्मण सरजू के तट पर ही बैठ रहे. कि तभी लक्ष्मण का ध्यान एक और गया. उन्होंने देखा कि एक बालक दीयों को पलट रहा है. 'देखिये भईया, उस नटखट बालक को!' 'कितना मासूम है!' उसे देख मईया सीता बोलीं. 'वो चोरी कर रहा है और आपको मासूम लग रहा है!' लक्ष्मण आवेग में बोले. 'नहीं इस बालावस्था में गृहस्ती चला रहा है! दीपक में बचे तेल से अपने पेट की आग बुझायेगा वो! 'यह कहते हुए मइया सीता का हृदय भारी हो गया.
मइया सीता का यह कहना ही था कि लक्ष्मण उठ खड़े हुए. उन्हें ग्लानि हुई. कहां एक अकेले उनके लिए एक बूटी के लिए पूरा एक पहाड़ चला आया था और कहां यह एक निर्दोष बालक! ततक्षण वो उठे और दीपक में बचे हुए तेल को निकालने में उस बालक की सहायता करने लगे. जिसे देख मइया सीता प्रभु राम से बोलीं,' चलिये प्रभु! सहस्त्रों दीपकों का जलना कुछ सार्थक तो हुआ!' यह सुनते ही एक पल को प्रभु राम की नेत्र चमकें, परंतु दूजे ही क्षण उनमें से आंसुओं की बूंदें ढलक पड़ीं.
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